56 साल बाद जेब से बरामद वाे चिट की मदद से उत्तराखंड के शहीद नारायण सिंह की पहचान की गई। पढ़े पूरी कहानी.

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हिमाचल प्रदेश में 1968 में हुए भारतीय वायुसेना के विमान हादसे में लापता चार सैनिकों में से एक की पहचान शहीद नारायण सिंह के रूप में हुई है। उनका शव चमोली के थराली तहसील स्थित उनके पैतृक गांव कोलपुड़ी लाया

बचावकर्मियों को नारायण सिंह की जेब से कागज का एक टुकड़ा मिला। इसमें उन्‍होंने अपनी पत्‍नी का नाम बसंती देवी लिखा था। गांव का नाम भी लिखा हुआ। इस कागज के टुकड़े की मदद से नारायण सिंह की पहचान की गई।

सेना के अधिकारियों ने जयवीर सिंह को बताया कि बर्फ में शव सुरक्षित था। डीएनए सैंपल लिया गया। बताया कि रिकाॅर्ड के अनुसार नारायण सिंह सेना के मेडिकल कोर में तैनात थे।

56 साल बाद उनका पार्थिव शरीर गांव लौटा है। उनको श्रद्धाजंलि देने के लिए लगातार लोगों का तांता लगा हुआ है। नारायण सिंह के भतीजे राजेंद्र सिंह ने बताया कि जब सेना के अधिकारियों ने हमारे परिवार से संपर्क किया तो हम अभिभूत हो गए।नारायण सिंह के साथी रहे कोलपुड़ी के सूबेदार गोविंद सिंह, सूबेदार हीरा सिंह बिष्ट और भवान सिंह नेगी ने बताया कि वह बहुत सौम्य स्वभाव के थे।

बचपन से ही सेना के प्रति उनमें जुनून था। 1965 के भारत-पाक युद्ध में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वे एएमसी में नियुक्त थे।

चंडीगढ़ से लेह जाते समय हुआ था हादसा

गौरतलब है कि नारायण सिंह का शव सेना के एक पर्वतारोहण दल ने ढाका ग्लेशियर से बरामद किया। डोगरा स्‍काउट्स और तिरंगा माउंटेन रेस्‍क्‍यू की एक जाइंट टीम ने चारों शवों के अवशेष बरामद किए हैं।

1968 में चंडीगढ़ से लेह जाते समय सेना का विमान इसी इलाके में क्रैश हो गया था। विमान खराब मौसम में फंस गया और हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे के ऊपर दुर्घटनाग्रस्‍त हो गया था।

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