VS CHAUHAN
जहां मुस्लिम देशों में आज भी आधुनिकता के दौर में महिलाओं को कई प्रकार से आजादी नहीं दी जाती. या दूसरे शब्दों में यह कहें उन पर कई तरह के प्रतिबंध होते हैं. ऐसे में पाकिस्तान की एक ट्राइबल जनजाति में आधुनिकता की झलक दिखाई देती है. जिस प्रकार से गैर मुस्लिम देशों में महिलाओं को कई तरह के निर्णय लेने की आजादी होती है. पाकिस्तान (Pakistan) के अफगानिस्तान (Afghanistan) से सटे बॉर्डर पर सटी कलाशा (Kalasha) जनजाति पाकिस्तान के सबसे कम संख्या वाले अल्पसंख्यकों (minority in Pakistan) में है. इसके सदस्यों की संख्या लगभग पौने 4 हजार है. वैसे ये ट्राइब अपनी अजीबोगरीब और कुछ मामलों में आधुनिक परंपराओं के लिए भी जानी जाती है. जैसे समुदाय की विवाहित महिलाओं को दूसरा पुरुष पसंद आ जाए तो वे अपनी शादी तोड़ देती हैं. जानें, ऐसी ही कुछ खासियतें.
कलाशा समुदाय खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में चित्राल घाटी के बाम्बुराते, बिरीर और रामबुर क्षेत्र में रहता है. ये समुदाय हिंदू कुश पहाड़ों से घिरा हुआ है और मानता है कि इसी पर्वत श्रृंखला से घिरा होने की वजह से उसकी सभ्यता और संस्कृति सुरक्षित है. इस पहाड़ के कई ऐतिहासिक संदर्भ भी हैं, जैसे इसी इलाके में सिकंदर की जीत के बाद इसे कौकासोश इन्दिकौश कहा जाने लगा. यूनानी भाषा में इसका अर्थ है हिंदुस्तानी पर्वत. इन्हें सिकंदर महान का वंशज भी माना जाता है.
पाकिस्तान में पहले नहीं थी मान्यता
साल 2018 में पहली बार कलाशा जनजाति को पाकिस्तान की जनगणना के दौरान अलग जनजाति के तौर पर शामिल किया गया. इसी गणना के अनुसार इस समुदाय में कुल 3,800 लोग शामिल हैं. यहां के लोग मिट्टी, लकड़ी और कीचड़ से बने छोटे-छोटे घरों में रहते हैं और किसी भी त्यौहार पर औरतें-मर्द सभी साथ मिलकर शराब पीते हैं. इस जनजाति में संगीत हर मौके को खास बना देता है. ये त्यौहार पर बांसुरी और ड्रम बजाते हुए नाचते-गाते हैं. हालांकि अफगान और पाकिस्तान के बहुसंख्यकों से डर की वजह से ये ऐसे मौकों पर भी साथ में पारंपरिक अस्त्र-शस्त्र से लेकर अत्याधुनिक बंदूकें भी रखते हैं.
औरतें चलाती हैं घर
वैसे कलाशा जनजाति में घर के लिए कमाने का काम ज्यादातर औरतों ने संभाला हुआ है. वे भेड़-बकरियां चराने के लिए पहाड़ों पर जाती हैं. घर पर ही पर्स और रंगीन मालाएं बनाती हैं, जिन्हें बेचने का काम पुरुष करते हैं. यहां की महिलाएं सजने-संवरने की खासी शौकीन होती हैं. सिर पर खास किस्म की टोपी और गले में पत्थरों की रंगीन मालाएं पहनती हैं.
त्योहार पर होता है चुनाव
यहां सालभर में तीन त्यौहार होते हैं- Camos, Joshi और Uchaw. इनमें से Camos को सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है जो दिसंबर में मनाया जाता है. यही वो मौका है जिसमें महिलाएं -पुरुष और लड़के-लड़कियां आपस में मेल-मुलाकात करते हैं. इसी दौरान बहुत से लोग रिश्ते में जुड़ जाते हैं. हालांकि इस जनजाति के लोगों में संबंधों को लेकर इतना खुलापन है कि महिलाओं को अगर दूसरा पुरुष पसंद आ जाए तो वे उसके साथ रह सकती हैं. पाकिस्तान जैसे देश में जहां महिला आजादी की बात भी फतवे ला सकती है, ऐसे में इस तबके में औरतों को मनपसंद साथी चुनने की पूरी आजादी है. वे पति चुनती हैं, साथ रहती हैं लेकिन अगर शादी में साथी से खुश नहीं हैं और कोई दूसरा पसंद आ जाए तो बिना हो-हल्ला वे दूसरे के साथ जा सकती हैं.
रोकटोक भी काफी
हालांकि आधुनिक तौर-तरीकों के बाद भी महिलाओं पर कई बंदिशें हैं. जैसे पीरियड्स के दौरान वे घर से बाहर बने घर में रहने को मजबूर की जाती हैं. इस दौरान उन्हें अपवित्र माना जाता है और ऐसी मान्यता है कि घर में रहना या परिवार के लोगों को छूने पर ईश्वर नाराज हो जाएंगे, जिससे बाढ़ या अकाल जैसे हालात हो सकते हैं. इसे बशाली घर कहा जाता है जिसकी दीवार पर लिखा होता है कि इसे छूना मना है.
समुदाय के कई तौर-तरीके अलग हैं जैसे मौत इनके लिए रोने नहीं, खुशी का, त्यौहार का मौका होता है. क्रियाकर्म के दौरान ये लोग जाने वाले के लिए खुशी मनाते हुए नाचते-गाते और शराब पीते हैं. वे मानते हैं कि कोई ऊपरवाले की मर्जी से यहां आया और फिर उसी के पास लौट गया.
वक्त के साथ पाकिस्तान और अफगानी सीमा पर तनाव बढ़ने की वजह से कलाशा जनजाति पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है. वे मानते हैं कि पहले हैंडीक्राफ्ट के काम से उनकी कमाई हो जाती थी लेकिन अब टूरिस्ट कम और लगभग नहीं के बराबर आते हैं. ऐसे में वे मुफलिसी से जूझ रहे हैं. यहां तक कि नई पीढ़ी दूसरे देशों में जाने को भी तैयार हो रही है.