VS CHAUHAN KI REPORT
शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. ये बात सभी लोग जानते हैं, लेकिन कई लोग इसका सेवन करते हैं. अब हर खुशी के अवसर पर लोग शराब का सेवन कर रहे है, जिन राज्यों में शराब बैन है, वहां अलग-अलग जुगाड़ से लोग शराब खरीद रहे हैं. इतना ही नहीं, कई लोग शराब पर लगाए गए बैन को भी गलत भी बताते हैं और उनका तर्क होता है कि उन्हें अधिकार है कि वो कुछ भी खाएं और कुछ भी पीएं. क्या शराब के लिए भी ऐसा ही है, क्या शराब पीना आपका अधिकार है?
आज हम जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर क्या शराब सही में आपका मौलिक अधिकार है, जिसे पीने से आपको रोका नहीं जा सकता है. जानते हैं कोर्ट के उन फैसलों के बारे में बारे में, जो कोर्ट ने शराब को मौलिक अधिकार बताए जाने को लेकर लिए हैं…
क्या सही में है मौलिक अधिकार?
अगर सीधे शब्दों में कहें तो शराब पीना मौलिक अधिकार नहीं है. कोर्ट ने कई बार अपने फैसलों में माना है कि शराब पीना मौलिक अधिकार की श्रेणी में नहीं है और राज्य इसकी बिक्री को अपने हिसाब से नियंत्रित कर सकते हैं. जब साल 1960 में भी गुजरात ने बॉम्बे प्रोहिबिएशन एक्ट 1949 को बरकरार रखा था, जिसके तरह शराब को बैन कर दिया गया था. इसके साथ ही इस एक्ट के सेक्शन 12 और सेक्शन 13 में स्टेट को अधिकार दिया है कि वो अपने हिसाब से शराब की बिक्री को नियंत्रित रख सकते हैं.
हालांकि, इसके अलावा इंडस्ट्रीयल कार्यों के लिए शराब की बिक्री को अलग रखा गया है, ऐसे में बैन लगे राज्यों में इंडस्ट्रीयल कार्यों के लिए शराब की खरीददारी की जा सकती है. इसमें शराब पीने को लेकर मनाही है. वैसे तो आर्टिकल 19 (1) (G) कहता है कि कोई भी व्यक्ति अपने हिसाब से किसी चीज का व्यापार कर सकता है, लेकिन कई चीजों को इनसे दूर रखा गया है, जो समाज के लिए विरुद्ध हो. वहीं, आर्टिकल 47 के हिसाब से स्टेट शराब पर बैन लगाने का फैसला लिया जा सकता है और इसमें स्टेट को जिम्मेदारी है कि वो स्टेट में हेल्थ मामलों को लेकर कोई भी फैसला ले सकता है.
केरल में कुछ अलग है नीति
जहां तक स्टेट को दिए गए अधिकार की बात है तो हर राज्य अपने हिसाब से नीति बना सकता है. ऐसे ही केरल में 2-3 स्टार के होटल में शराब की बिक्री की मनाही है, लेकिन 4-5 स्टार में शराब की बिक्री की जा सकती है. क्योंकि सरकार का मानना है कि वहां का माहौल, सुरक्षा अलग है. जब इस नीति को चुनौती दी गई तो सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे जारी रखा, जिसके आधार पर केरल की अलग नीति है. वैसे ही जब बिहार में भी शराब पर बैन लगा तो इस फैसले को कई चुनौती मिली, लेकिन कोर्ट ने साफ कर दिया है कि यह राज्यों का अधिकार है.