VS CHAUHAN KI REPORT
योजनाबद्ध तरीके से चलाई गई मुहिम में हुतु सरकार के सैनिकों और उनसे जुड़ी मिलिशिया के लोगों ने ढाई लाख महिलाओं का बलात्कार किया. व्यापक यौन हिंसा के नतीजे में कई हजार बच्चे पैदा हुए. इन बच्चों को समाज पर दाग माना गया क्योंकि उनके पिताओं के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. पैट्रिक भी इन्हीं में से एक थे.
इस दौरान बलात्कार को भी हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया गया. उस दौरान ठहरे गर्भों से जो बच्चे पैदा हुए, वे जब जवान हो गए. लेकिन उनके लिए जिंदगी आसान नहीं थी. पैट्रिक के मुताबिक, “मेरे दिल में बहुत सारे जख्म हैं. मुझे नहीं पता है कि मेरा पिता कौन है. मेरा भविष्य हमेशा जटिल रहेगा. क्योंकि मुझे अपने अतीत के बारे में जानकारी नहीं है. पैट्रिक के मुताबिक स्कूल में कभी वह बाकी बच्चों के साथ घुलमिल ही नहीं पाए. पैट्रिक इतने अकेले थे कि उन्होंने दो बार आत्महत्या करने की कोशिश भी की, एक बार 12 साल की उम्र में और दूसरी बार 22 साल की उम्र में.
वैसे पैट्रिक के मुताबिक उन्होंने धीरे धीरे अपने अतीत को स्वीकारना शुरू कर दिया.अब उन्हें अपने दोस्तों और साथियों के साथ अपनी कहानी साझा करने में भी उतनी तकलीफ नहीं होती. धीरे लोग मुझे और मेरे अतीत को स्वीकार करने लगे.” पैट्रिक के मुताबिक उनके लिए रवांडा के “समाज में घुलना मिलना” लगातार जारी रहने की प्रक्रिया है.
“हालांकि, ऐसा भी नहीं है कि इस नरसंहार में सिर्फ तुत्सी समुदाय के ही लोगों की हत्या हुई। हूतू समुदाय के भी हजारों लोग इसमें मारे गए। कुछ मानवाधिकार संस्थाओं के मुताबिक, रवांडा की सत्ता हथियाने के बाद रवांडा पैट्रिएक फ्रंट (आरपीएफ) के लड़ाकों ने हूतू समुदाय के हजारों लोगों की हत्या की।
बता दें कि इस नरसंहार से बचने के लिए रवांडा के लाखों लोगों ने भागकर दूसरे देशों में शरण ले ली थी।
पैट्रिक की मां होनोरिने के मुताबिक उन्हें चार दिन तक एक जेल में रखा गया था. वहां कई और महिलाएं भी थीं. हुतु चरमपंथी हर दिन लोगों को मार काटने के बाद जब वापस लौटते थे, तो उन सब महिलाओं का बलात्कार करते थे. होनोरिने रोती हुई अपनी खौफनाक अनुभवों को बताया, “वे कहते थे कि उन्हें मिठाई चाहिए और मिठाई पैट्रिक की मां होनोरिने को कहा जाता था. क्योंकि होनोरिने उम्र उनमें सबसे कम थी.”होनोरिने के मुताबिक एक बार एक लड़ाका वहां से भाग निकला, तो उन्होंने भी उसके साथ भागने की कोशिश की. रास्ते में भी होनोरिने का बलात्कार किया गया. वह कहती हैं कि इसी दौरान वह गर्भवती हुईं. उन्होंने अपने गर्भ को गिराने के बारे में भी सोचा. लेकिन फिर बच्चे को जन्म दिया, लेकिन वह उसे अपना प्यार नहीं दे पाईं और इसका उन्हें पूरी जिंदगी मलाल है. बाद में उनकी शादी हो गई लेकिन उनके पति ने पैट्रिक को नहीं अपनाया और पैट्रिक का नाम “हत्यारे के बेटे” का नाम दिया.
ऐसी ही कहानी रवांडा में नरसंहार के दौरान बलात्कार का शिकार बनी दूसरी महिलाओं की भी है. पहले इन महिलाओं पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया. उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया. लेकिन हाल में ऐसी महिलाओं की मदद के लिए कदम उठाए गए हैं, ताकि उनके दुख और पीड़ा को कुछ हद तक कम किया जा सके. इसके लिए पीड़ितों के संघ और कई गैर सरकारी संगठन काम कर रहे हैं .सेवोता नाम के एक एनजीओ की संस्थापक वर्षीय गोडेलीव मुकासारासी मुताबिक, “इसकी वजह से सबसे बुरी मानवीय त्रासदियों में से एक त्रासदी से तबाह देश और समाज को उबरने में मदद मिली है.”
बलात्कार की शिकार महिलाओं के लिए कई कदम उठाए गए. लेकिन इनसे पैदा बच्चों को नरसंहार का पीड़ित नहीं माना गया. इसलिए उन्हें कोई खास मदद नहीं दी गई. नरसंहार की विरासत से लड़ रहे और पीड़ितों के लिए काम करने वाले संगठनों के संघ इबूका के कार्यकारी सचिव नफताल अहिशाकिए कहते हैं कि बच्चों को अपनी मांओं के जरिए कोई अप्रत्यक्ष मदद नहीं मिली. मुकानसोरो का कहना है कि बलात्कार से पैदा बच्चों को अपनी मांओं से विरासत में जो दर्द मिला है, उससे निजात पाने का कई बार यही तरीका है कि सबसे रिश्ते तोड़ लिए जाएं.रवांडा नरसंहार के लगभग सात साल बाद यानी 2002 में एक अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत का गठन हुआ था, ताकि हत्याओं के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा दी सके। हालांकि, वहां हत्यारों को सजा नहीं मिल सकी। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने तंजानिया में एक इंटरनेशनल क्रिमिलन ट्रिब्यूनल बनाया, जहां कई लोगों को नरसंहार के लिए दोषी ठहराया गया और उन्हें सजा सुनाई गई। इसके अलावा रवांडा में भी सामाजिक अदालतें बनाई गई थीं, ताकि नरसंहार के लिए जिम्मेदार लोगों पर मुकदमा चलाया जा सके। कहते हैं कि मुकदमा चलाने से पहले ही करीब 10 हजार लोगों की मौत जेलों में ही हो गई थी.रवांडा में शांति के लिए दूसरे देशों से शांति सेना ने भेजी गई थी. जातीय संघर्ष में हुए इस नरसंहार के बाद से ही रवांडा में जनजातीयता के बारे में बोलना गैरकानूनी बना दिया गया है। सरकार की मानें तो ऐसा इसलिए किया गया है, ताकि लोगों के बीच नफरत न फैले और रवांडा को एक और ऐसी घटनाओं का सामना न करना पड़े.