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उत्तराखंड (Uttarakhand) में प्रदेश के मूल निवासियों की पहचान का 10 दिवसीय अभियान शुरू कर दिया गया है। इस अभियान के तहत प्रदेश में रहने वाले ‘बाहरियों’ की पहचान की जाएगी। उत्तराखंड पुलिस की ओर से राज्य के नागरिकों का वेरिफिकेशन कराया जा रहा है। सत्यापन के पहले दिन प्रदेश में रहने वाले 4094 गैर मूल निवासियों की जांच का दावा किया गया है। इसमें से 201 संदिग्धों की पहचान की गई है। संदिग्धों में 32 श्रमिक, 97 हॉकर और 46 किराएदार पाए गए। इन लोगों ने अपने निवास का उचित प्रमाण नहीं दिखाया। पुलिस अधिकारियों ने कहा है कि इन सभी 201 संदिग्धों के खिलाफ प्रिवेंटिव ऐक्शन लिया गया है।
उत्तराखंड पुलिस की ओर से कार्रवाई के बाद सवाल खड़े होने लगे हैं पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने चुनाव से पहले समान नागरिक संहिता और लोगों की पहचान जैसे मुद्दों पर अपनी राय रखी थी। इसके बाद से अभियान शुरू हो गया है। राज्य पुलिस की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के तहत पुलिस वेरिफिकेशन के पहले दिन 4094 लोगों के पृष्ठभूमि की जांच की गई। इनमें से 1770 मजदूर, 1043 फेरीवाले, 1147 किराएदार और 134 अन्य लोग थे।
रिपोर्ट के अनुसार, सीएम पुष्कर सिंह धामी के पास हरिद्वार से शिकायत आई थी। इस शिकायत में कहा था कि पहाड़ी पर कई संदिग्ध आकर बस गए हैं। इन गैर-हिंदुओं ने अपना व्यवसाय भी शुरू कर दिया है। इन लोगों को चार धाम क्षेत्र से प्रतिबंधित करने की मांग की गई थी। कई संतों की ओर भी इस मामले को उठाया गया था। इसके बाद सीएम ने जल्द ही कार्रवाई का आश्वासन दिया था। उसी समय माना गया था कि नागरिकों की जांच की कार्रवाई शुरू होगी। हालांकि, सीएम पुष्कर सिंह धामी ने पूरे प्रदेश में ही 10 दिनों का वेरिफिकेशन अभियान शुरू करने का आदेश दिया।
कॉन्ग्रेस ने शुरू किया विरोध
सरकार की ओर से चलाए जा रहे नागरिकों के वेरिफिकेशन अभियान पर कांग्रेस ने गहरी आपत्ति दर्ज की है। पार्टी प्रवक्ता गरिता दसौनी ने पुष्कर सिंह धामी के निर्णय पर करारा हमला बोला है। पार्टी का कहना है कि एक विशेष समुदाय को लक्षित करने के लिए इस प्रकार का अभियान चलाया जा रहा है। हम किसी भी सत्यापन अभियान के खिलाफ नहीं है, लेकिन इसे कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए किया जाना चाहिए। सरकार ने इस अभियान को चार धामा यात्रा से जोड़ा है। यह स्पष्ट रूप से एक एजेंडे के तहत चलाया गया अभियान लगता है।
पार्टी प्रवक्ता ने कहा कि अगर इस अभियान का असली कारण कानून व्यवस्था बनाए रखना है तो इसे पूरे साल चलाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वे ऐसा नहीं करेंगे, क्योंकि अभियान एक राजनीतिक एजेंडे के तहत चलाया जा रहा है। सरकार की ओर से अल्पसंख्यक समुदाय को इसके जरिए निशाना बनाया है। इसलिए, यह अभियान सांप्रदायिक है.
पुलिस का आरोपों पर खंडन
उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार ने अभियान के पीछे किसी प्रकार के छुपे मकसद वाले आरोपों का खंडन किया है। उन्होंने कहा कि हम प्रदेश के सभी 13 जिलों में बिना किसी पूर्वाग्रह के अभियान चला रहे हैं। सभी समुदायों से जुड़े लोगों की जांच की जा रही है। प्रदेश में शांति और सद्भाव में किसी भी तरह की गड़बड़ी को रोकने के लिए सभी संदिग्ध तत्वों के खिलाफ कार्रवाई होगी, चाहे वे किसी भी धर्म को मानने वाले क्यों न हों।
उत्तराखंड भाजपा ने भी सरकार के इस अभियान का समर्थन किया है। भाजपा मीडिया प्रभारी मनवीर सिंह चौहान ने कहा कि इस अभियान का उद्देश्य उत्तराखंड में किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लए असामाजिक तत्वों पर अंकुश लगाना है। कांग्रेस पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि विपक्षी दल इसे अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के कदम के रूप में देखती है। इस कारण उनकी तुष्टिकरण की नीति है।