सावन के महीने में कांवर यात्रा का महत्व: कांवड़ यात्रा से जुड़ी कथाएं: भक्त पवित्र गंगा नदी का जल कांवड़ में भरकर गंगाजल से महादेव का जलाभिषेक करते हैं।

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श्रावण मास का दूसरा सोमवार , बोल बम के जयकारे से मगन हुआ पूरा प्रदेश बम-बम और हर-हर महादेव भोले के जयकारों के साथ शिवमंदिरों में भक्तो का रेला उमड़ पड़ा और आस्था के मेले से श्रद्धालु अभिभूत हो उठे। काशी, प्रयागराज, मथुरा, अयोध्या, लखीमपुर खीरी आदि जिलों में लोगों ने विधिविधान के साथ बाबा का जलाभिषेक और पूजा किया।

सावन के महीने में कांवर यात्रा का विशेष महत्व होता है। शिवभक्त कांवर में गंगाजल लेकर जाते हैं और इसी जल से अपने नजदीकी मंदिरों में जाकर महादेव का जलाभिषेक करते हैं। जानते हैं कांवड़ यात्रा से जुड़े महत्व और प्रचलित कथाओं के बारे में।

सावन का महीना शिवजी के साथ ही शिव भक्तों के लिए भी खास होता है। इस पूरे माह शिवभक्त भगवान की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। वहीं शिवालयों में भगवान शिवजी का जलाभिषेक किया जाता है। सावन माह में कांवड़ यात्रा का भी विशेष महत्व होता है। भक्त पवित्र गंगा नदी का जल कांवड़ में भरकर कई किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हैं और इसके बाद इस जल से भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया जाता है। भारत में कांवड़ यात्रा की परंपरा काफी पुरानी है।

कांवड़ यात्रा से जुड़ी कथाएं

कांवड़ यात्रा को लेकर कई कथाएं जुड़ी हैं। कहा जाता है कि भगवान श्रीराम, रावण, परशुराम, श्रवण कुमार द्वारा कांवड़ यात्रा शुरू की गई थी। परशुराम से जुड़ी कांवड़ की कथा के अनुसार,  भगवान परशुराम पहला कां​वड़ लेकर आए थे। उन्होंने शिवजी को प्रसन्न करने और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर के गंगाजल से उनका अभिषेक किया था।

वहीं श्रवण कुमार से जुड़ी कांवड़ यात्रा की कथा के अनुसार, श्रवण कुमार ने अपने नेत्रहीन माता-पिता को कंधे पर कांवड़ में बैठाकर यात्रा कराई और गंगा स्नान कराया साथ ही शिवजी का भी गंगाजल से अभिषेक किया। मान्यता है कि यहीं से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।

कांवड़ यात्रा की एक पौराणिक कथा रावण से जुड़ी हुई है जो काफी प्रचलित है। इसके अनुसार, लंकापति रावण के समय से ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत मानी जाती है। कहा जाता है कि, जब भगवान शिवजी ने समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को पी लिया था तो उनके कंठ में तीव्र जलन होने लगी थी। तब शिवजी ने अपने भक्त रावण को स्मरण किया और रावण कांवड़ से जल लेकर भगवान शिव के पास पहुंचे और उनका ​अभिषेक किया।

कांवड़ यात्रा तीन प्रकार की होती हैं और इन तीनों में सबसे कठिन कांवड़ यात्रा डाक कांवड़ यात्रा होती है। डाक कांवड़ यात्रा में कांवड़िए विश्राम नहीं कर सकते हैं।

सावन के महीने में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व है। सावन के महीने में सड़कों पर कांवड़ यात्रा करने वालों का हुजूम निकलता है। भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए भक्त गंगा नदी से कांवड़ में गंगाजल भरकर लाते हैं। ऐसी मान्यता है कि श्रावण महीने में भगवान शिव को गंगा जल चढ़ाने से भगवान शिव की विशेष कृपा बनी रहती हैं। कांवड़ यात्रा तीन तरह की होती हैं, डाक कांवड़ यात्रा, दांडी कांवड व खड़ी कांवड़ यात्रा। हिंदुओं में डाक कांवड़ यात्रा सबसे कठिन होती है। आइए जानते हैं डाक कांवड़ यात्रा क्यों सबसे अलग है।

जानिए क्या है डाक कांवड़

डाक कांवड़ यात्रा बाकी कांवड़ यात्रा से अलग है। डाक कांवड़ यात्रा लंबी होती है। डाक कांवड़ यात्रा में कांवड़िए शिव के जलाभिषेक तक बिना रुके लगातार चलते रहते हैं और शिव धाम तक की यात्रा एक निश्चित समय में तय करते हैं। डाक कांवड़ यात्रा में रुका नहीं जाता है। यह लगातार करनी पड़ती है। ऐसा माना जाता है कि कांवड़िए कांवड़ ले लेकर लंबी यात्रा करते हैं, लेकिन बीच में विश्राम भी लेते हैं, लेकिन डाक कांवड़ यात्रा में विश्राम लेने की अनुमति नहीं होती है। डाक कांवड़ यात्रा में जब एक बार कांवड़ उठा लेते हैं तब बिना स्थान पर पहुंचे हुए रुकते नहीं हैं।

डाक कांवड़ यात्रा को लेकर ऐसी मान्यता है कि यात्रा के दौरान कांवड़िए मूत्र मल भी नहीं त्यागते हैं। अगर नियमों को कोई तोड़ता है तो यह यात्रा खंडित हो जाती है। डाक कांवड़ कांवड़िए समूह में चलते हैं लेकिन कई बार वाहन का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।डाक कांवड़ियों के लिए तामसिक भोजन करने की मनाही होती है और उन्हें सात्विक रहने की सलाह दी जाती है।

(उपरोक्त लेख सामाजिक धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। न्यूज़ एक्सप्रेस इंडिया इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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