Hardyes goswami for NEWS EXPRESS INDIA
उत्तराखंड के जंगलों में धधक रही आग से अब ग्लेशियरों में ब्लैक कार्बन जमने का खतरा है, वहीं इनके गलने की रफ्तार भी काफी बढ़ सकती है. खतरा किस कदर होगा, अभी इसे समझना बाकी है. लेकिन यह तो समझ में आ ही रहा है कि पर्यावरण और वन्यजीवन के लिए बड़ा खतरा पैदा हो चुका है. इधर, वनों की आग के साथ ही पराली जलाए जाने से कई रिहाइशों इलाकों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं. किसी को सांस लेने में तकलीफ है तो किसी की आंखों में जलन होती है.
पहाड़ी इलाकों में जंगल की आग ने बेशकीमती वन संपदा को तो तबाह किया ही है, अब इसका प्रभाव उच्च हिमालयी इलाकों के ग्लेशियरों पर भी पड़ रहा है. हालात ये हैं कि ग्लेशियरों पर ब्लैक कार्बन की एक हल्की परत जमने लगी है. यही नहीं ब्लैक कार्बन जमने से ग्लेशियरों के गलने की रफ्तार बढ़ेगी. जीबी पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान के निदेशक डॉ किरीट कुमार का कहना है कि ब्लैक कार्बन जमने से ग्लेशियरों को खतरा कितना होगा, अभी इसकी स्टडी होनी है. कुमार ने ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलने की आशंका भी बताई.
कितनी ज़हरीली हो चुकी है हवा?
आग लगने की घटनाओं के लगातार बढ़ने से हवा की गुणवत्ता भी खासी खराब हो रही है. हालात ये हैं कि आम तौर पर जहां पर्यावरण में ब्लैक कार्बन 2 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होता था, वहीं इन दिनों ये 15 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पहुंच गया है. यही नहीं, आग लगने से कार्बन के साथ ओज़ोन की मात्रा में भी खासा इज़ाफा हुआ है.