चामुंडा देवी मंदिर शक्ति के 51 शक्ति पीठो में एक है.इंदिरा गांधी कांगड़ा स्थित चामुंडा देवी की जबरदस्त अनुयायी थीं. पूरी कहानी.

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चामुंडा देवी मंदिर शक्ति के 51 शक्ति पीठो में एक है. चामुंडा देवी का मंदिर समुद्र तल से 1000 मी. की ऊंचाई पर स्थित है. ये मंदिर धर्मशाला से 15 किमी की दूरी पर है. चामुंडा देवी मंदिर बंकर नदी के किनारे पर बसा है. चामुंडा देवी मंदिर माता काली को समर्पित है. असुर चण्ड-मुण्ड के संहार के कारण माता का नाम चामुंडा पड़ गया.चामुंडा मंदिर सभी शक्तिपीठों में एक प्रसिद्ध मंदिर है. उन्होंने कहा कि चामुंडा नंदीकेश्वर के नाम से इस जगह को श्रद्धालु जानते हैं. यहां शिव शक्ति का भी स्थान है. चामुंडा मां भगवती का नाम है और नंदीकेश्वर भगवान शिव का नाम है. जालंधर पीठ के अंतर्गत यह स्थान आता है. जालंधर राक्षस को द्वारपाल के रूप में जाना जाता है”. इस स्थान पर चंड और मुंड नाम के दो रक्षस थे, जो काफी बलशाली थे. उन्हें देवताओं से वरदान मिला हुआ था कि उन्हें कोई नहीं मार सकेगा.इसके बाद सभी देवता इकट्ठे हुए और अपनी-अपनी शक्ति से एक पिंड तैयार किए और उस पिंड को स्त्री का रूप दिया और उस स्त्री को अंबिका का नाम दिया. इसी के साथ उस स्त्री को चंड और मुंड को मारने का काम देवताओं द्वारा दिया गया.

इसके बाद मां चामुंडा और चंड-मुंड राक्षसों के बीच युद्ध हुआ. युद्ध में मां चामुंडा ने चंड-मुंड राक्षसों का सिर धड़ से अलग करके वध कर दिया.तभी से इस मंदिर में मां चामुंडा देवी की पूजा अर्चना की जाती है

पौराणिक कथा इस प्रकार है जब माता शक्ति ने चरण मुंड का वध किया उसे वक्त में बेहद क्रोध में थी तब लोग उन्हें शांत करने के लिए किसी न किसी की बली के रूप में पेश करने  लगे एक शिव भक्त महिला के बेटे की बारी आ गई उसने अपने बेटे को भेज दिया लेकिन भगवान शिव से अपने बेटे की रक्षा की गुहार लगाई तब भगवान शिव ने एक बालक का रूप धारण किया और बली के लिए जा रहे बच्चे के संग खेलने लगे देरी के कारण मां चामुंडा और गुस्से में आ गई तब उसे बच्चों न तेरी का कारण कोई दूसरा बच्चा था जिसने उसे खेत में लगा लिया तब मां चामुंडा को उसे बच्चों को छोड़ दूसरे बच्चे पर बहुत गुस्सा आया . बली के लिए बालक रूपी शिव का पीछा किया बालक रूपी शिव पर पांच विशाल पत्थर बरसाए उनमें से एक पत्थर बालक रूपी शिव ने एक उंगली पर उठा लिया तब मां चामुंडा समझ गई वह तो भगवान शिव है तब मां चामुंडा का क्रोध शांत हुआ उन्होंने भगवान शिव से माफी मांगी और उन्हें वहीं स्थापित होने का आग्रह किया तब से भगवान शिव भी एक पिंडी के रूप में स्थापित है इसलिए मंदिर को चामुंडा नादिकेश्वर धाम भी कहा जाता है

इंदिरा गांधी कांगड़ा स्थित चामुंडा देवी शक्तिपीठ की जबरदस्त अनुयायी थीं.

इंदिरा गांधी हिमाचल के कांगड़ा स्थित चामुंडा देवी शक्तिपीठ की जबरदस्त अनुयायी थीं. वहां हमेशा पूजा करने ही नहीं जाती थीं बल्कि उनके नाम से वहां लगातार उनका दिया जलाया जाता था. एक बार किसी कारणवश इंदिरा गांधी ने वहां जाने का कार्यक्रम तय किया लेकिन किसी कारणवश नहीं जा पाईं. इससे वहां का पुजारी नाराज हो गया. इसके अगले ही दिन उनके बेटे संजय गांधी प्लेन क्रैश में मारे गए. इंदिरा ये मानती रहीं कि ये शायद चामुंडा देवी नाराज हो गईं थीं. उन्होंने ये बात अपनी मित्र पुपुल जयकर से कही भी कि संजय की मृत्यु उनकी गलती की वजह से हुई.दरअसल इंदिरा गांधी को संजय गांधी की मृत्यु से एक दिन पहले बेटे के साथ ही चामुंडा आना था. वह 1980 में चुनाव जीतकर फिर से प्रधानमंत्री बन चुकी थीं. उन्हें याद दिलाया गया कि मैडम आपको चामुंडा देवी जाना है. लेकिन किसी कारणवश नहीं जा पाईं.

पुजारी ने बताया कि यह स्थान शमशान भूमि भी है. इस जगह पर हर दिन एक मुर्दे को जलाया जाता है. जिस दिन सब नहीं आता है उसे दिन घास का पुतला बनाकर जलाया जाता है उन्होंने कहा कि एक अलौकिक स्थान है और जो भी श्रद्धालु यहां पर आकर अपनी मनोकामना मांगता है उसे मां उसे अवश्य पूरा करती हैं”.

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