वट वृक्ष के नीचे आज मन्दिर है। तब वहां घना जंगल था। इस जगह का नाम छपरोह था, जिसे आजकल चिंतपूर्णी कहते हैं। बड़े पूरी कहानी.

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देवी मां के उस शक्तिपीठ की कहानी, जहां माता सती के पांव गिरे थे। यह शक्तिपीठ हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में सोला सिग्ही श्रेणी की पहाड़ी पर है, जिसका नाम है मां चिंतपूर्णी मंदिर, चिंतपूर्णी का अर्थ है सबकी चिंता दूर करने वाली। यह मंदिर चारों ओर से 4 शिव मंदिरों कालेश्वर महादेव, नर्हारा महादेव, मुच्कुंड महादेव और शिवबाड़ी से घिरा है।वट वृक्ष के नीचे आज मन्दिर है। तब वहां घना जंगल था। इस जगह का नाम छपरोह था, जिसे आजकल चिंतपूर्णी कहते हैं।

मां चिंतपूर्णी को छिन्नमस्तिका भी कहा जाता है। छिन्नमस्तिका का अर्थ है-एक देवी जो बिना सिर के है।

यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ लगी रहती है। वैसे यह मंदिर हिमाचल आने वालों के लिए एक टूरिस्ट स्पॉट भी है। वहीं उत्तर भारत में 9 शक्तिपीठों की यात्रा में चिंतपूर्णी शक्तिपीठ के दर्शन 5वें नंबर पर होते हैं।

मां चिंतपूर्णी को छिन्न मस्तिका भी कहा जाता मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, ऐसा विश्वास किया जाता है कि सती चंडी की सभी दुष्टों पर विजय के बाद, उनके 2 शिष्यों अजय और विजय ने सती से अपनी खून की प्यास बुझाने की प्रार्थना की थी। यह सुनकर सती चंडी ने अपना मस्तिष्क छिन्न कर लिया। इसलिए सती का नाम छिन्न मस्तिका पड़ा।

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