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उत्तराखंड में भले ही इस बार बारिश से आफतें खड़ी होने की खबरें लगातार रही हों, लेकिन फैक्ट यह है कि इस साल माॅनसून सीज़न में बारिश में रिकॉर्ड कमी रही है. मौसम विभाग के दावों के उलट इस साल माॅनसून के आगाज से अंजाम का अंदाजा लगाया जा रहा था. हालात ये हैं कि राज्य के सिर्फ 2 जिलों में ही सामान्य से अधिक बारिश हो पाई है जबकि शेष जिलों पर इंद्रदेव मेहरबान नहीं रहे. बरसात के सीजन में कम पानी बरसने से कई तरह के नुकसान की आशंका भी बन रही है.
अब जबकि माॅनसून सीजन खात्मे की दहलीज पर है तो आंकड़े इसे सही साबित भी कर रहे हैं. बीते सालों के मुकाबले इस बार पहाड़ी राज्य में बारिश काफी कम हुई है. 2018 के मुकाबले इस बार एक तिहाई पानी भी नहीं बरसा. बीते 5 सालों में उत्तराखंड में 18 से 45 फीसदी कम बारिश हुई है. विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान के सीनियर साइंटिस्ट डाॅ. जेके बिष्ट का कहना है कि बीते 6 सालों में सबसे कम बारिश इस साल हुई है. उनके मुताबिक 2020 से माॅनसून सीजन में कम बारिश का जो सिलसिला शुरू हुआ था, इस बार भी जारी रहा.
सिर्फ दो ज़िलों में औसत से ज्यादा बरसात
चमोली और बागेश्वर दो ज़िले हैं, जहां इस माॅनसून सीजन में औसत से ज्यादा मेघ बरसे जबकि शेष 11 ज़िलों में उम्मीद व ज़रूरत से कम बरसात हुई. मौसम की बेरुखी का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि 2018 में 305 एमएम बारिश हुई थी, वहीं इस बार सिर्फ 108 एमएम बारिश अगस्त तक दर्ज हुई. इन आंकड़ों से एक तरफ खेती को भारी नुकसान की आशंका है, तो वहीं कास्तकारों के हाथ भी निराशा लग रही है.
जीबी पंत पर्यावरण एवं विकास संस्थान के सीनियर साइंटिस्ट किरीट कुमार ने बताया कि जिन इलाकों में बारिश हुई, वहां भी कुछ खास हिस्सों में ही ज्यादा बारिश दर्ज हुई. अधिकांश इलाकों में सूखे जैसे हालात हैं. बरसात में मौसम की बेरुखी के बाद अब सभी को जाड़ों की बारिश का इंतजार है. ऐसे में अगर जाड़ों की बारिश ने भी धोखा दिया, तो तय है कि खेती और बागवानी के साथ ही पानी के संकट से भी लोगों को जूझना पड़ेगा. कुमार के मुताबिक बारिश की कमी से गलते ग्लेशियर तापमान में भी इजाफे की वजह बनेंगे.