मेरठ के इस गांव में दशहरा के दिन घरों में चूल्हे नहीं जलते. इस गांव में सैकड़ों वर्षों से दशहरा नहीं मनाया गया.

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हिंदुस्तान में त्योहारों का अपना महत्व है. लोग, बेसब्री से त्योहारों का इंतजार करते हैं. त्योहार वाले दिन खुशियां मनाते हैं, मिठाई खिलाते हैं, नए-नए कपड़े पहनते हैं और मान्यतानुसार प्रचलित प्रथाओं का पालन करते हैं. उन्हीं में से एक त्योहार दशहरा आज है. लोग त्योहार की खुशियां मनाने में लगे हैं. लेकिन मेरठ का एक ऐसा गांव है जहां दशहरे के नाम से ही गांव में मातम छा जाता है.

यहां दशहरा त्योहार आते ही गांव में मायूसी छा जाती है. इस दिन घरों में चूल्हे नहीं जलते. असत्य पर सत्य की जीत का पर्व दशहरा देश-विदेश में धूमधाम से मनाया जाता है. लेकिन मेरठ के गगोल गांव में दशहरा के दिन घरों में चूल्हे नहीं जलते. इस गांव में सैकड़ों वर्षों से दशहरा नहीं मनाया गया. इसके पीछे का कारण भी सैकड़ों वर्ष पूर्व इतिहास में ही है.

गांव की है 18 हजार आबादी
मेरठ से तीस किलोमीटर दूर गगोल गांव की ऐसी कहानी है कि यहां दशहरा त्योहार का नाम सुनते ही सबकी हवाईयां उड़ जाती हैं. लोग दुखी हो जाते हैं.आखिर तकरीबन अट्ठारह हजार की आबादी वाला यह गांव दशहरा क्यों नहीं मनाता. लोगों ने जब इस राज से पर्दा उठाया तो हैरान करने वाली सच्चाई सामने आई.

दशहरा न मनाने का यह है कारण
गगोल गांव में दशहरा न मनाने के पीछे ऐसी वजह है कि आप सन्न रह जाएंगे. यहां के लोगों का कहना है कि जब मेरठ में क्रान्ति की ज्वाला फूटी थी. तो इसी गांव के तकरीबन नौ लोगों को दशहरे के दिन ही फांसी दी गई थी. गांव में पीपल का वो पेड़ आज भी मौजूद हैं, जहां इस गांव के नौ लोगों को फांसी दी गई थी. ये बात इस गांव के बच्चे-बच्चे में इस कदर घर कर गई है, कि चाहे वो बच्चा हो या बड़ा, पुरुष हो या महिला दशहरा नहीं मनाता. यही नहीं इस दिन गांव में किसी घर में चूल्हा तक नहीं जलता. यहां लोग इस तरीके से शहीदों को नमन करते हैं. उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं.

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