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हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के नगरकोट में स्थित है माता ब्रजेश्वरी देवी मंदिर (Mata Brajeshwari Devi Kangra Mandir) जो शक्तिपीठों में से एक है और प्रसिद्ध नौ देवी यात्रा में तीसरे स्थान पर आता है। ब्रजेश्वरी देवी मंदिर को हिमाचल प्रदेश के भव्य मंदिरों में से एक माना जाता है। हालाँकि इस मंदिर की भव्यता और सुंदरता भी इस्लामिक कट्टरपंथ की भेंट चढ़
गई। मुस्लिम आक्रान्ताओं ने कई बार इस मंदिर को लूटा और नुकसान पहुँचाया, लेकिन हर बार यह मंदिर हिंदुओं के अथक प्रयासों के कारण पुनः स्थापित हो जाता।
पांडवों के द्वारा बनवाया गया ब्रजेश्वरी देवी मंदिर
भगवान शिव के द्वारा माता सती की मृत देह को लेकर क्रोध में तांडव किए जाने के कारण भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता की देह को कई टुकड़ों में विभाजित कर दिया था। इस दौरान इस स्थान पर माता सती का बायाँ वक्ष गिरा था। यही कारण है कि यह मंदिर शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
हालाँकि मूल मंदिर की स्थापना महाभारत काल के दौरान पांडवों ने की थी। एक दिन पांडवों ने अपने स्वप्न में देवी दुर्गा को देखा था, जिसमें उन्होंने पांडवों को बताया कि वह नगरकोट गाँव में स्थित हैं और यदि पांडव चाहते हैं कि वे सुरक्षित रहने के साथ हमेशा विजयी रहें तो उन्हें उस क्षेत्र में एक मंदिर बनाना चाहिए। उसी रात पांडवों ने नगरकोट गाँव में उनके लिए एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया।
मंदिर की संरचना और माता ब्रजेश्वरी देवी
मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार किसी किले के प्रवेश द्वार की तरह बनाया गया है। मंदिर का परिसर भी किले की ही तरह पत्थर की दीवारों से घिरा हुआ है। मुख्य मंदिर के पीछे छेत्रपाल और भगवान शिव का भी मंदिर बना हुआ है। मंदिर परिसर में ही भगवानशिव के ही एक रूप भैरव का मंदिर भी है। इसके अलावा मंदिर में ध्यानु भक्त की भी एक मूर्ति मौजूद है, जिसने माता के चरणों में अपना शीश अर्पित कर दिया था।मंदिर के गर्भगृह में माता ब्रजेश्वरी देवी तीन पिंडी के रूप में विराजमान हैं। पहली प्रमुख पिंडी माता ब्रजेश्वरी देवी हैं। दूसरी पिंडी माँ भद्रकाली और तीसरी सबसे छोटी पिंडी माँ एकादशी हैं। मंदिर में अर्पित किया जाने वाला नैवेद्य भी तीन भागों में माँ को अर्पित किया जाता है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी के दिन चावल का प्रयोग वर्जित है लेकिन यहाँ माँ एकादशी को चावल का ही भोग लगाया जाता है।
नष्ट हुआ लेकिन हर बार अपने मूल वैभव की ओर लौटा मंदिर
धन-धान्य से संपन्न माता ब्रजेश्वरी देवी का यह मंदिर इस्लामिक कट्टरपंथियों के निशाने पर भी आया। सन् 1009 के दौरान महमूद गजनवी ने इस मंदिर को लूटा और यहाँ से कई टन सोना और अन्य बहुमूल्य वस्तुएँ अपने साथ ले गया।
गजनवी ने इस मंदिर को 5 बार लूटा और नष्ट किया। गजनवी के बाद मोहम्मद बिन तुगलक और सिकंदर लोधी ने भी इस मंदिर को लूटा और साथ ही साथ मंदिर को भारी नुकसान पहुँचाया। हालाँकि हर बार हिन्दू अथक परिश्रम करके और अपने सामर्थ्य के अनुसार मंदिर को पुनः उसका वैभव प्रदान कर देते थे।
इसके बाद सन् 1905 में एक तीव्र भूकंप के कारण मंदिर पूरी तरह से नष्ट हो गया लेकिन अंततः एक बार फिर भक्तों और सरकार के अथक प्रयासों के कारण मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ। आज हम जो मंदिर देखते हैं, यह भूकंप के बाद ही बनाया गया है।
भविष्य की घटनाओं की जानकारी देता है मंदिर
भविष्य की घटनाओं की जानकारी देता है मंदिर
जम्मू कश्मीर की खीर भवानी माता की तरह इस मंदिर में स्थित भैरव बाबा भी भविष्य में होने वाली अनहोनी घटना की पूर्ण जानकारी देते हैं। कहा जाता है कि जब भी आसपास के क्षेत्र में कोई अनहोनी होने की आशंका होती है तो मंदिर में स्थापित लगभग 5000साल पुरानी भैरव बाबा की प्रतिमा से पसीना और आँखों से आँसू गिरने शुरू हो जाते हैं। मंदिर के पुजारी इसके बाद विशाल यज्ञ का आयोजन करते हैं और माता बज्रेश्वरी देवी से संकट को टालने का अनुरोध करते हैं।
कैसे पहुँचें?
कांगड़ा से सात किलोमीटर की दूरी पर एक हवाईअड्डा है, जो दिल्ली से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से 23 किमी की दूरी पर स्थित जुबरहट्टी में भी एक हवाईअड्डा है, जहाँ दिल्ली से विमान के माध्यम से पहुँचा जा सकता है। जुबरहट्टी से कांगड़ा की दूरीलगभग 215 किमी है। इसके अलावा कांगड़ा से चंडीगढ़ हवाईअड्डे की दूरी भी लगभग 215 किमी ही है। पठानकोट, कांगड़ा से सबसे नजदीक स्थित ब्रॉड गेज रेल मुख्यालय है, जिसकी दूरी लगभग 90 किमी है। सड़क मार्ग से भी कांगड़ा पहुँचना काफी आसान है। कांगड़ा, धर्मशाला से लगभग 18 किमी दूर ही स्थित है, जो कई बड़े शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है।