बागेश्वर के कांडा मेंबेतहाशा खनन से न केवल ग्रामीणों के घरों को खतरा है, बल्कि इस इलाके की पूरी सभ्यता को खतरा.

VSCHAUHAN and Herdyes  ballabh goswami for NEWS EXPRESS INDIA

उत्तराखंड के बागेश्वर के कांडा इलाके में चाक खनन के कारण जोशीमठ जैसी स्थिति बन गई है. घरों, मंदिरों, खेतों और सड़कों में दरारें आने लगी हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकार उनकी समस्याओं पर आंखें मूंद रही है. बाची सिंह नगरकोटी जब गहरी दरारों और झुके हुए घर को देखते हैं तो उन्हें अपने पिता की याद आती है जिन्होंने अपने दो बेटों के लिए इस घर को फिर से बनाने में सारी जमा पूंजी खर्च कर दी थी. अब घर के सामने दरारें आ गई हैं. जब चाक खनन शुरू हुआ तो बाची और उनकी मां ने सोचा कि यह इलाके के लिए अच्छी बात है, क्योंकि कुछ लोग पैसे कमा रहे थे और खनन का काम बड़े पैमाने पर हाथों से हो रहा था. हालांकि, जल्द ही यह बड़े पैमाने पर हो गया और भारी मशीनरी का इस्तेमाल होने लगा और अब गांव वाले अपने घरों की सुरक्षा के लिए प्रार्थना कर रहे हैं.

बारिश में घर के ढह जाने के डर से सो नहीं पाते’
नागरकोटी ने कहा, ‘हमारे पास यही एक घर है और खेती के लिए थोड़ी सी ज़मीन है. मेरे पिता ने अपनी सारी बचत हमारे पुराने घर की मरम्मत में खर्च कर दी, लेकिन अब यह झुक गया है. जब भारी बारिश होती है, तो हम अपने घर के ढह जाने के डर से सो नहीं पाते. यह सब पहाड़ी के ठीक नीचे हो रहे खनन की वजह से हो रहा है.’

बाची का पैतृक घर एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है और चाक का खनन पहाड़ी के ठीक नीचे हो रहा है. बाची का कहना है कि प्रशासन ने उनकी शिकायत को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि खनन उनके घर से बहुत दूर हो रहा है, लेकिन वास्तव में, कोई भी साफ तौर पर देख सकता है कि अनियंत्रित खनन के कारण पहाड़ी के बेसमेंट में बहुत ज़्यादा छेड़छाड़ की गई है और उनके घर के सामने की पहाड़ी में भयानक दरारें आ गई हैं और पहाड़ का एक बड़ा हिस्सा धीरे-धीरे खदान की ओर खिसक रहा है.

शिकायतों के बावजूद नहीं हुई सुनवाई
कई शिकायतों के बावजूद, खनन स्थानीय लोगों के लिए खतरा बना हुआ है. इन लोगों के पास इतना पैसा नहीं है कि वे अपने घर को सहारा देने के लिए एक बड़ी दीवार बना सकें, जो तकनीकी रूप से खननकर्ताओं की जिम्मेदारी है. इसमें प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया है, न ही इलाके के घरों का किसी तरह का सुरक्षा ऑडिट हुआ है. खदानों से स्थानीय लोगों को होने वाले नुकसान के बारे में जानने के लिए किसी भूवैज्ञानिक विशेषज्ञ को भी नहीं बुलाया गया है.

1000 साल से भी पुराना मंदिर खतरे में
बेतहाशा खनन से न केवल ग्रामीणों के घरों को खतरा है, बल्कि इस इलाके की पूरी सभ्यता को खतरा है. गांव के 1000 साल पुराने कालिका मंदिर में दरारें आने लगी हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार, यह मंदिर करीब 1000 साल पुराना है. हालांकि, अब यह खतरे में है. मंदिर परिसर में दरारें आने लगी हैं. मंदिर से महज 50 मीटर की दूरी पर एक चाक खदान है और स्थानीय लोगों का दावा है कि इसी वजह से मंदिर में दरारें आई हैं.

मंदिर समिति के अध्यक्ष और सेना के पूर्व सैनिक रघुवीर सिंह माजिला ने कहा, ‘करीब 1000 साल पहले नवरात्र के दौरान कुछ स्थानीय लोगों की मृत्यु के कारण होने वाले अपशकुन से छुटकारा पाने के लिए, तत्कालीन आदि शंकराचार्य ने गांव वालों से पशुओं की बलि देने के लिए किसी क्षत्रिय को आमंत्रित करने को कहा था. इस क्षेत्र के माजिला उसी व्यक्ति के वंशज हैं, जिन्हें मुनस्यारी से पशु बलि के लिए आमंत्रित किया गया था.2011 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. यह मंदिर पूरे इलाके में एक प्रमुख धार्मिक स्थल है और इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था भी मंदिर और इसके आगंतुकों के इर्द-गिर्द घूमती रही है.’

स्थानीय लोगों की आजीविका मंदिर में भक्तों की आमद पर निर्भर
स्थानीय लोगों ने मंदिर के भक्तों के लिए रेस्तरां और छोटे-मोटे खाने-पीने के स्थान खोले हैं. जैसे ही दरारें दिखाई देने लगीं, स्थानीय लोगों ने खनन की शिकायत की, जो मंदिर और पास के दो घरों के करीब है, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं है. कई स्थानीय लोगों की आजीविका इस मंदिर में भक्तों की आमद पर निर्भर करती है. स्थानीय कार्यकर्ता सुरेश सिंह माजिला ने कहा, ‘इस कम आबादी वाले क्षेत्र में आय का मुख्य स्रोत खेती और धार्मिक पर्यटन है. दोनों ही अनियंत्रित खनन के कारण खतरे में पड़ गए हैं. हमें सरकार की ओर से खदानों में रिटेनिंग वॉल बनाने का कोई आश्वासन नहीं दिया गया है, ताकि घरों और मंदिर को सुरक्षित किया जा सके.’

निवासियों ने पुनर्वास की मांग की
कई स्थानीय लोग अब पुनर्वास की मांग कर रहे हैं. हेमचंद्र कांडपाल का परिवार सबसे ज्यादा प्रभावित है. उनके घर में भयानक दरारें आ गई हैं और वे पहाड़ी के नीचे हो रहे खनन को इसके लिए जिम्मेदार मानते हैं.

हेमचंद्र कांडपाल कहते हैं, ‘इन दरारों को ठीक नहीं किया जा सकता, घर को तोड़कर फिर से बनाना ही एकमात्र विकल्प बचा है. सरकार को हमें पुनर्वास के लिए जमीन मुहैया करानी चाहिए.’ वे सचमुच गिरती दीवारों के नीचे रह रहे हैं और वे इस जानलेवा स्थिति के लिए खनन को जिम्मेदार मानते हैं.

कांडपाल ने कहा, ‘मैं यहीं पैदा हुआ हूं, मैंने ऐसी स्थिति कभी नहीं देखी. यह सब अनियंत्रित खनन के कारण हो रहा है. मेरे घर की हालत इतनी खराब है कि ग्राउंड फ्लोर के पुराने कमरे के दरवाजे हमेशा के लिए अटक गए हैं, क्योंकि घर झुक गया है. हमने कई बार कोशिश की, लेकिन हम दरवाजे पर ज्यादा दबाव डालने से डरते हैं, क्योंकि घर ढह सकता है. मेरे बेडरूम का दरवाजा भी काफी प्रयासों के बाद झुके हुए फर्श के कारण खुल रहा है.

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