18 और 19 अक्तूबर को हुई प्रलयंकारी बारिश ने उत्तराखंड के कुमाऊँ और गढ़वाल में जमकर तबाही मचाई थी, ज़्यादा प्रभावित इलाक़ों में नैनीताल, रामगढ़, चंपावत और रामनगर हैं

Rajeev for NEWS EXPRESS INDIA

सुबह का वक़्त था और जिम कॉर्बेट पार्क से लगे रामनगर के इलाक़े के एक बड़े होटल में शादी की रस्में चल रहीं थीं.

समारोह में लगभग 300 लोग थे. तभी बारिश शुरू हो गई, जो रह-रह कर बढ़ती चली गई. दोपहर तक तेज़ हवाओं और गरज के साथ मूसलाधार बारिश शुरू हो गई.

अल्मोड़ा से बहकर आने वाली कोसी नदी में जल स्तर बढ़ने लगा. सुंदरखाल के लोगों की बेचैनी बढ़ने लगी, क्योंकि नदी का पानी उनके खेतों तक आ गया था.

सुंदरखाल के रहने वाले सुरेंद्र कुमार, इसी होटल में काम करते हैं और जब नदी उफ़ान पर आने लगी, तो घरवालों ने उन्हें फ़ोन किया. तब तक रात हो चुकी थी.

घरवालों ने बताया कि पानी घर तक पहुँच गया है और धार भी तेज़ होती जा रही है. नदी में पहाड़ों से बहकर मलबा भी आ रहा था. फ़ोन पर घर वालों ने मदद करने की गुहार लगाई.

सबसे ज़्यादा प्रभावित इलाक़े

सुरेंद्र अपने गाँव जाना चाहते थे. लेकिन होटल के मालिकों का कहना था कि होटल में फँसे 300 लोगों को बचाना है, इसलिए स्थानीय लोग अपने घर नहीं जा सकते हैं.

18 और 19 अक्तूबर को हुई प्रलयंकारी बारिश ने उत्तराखंड के कुमाऊँ और गढ़वाल के कई हिस्सों में जमकर तबाही मचाई, जिसमे मरने वालों की संख्या अब 76 हो चुकी है.

राज्य के पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार के अनुसार बचाव दलों ने लगभग 10 हज़ार लोगों को बचाया है जबकि 50 हज़ार लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुँचाने में कामयाबी भी हासिल की है.

अशोक कुमार कहते हैं कि सबसे ज़्यादा 59 लोग कुमाऊँ में मारे गए हैं. राहत कार्य अब भी चल रहे हैं, जिनमें सेना के जवानों की भी मदद ली जा रही है.

सबसे ज़्यादा प्रभावित इलाक़ों में नैनीताल, रामगढ़, चंपावत और रामनगर हैं

बीबीसी से बात करते हुए सुरेंद्र ने कहा, “घर से फ़ोन पर फ़ोन आ रहे थे. मेरे परिवार के लोग मदद मांग रहे थे. नदी के बीच हमारा गाँव आ चुका था. मैं होटल से किसी तरह निकला. तब तक होटल भी पानी में डूब रहा था.”

“मैं गाँव की तरफ़ जाना चाह रहा था, लेकिन नदी का बहाव तेज़ था. राफ़्ट के सहारे किसी तरह पहुँचा. लेकिन मकान डूब चुका था. मेरे परिवार के लोग छत पर थे. मैं किसी तरह छत पर पहुँचा. हम सब फँस चुके थे. पानी बढ़ रहा था. धार तेज़ थी. मलबा बह रहा था.”

वो आगे बताते हैं कि उन्हें लग रहा था कि वो उनके ज़िंदगी की आख़िरी रात है. सारे घर वालों ने एक दूसरे को पकड़ रखा था.

वो कहते हैं, “सुबह होने लगी. राहत दल राफ़्ट के ज़रिए हम तक पहुँचने की कोशिश कर रहा था. लेकिन तेज़ बहाव में ऐसा हो ना सका. हम फँसे हुए थे छत पर. दोपहर के तीन बज चुके थे, तब हमें हेलिकॉप्टर की आवाज़ सुनाई दी. मेरी छत पर पड़ोसियों को मिलाकर कुल 25 लोग थे. सेना के जवानों ने एक-एक कर हमें बचाया.”

सुरेंद्र, उनका परिवार और पड़ोसी सुरक्षित स्थान पर पहुँच गए. लेकिन सुंदरखाल के लगभग 25 मकान बह चुके थे.

कुछ लोगों को सुंदरखाल के ही छोटे से स्थानीय स्कूल में रखा गया है, जबकि कई परिवार ऐसे भी हैं, जिनके पास न रहने को छत है और ना खाने-पीने का कोई दूसरा इंतज़ाम ही है.

सुंदरखाल के आगे मोहान का चुखम गाँव अब नदी के बीचों बीच आ गया है, जो कई दिनों तक पानी में ही डूबा रहा. अब पानी तो कम हुआ, लेकिन वहाँ तक जाने के लिए राफ़्ट का ही इस्तेमाल करना पड़ रहा है.

मोहान के शिव कुमार बताते हैं कि इस भीषण बारिश के बाद कोसी नदी ने अपना रास्ता बदल लिया है और इसका दायरा भी बढ़ गया है.

ये नदी मोहान और सुंदरखाल के इलाक़े में अब 900 मीटर तक शहर की तरफ़ आ गई है और इस 900 मीटर के दायरे में जितने खेत, गाँव और मकान थे, अब नदी में समा चुके हैं.

सुंदरखाल के योगेंद्र कुमार कहते हैं कि पिछले छह दिनों में बेघर हुए लोगों के लिए कोई वैकल्पिक इंतज़ाम नहीं किया गया है.

कुछ तो स्कूल में हैं, जबकि बड़ी संख्या में जिन लोगों को हेलिकॉप्टर से बचाया गया, उनके लिए रहने का कोई इंतज़ाम नहीं किया गया है.

प्रशासनिक अधिकारियों ने बीबीसी को बताया कि हर प्रभावित परिवार को 3800 रुपये की रक़म अंतरिम सहायता के रूप में दी गई है.

लेकिन अधिकारियों का कहना है कि पुनर्वास में इसलिए परेशानी आ रही है क्योंकि ये इलाक़ा सुरक्षित वन क्षेत्र के अधीन है, जहाँ किसी भी तरह से लोगों को पुनर्वास के लिए ज़मीन नहीं दी जा सकती है.

सुंदरखाल में जो लोग रह रहे हैं, वो मूलतः वे लोग हैं जो दशकों से उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा से विस्थापित हुए हैं. ये वो लोग हैं, जो उत्तराखंड के पहाड़ों पर रहा करते थे, लेकिन इनके गाँव या तो भूस्खलन में या बारिश की वजह से नष्ट हो गए.

सुंदरखाल के रहने वाले रबी राम बताते हैं कि 1973 में जब नारायण दत्त तिवारी अविभाजित उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तो प्राकृतिक आपदा से प्रभावित कुमाऊँ के लोगों के लिए उन्होंने रामनगर के इस इलाक़े में पुनर्वास की योजना बनाई और लोगों को यहाँ बसाया गया.

लेकिन संरक्षित वन क्षेत्र होने की वजह से इन विस्थापितों को न तो बिजली दी गई और ना ही पक्के मकान बनाने की अनुमति.

अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे सुंदरखाल के रहने वाले लोग यहाँ प्राकृतिक आपदाओं का सामना करते रहे हैं.

हाल की भीषण बारिश ने सुंदरखाल के लोगों के लिए और भी ज़्यादा मुसीबत खड़ी कर दी है. इनके जीवन एक बार फिर मँझधार में जा फँसे हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *