SAURABH CHAUHAN for NEWS EXPRESS INDIA
बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता नजीर हुसैन (Nazir Hussain) साल 1948 से 1996 तक फिल्मों में एक्टिव सक्रिय थे. फिल्मों में नजीर हुसैन हमेशा ही सपोर्टिंग किरदार में नजर आए, लेकिन उन्होंने लोगों के बीच अपने अभिनय की ऐसी छाप छोड़ी कि आज भी लोग उन्हें याद करते हैं. आज हम आपको नजीर से जुड़ी एक ऐसी बात बताने जा रहे हैं, जिससे आप भी अनजान होंगे.
बता दें, नजीर का जन्म 15 मई 1922 को उत्तर प्रदेश के गांव उसिया में हुआ था. इनके पिता का नाम शहबजाद खान था और वे भारतीय रेलवे में गार्ड की नौकरी करते थे. पिता की सिफारिश पर नजीर को भी रेलवे में फायरमैन की सरकारी नौकरी मिल गई थी, लेकिन कुछ महीने बाद नजीर ने नौकरी छोड़कर ब्रिटिश आर्मी ज्वाइन कर ली.
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो नौकरी के दौरान ही दूसरा विश्व युद्ध हुआ और नजीर को जंग के मैदान में भेज दिया गया. इनकी पोस्टिंग कुछ समय के लिए सिंगापुर और मलेशिया रही. महौल खराब होने पर नजीर को युद्ध के दौरान बंदी बनाकर मलेशिया जेल में कैद कर लिया गया और फिर कुछ दिनों बाद रिहा करके भारत भेज दिया गया था. भारत लौटकर इन्होंने आजाद हिंद फौज जॉइन कर ली.
नजीर सुभाष चंद्र बोस से प्रेरित होकर उनके नक्शे कदम पर चलने लगे. प्रचार प्रसार में वे प्रमुखता से भाग लिया करते थे. ऐसे में अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए इन्हें पकड़ लिया गया और फांसी की सजा दे दी गई. लंबे समय तक जब नजीर घर नहीं लौटे तो इनके परिवार ने इन्हें शहीद समझ लिया. एक दफा अंग्रेज नजीर को ट्रेन से हावड़ा से दिल्ली ले जा रहे थे.
इसी दौरान नजीर ने चुपके से एक पेपर पर अपने सकुशल होने की चिट्ठी लिखी और जैसे ही दिलदारनगर जंक्शन आया खिड़की से कागज फेंक दिया. तब जाकर उनके घरवालों तक उनकी जानकारी पहुंची, हालांकि उस वक्त गांववालों ने उन्हें अंग्रेजों से छुड़वाने की कोशिश जरूर की, लेकिन वे विफल रहे. बाद में जब देश आजाद हुआ तो नजीर को रिहा कर दिया गया.
कहा जाता है रिहाई के बाद नजीर को लाइफटाइम के लिए रेलवे का पास दिया गया था. बता दें, बिमल राय ने नजीर को फिल्मी दुनिया में इंट्रोड्यूस किया था. इसके बाद बॉलवुड में नजर ने ‘परिणीता’, ‘जीवन ज्योति’, ‘मुसाफिर’, ‘अनुराधा’, ‘साहिब बीवी और गुलाम’, ‘नया दौर’, ‘कटी पतंग’, ‘कश्मीर की कली’ जैसी कई फिल्मों में छोटे बड़े किरदार निभाए.
भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की 1960 में नजीर से मुलाकात हुई थी. तब उन्होंने नजीर से भोजपुरी सिनेमा की तरफ पहल करने की बात कही थी. इसके बाद नजीर हुसैन 1963 में पहली भोजपुरी फिल्म गंगा मैया तोहे पियरी चढ़ाइबो लेकर आए. कहा जाता है कि तभी से भोजपुरी फिल्में बननी शुरू हुई थी.