उत्तराखंड का ये शहर जितना खूबसूरत है. उससे कहीं ज्यादा इस शहर का इतिहास रोचक है.

VSCHAUHAN for NEWS EXPRESS INDIA

झीलों का शहर नैनीताल जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और स्वच्छ वातावरण के लिए देश दुनिया में जाना जाता है. जिस वजह से हर साल घूमने फिरने के लिए यहां लाखों की संख्या में सैलानी पहुंचते हैं. लेकिन उत्तराखंड का ये शहर जितना खूबसूरत है. उससे कहीं ज्यादा इस शहर का इतिहास रोचक है. इतिहासकार बताते हैं कि इस शहर की खोज 1842 में एक यूरोपियन मूल के नागरिक ने की थी.

इतिहासकार डॉ. विकास खुराना ने बताया कि उत्तराखंड के खूबसूरत शहर नैनीताल की खोज यूरोपियन मूल के पी बैरन (P. Barron) ने की थी. पी बैरन सन 1826 में शाहजहांपुर आए थे. पी बैरन केरू एंड कंपनी में पार्टनर थे. यह कंपनी शाहजहांपुर में स्प्रिट और रम बनाने का काम करती थी. पी बैरन को ऐतिहासिक किताबें और ब्रिटिश दस्तावेजों में पिल ग्रिम के नाम से भी जाना जाता हैं.

डॉक्टर खुराना बताते हैं कि पी बैरन तीर्थ यात्राओं और घूमने फिरने में खासी दिलचस्पी रखते थे. वह घोड़े पर सवार होकर कई बार शाहजहांपुर से चीन बॉर्डर तक की यात्रा कर चुके थे.

झीलों की खूबसूरती देख बैरन का दिल बदला

इतिहासकार डॉ. विकास खुराना बताते हैं कि सन 1842 में जब पी बैरन बद्रीनाथ की यात्रा कर वापस शाहजहांपुर लौट रहे थे. उस दौरान उन्होंने शेरडांडा की पहाड़ी के पास कैंप किया था. वहां के लोकल गाइड ने पास की ही नैनी झील के बारे में बताया. झील और उसके आसपास की खूबसूरती को देखकर पी बैरन यहां बसावट करना चाहते थे. लेकिन लोकल गाइड से ही जानकारी मिली कि यहां बसावट करने के लिए यहां के लोकल जमींदार से इजाजत लेनी होगी.

लोकल गाइड से यह भी पता चला कि यहां साल में सिर्फ एक बार किसी देवी मेले का आयोजन होता है. इतिहासकार डॉ. विकास खुराना ने पी बैरन के ही एक लेख का जिक्र करते हुए बताया कि नैनी झील चारों ओर से सुंदर हरे भरे पहाड़ों से घिरी हुई थी. झील का पानी साफ था और झील के किनारे के पहाड़ों की चोटियों पर जंगलों में हिरणों के अनगिनत झुंड भी रहते थे. यहां तीतरों की संख्या इतनी अधिक थी कि पी बैरन को कैंप मैदान से भागना पड़ा.

पी बैरन ने जमींदार से छल कर कराए हस्ताक्षर

इतिहासकार डॉ. विकास खुराना ने बताया कि यहां की खूबसूरती देख पी बैरन के मन में छल की भावना आ गई. जिसके बाद उन्होंने एक दिन वहां के जमींदार को झील घूमाने के लिए नाव की सवारी कराई. जब नाव बीच झील में चली गई. उस दौरान उन्होंने जमींदार से यहां बसावट की इजाजत मांगी और कुछ दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा.

जब जमींदार ने इनकार किया तो पी बैरन ने नाव बीच झील में ही डूबोने की धमकी दे दी. इसके बाद डरे सहमे जमींदार ने अपनी जान बचाने के लिए पी बैरन के उन दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दिए.

फिर वापस जाकर की बसावत

इतिहासकार डॉ. विकास खुराना बताते हैं कि पी बैरन फिर शाहजहांपुर लौट आए. केरू एंड कंपनी को छोड़ दिया और वापस नैनीताल चले गए. यहां जाकर उन्होंने नैनीताल में बसावट की. आज नैनीताल और यहां की खूबसूरती को देखने के लिए विश्व भर से सैलानी यहां पहुंचते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *