ऋषिगंगा में आई आपदा से इंसानों के साथ ही जानवर भी अछूते नहीं रहे। यह बेजुबान जानवर अपने दुख को किसी को बता भी नहीं सकते

vs चौहान की रिपोर्ट

उत्तराखंड में चमोली के  तपोवन में  आपदा हादसे को लगभग 1 सप्ताह हो गया ऋषिगंगा में आई आपदा से इंसानों के साथ ही जानवर भी अछूते नहीं रहे। यह बेजुबान जानवर अपने दुख को किसी को बता भी नहीं सकते हैं लेकिन दुख का एहसास इन बेजुबान जानवरों को भी होता है यहां पर यह बेजुबान मां सात फरवरी से लगातार ऋषिगंगा को निहार रही है।

स्थानीय लोगों ने बताया कि सात फरवरी को आई बाढ़ में इस बेजुबान के बच्चे भी बह गए। साथ ही ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट में काम करने वाले कर्मचारी जो इसे खाना देते थे, वह भी आपदा में बह गए। उस दिन से वह उदास है। वह रोज सुबह आकर एक जगह पर बैठ जाती है और ऋषिगंगा नदी को निहारती है। कई लोग उसे खाना देने की कोशिश करते हैं, लेकिन वह नहीं खाती है।

ऋषिगंगा की आपदा में जनहानि के साथ ही पशु हानि भी भारी मात्रा में हुई है। ग्रामीण इलाकों में पशुपालन आजीविका का बड़ा साधन है। ऐसे में जिन लोगों के पशु बह गए हैं वह लोग भी काफी परेशान हैं। जिला प्रशासन से मिली जानकारी के अनुसार जुवाग्वाड़ गांव के कई परिवारों की करीब 180 बकरियां और पेंग गांव के चार खच्चर लापता हैं। सात फरवरी को ये जानवर नदी किनारे चरने के लिए गए थे।

सात फरवरी को चमोली जिले के रैणी क्षेत्र में ग्लेशियर टूटने से आई आपदा ने तबाही मचा दी थी। 204 लोग इस आपदा में लापता हो गए। करीब 35 से ज्यादा लोग ऋषिगंगा परियोजना की सुरंग में फंस गए। इस आपदा ने क्षेत्र का भूगोल बदल दिया है। यहां ऋषिगंगा नदी के मुहाने पर एक झील बन गई है। जिससे भविष्य में खतरा हो सकता है
लापता लोगों की तलाश में चमोली से हरिद्वार तक एसडीआरएफ की टीम तलाश में लगी हुई है। सुरंग में  राहत बचाव कार्य चल रहा है। सुरंग के बाहर से आईटीबीपी व सेना की रेस्क्यू टीमों को भी प्रशासन ने हटाकर रिजर्व में रख दिया गया है।

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