जंगल में लकड़ी चीरने की मजदूरी करते थे। मजदूरी के दौरान ही प्रत्याशी बनाने की खबर मिली। दो बार चुने गए विधायक.

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यह कहावत तो आपने सुनी होगी जब ऊपर वाला देता है देता छप्पर फाड़ के या दूसरे शब्दों में कहें जब ऊपरवाला मेहरबान हो तो क्या कुछ नहीं हो सकता. किसी भी व्यक्ति का जीवन बदल जाता है. उत्तराखंड की चीन सीमा से लगी धारचूला विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास बड़ा रोचक रहा है। 2002 के पहले चुनाव में करीब 85 हजार वोटरों वाली यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हुई। इस क्षेत्र में मात्र तीन जनजाति शौका, बरपटिया और वनराजि रहती हैं। जिसमें सबसे कम यानी करीब 650 की आबादी आदिम जनजाति वनराजि की थी।

बेहद गरीब हैं आदिम जनजाति वनराजि

धारचूला में शौका समाज शिक्षा, राजनीति, व्यापार व अन्य क्षेत्रों में अग्रणी रहने के साथ प्रशासनिक ओहदों पर अधिक हैं। बरपटिया समाज के लोग मुनस्यारी के बारह गांवों में निवास करते हैं।

इनकी पहचान सांस्कृतिक, खेतीबाड़ी से अधिक है। दोनों जनजातियों का आर्थिक स्तर भी ठीक है। मगर वनराजि समाज जंगलों के किनारे रहने वाला अशिक्षित व अभावग्रस्त रहा है। पब्लिक ने तब इसी समाज के आठवीं पास युवक गगन रजवार को विधायक बनाकर विधानसभा भेज दिया।

इस तरह बनी नए समीकरण की पटकथा

सीट के जनजाति के लिए आरक्षित होने पर स्थानीय अधिसंख्य नेताओं ने एकराय होकर एक नए समीकरण की पटकथा लिख डाली। सीट को जनजाति के लिए आरक्षित करने को गलत बताते हुए इसके विरोध का अनोखा तरीका ढूंढा। वनराजि समाज के व्यक्ति को सर्वदलीय प्रत्याशी बनाने और उसके पक्ष में मतदान करने का पूरा खाका तैयार किया।

वनराजि समाज के उस समय सबसे अधिक शिक्षित यानि आठवीं पास जौलजीबी के निकट किमखोला गांव निवासी गगन रजवार को प्रत्याशी के रूप में चुना गया। गगन तब अन्य वनराजियों की तरह जंगल में लकड़ी चीरने की मजदूरी करते थे। लकड़ी के चीरने के दौरान ही उन्हें प्रत्याशी बनाने की सूचना दी गई। हालांकि उन्हें पहले तो प्रत्याशी बनाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी।

मुश्किल था प्रत्याशी बनने के लिए तैयार करना

समाज की मुख्यधारा से कटे जंगल के किनारे रहने वाले इस समाज के लोगों का सामान्य सामाजिक, राजनीतिक जीवन से किसी तरह का वास्ता नहीं था। करीब एक पखवाड़ा गगन रजवार को चुनाव लड़ने के लिए मनाने में लग गया। जैसे-तैसे गगन रजवार का नामांकन किया गया। 2002 का चुनाव प्रचार रणनीतिकारों ने संभाला।

गगन रजवार को गांव-गांव ले जाया गया। विधानसभा क्षेत्र की अधिकांश जनता ने तो गगन रजवार को पहली बार ही देखा। गगन भारी मतों से विजयी हुए। इस चुनाव में कांग्रेस ने प्रद्युम्न गब्र्याल और भाजपा ने गोवर्धन बृजवाल को अपना प्रत्याशी बनाया था।

2007 तक पांच वर्ष विधायक रहने के बाद गगन रजवार भी राजनीति सीख चुके थे। सीट आरक्षित ही थी । पुराना ही खेल खेला गया। फिर से गगन रजवार विजयी हुए।

गगन रजवार ने तरक्की के नाम पर पिथौरागढ़ के सल्मोड़ा में मकान बनाया है। जौलजीबी में आरा मशीन लगाई है। गगन रजवार इस समय भाजपा से जुड़े हैं।

2012 में सीट सामान्य हो गई। कांग्रेस के हरीश धामी विधायक चुने गए। 2014 के उपचुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत भी इसी सीट से विधायक चुने गए। इस बार बीजेपी ने धारचूला सीट पर प्रत्याशी के रूप में धन सिंह धामी को टिकट दिया है.

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