उत्तराखंड के पहाड़ बारिश के मौसम में कमजोर क्यों हो जाते हैं? जो लैंडस्लाइड होने लगता है. आइए लैंडस्लाइड के कारण के बारे में जानते हैं

SAURABH CHAUHAN for NEWS EXPRESS INDIA

मानसून की दस्तक के साथ ही प्रदेश में लैंडस्लाइड की घटनाएं बढ़ गई हैं. खासतौर पर चमोली जिले से भूस्खलन की कुछ डरावनी तस्वीरें भी आई हैं. ये घटनाएं राज्य के लिए बड़ी चिंता का सबब बन रही हैं. उत्तराखंड के कई जिले भारी भूस्खलन के लिहाज से संवेदनशील हैं. वैज्ञानिकों का शोध यह बताता है कि चमोली जिले का एक खास इलाका लैंडस्लाइड के लिए हाई सेंसेटिव जोन बना हुआ है.

उत्तराखंड के पर्वतीय जनपदों में हजारों लैंडस्लाइड जोन मौजूद हैं. कुछ क्षेत्र भूस्खलन के आकार और प्रभाव के लिहाज से बेहद संवेदनशील हैं तो कई पॉइंट्स हल्के लैंडस्लाइड वाले भी हैं. हाल ही में मानसून आते ही उत्तराखंड के कुछ जिलों से भूस्खलन की बेहद डराने वाली तस्वीर आई हैं. ये बड़े लैंडस्लाइड वाले इलाके थे जहां भूस्खलन से एक बड़ा इलाका प्रभावित रहता है. उत्तराखंड में भूस्खलन इतने बड़े पैमाने पर क्यों होता है? चमोली जिले का एक क्षेत्र अक्सर भूस्खलन की चपेट में क्यों दिखाई देता है? इसी को लेकर वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र विशेष पर भी शोध किया है.

साल 1930 में प्रोफेसर हेमन्स नेंसन ने पर्वतारोही के रूप में अपनी टीम के साथ चमोली जिले के एक बड़े इलाके का विस्तृत अध्ययन किया. इस दौरान उन्होंने इस इलाके की जयोलॉजी को बारीकी से देखा. यह इलाका पीपलकोटी से जोशीमठ और तपोवन तक का था, जिसे अपने अध्ययन के दौरान उन्होंने भूस्खलन के लिहाज से हाईली सेंसेटिव जोन मार्क किया. इसके अलावा प्रदेश में कुछ और इलाके भी ऐसे हैं लेकिन यह क्षेत्र सबसे ज्यादा सेंसटिव माना गया है.

इसी तरह 1985 में इस इलाके में लैंडस्लाइड को लेकर शोध करने वाले भू वैज्ञानिक एमपीएस बिष्ट भी यहां की जियोलॉजी को देखकर बेहद हैरान थे.. भू वैज्ञानिक एमपीएस बिष्ट कहते हैं इस क्षेत्र में करीब 50 से ज्यादा मेजर लैंडस्लाइड ज़ोन मौजूद हैं. इन लैंडस्लाइड ज़ोन का डाइमेंशन काफी बड़ा है. यहां होने वाले लैंडस्लाइड का प्रभाव भी बहुत ज्यादा होता है.

हिमालय में लगातार भूगर्भीय हलचल बनी रहती है. इसके कारण कई तरह की प्राकृतिक घटनाएं भी हिमालय क्षेत्र में देखने को मिलती हैं. यदि वैज्ञानिकों के शोध के बाद लैंडस्लाइड के लिए हाई सेंसिटिव ज़ोन माने जाने वाले चमोली जिले के इस इलाके को देखे तो यहां पर भूगर्भीय गतिविधियां बाकी क्षेत्र से काफी ज्यादा रिकॉर्ड की जाती हैं. भूवैज्ञानिकों का मानना है कि ये इलाका टेकटोनिक एक्टिविटीज के लिहाज से बेहद एक्टिव है. वैज्ञानिक इस क्षेत्र को मेन सेंट्रल थ्रस्ट के रूप में देखते हैं, यानी ऐसा क्षेत्र जहां हिमालय के भीतर इंडियन प्लेट में हलचल रहती है. इसके कारण इस इलाके में ऊर्जा का उत्सर्जन काफी ज्यादा होता है. जिसके कारण भूकंप जैसी घटनाएं भी अक्सर इस क्षेत्र के आसपास रिकॉर्ड की जाती हैं.

इस इलाके में भूस्खलन की घटनाओं के पीछे भूगर्भीय हलचल (टेक्टोनिक एक्टिविटीज) को बड़ी वजह माना जाता है. टेक्टोनिक एक्टिविटीज के कारण ही हिमालय का निर्माण हुआ है. भूगर्भ में हुई इस हलचल से ही पर्वत श्रृंखलाएं बनी हैं. इसलिए यह घटना हिमालय के लिए सामान्य है, लेकिन, जब इन घटनाओं के अलावा प्राकृतिक और मानव गतिविधियां जुड़ जाती हैं तो भूस्खलन की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं.

मेन सेंट्रल थ्रस्ट वाले इस क्षेत्र में जहां पहले ही भूगर्भ में हलचल से चट्टाने प्रभावित रहती हैं, तो वही बारिश तूफान तेज धूप जैसी प्राकृतिक स्थिति भी इसे प्रभावित करती है. मानवीय गतिविधियां इन चट्टानो में कई दरारें तैयार करती हैं. पहाड़ पर रोड कटिंग, ब्लास्टिंग और हैवी व्हीकल मूवमेंट यहां लैंडस्लाइड को बढ़ा देता है. हालांकि, पहले ही रुद्रप्रयाग जिले को सबसे ज्यादा भूस्खलन वाले क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया गया है. चमोली और बाकी कुछ जिले भी इसी रूप में राष्ट्रीय स्तर पर संवेदनशील माने गए हैं.

प्रदेश में अब तक 14000 से ज्यादा जगहों पर भूस्खलन हो चुका है. इसमें सबसे ज्यादा चमोली जिले में ही भूस्खलन होने की बात वैज्ञानिक कहते हैं. कुछ दिन पहले ही जोशीमठ और चमोली के पातालगंगा क्षेत्र में बड़े भूस्खलन की तस्वीर सामने आई. वैज्ञानिक बताते हैं कि चमोली जिले में 15 साल में 3.5 हजार से ज्यादा भूस्खलन की घटनाएं हुई. साल 2023 में 1173 भूस्खलन रिकॉर्ड किए गए हैं. यह सभी आंकड़े और वैज्ञानिकों के शोध यह बताने के लिए काफी है कि उत्तराखंड में मानवीय गतिविधियों पर अब नियंत्रण की बेहद ज्यादा जरूरत है, ऐसा नहीं हुआ तो प्रदेश के कई पर्वतीय क्षेत्र के संवेदनशील इलाके जोशीमठ शहर की तरह ही एक बड़े संकट में फंस सकते हैं.

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