देहरादून में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अपने दिन बिताए थे। सुभाष चंद्र बोस ने उत्तराखंड में ली थी आखिरी सांस?

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देश की आजादी के लिए लड़ने वाले नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मौत आज भी एक रहस्य बनी हुई है। भारत को आजादी दिलाने के लिए उन्होंने आजाद हिंद फौज का नेतृत्व किया।

सुभाष चन्द्र बोस भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिए, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन किया था। उनके द्वारा दिया गया जय हिन्द का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है।

उनकी मौत किन परिस्थितियों में हुई ये आज भी बुद्धिजीवियों के बीच बहस का विषय है। साल 1897 में 23 जनवरी के दिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म हुआ था। वो देश की आजादी के लिए सैन्य कार्रवाई को जरूरी मानते थे। 18 अगस्त 1945 को जापान जाते वक्त ताइवान के पास नेताजी का विमान हादसे का शिकार हो गया था। जिसमें उनकी मौत हो गई, लेकिन कई लोग अब भी इस कहानी को मनगढ़ंत मानते हैं।

ज्यादातर लोगों का मानना है कि नेता जी इस हादसे में नहीं मारे गए थे, वो लंबे समय तक जीवित रहे। कई लोग तो ये भी मानते हैं कि देहरादून में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अपने दिन बिताए थे। यहां रहने वाले स्वामी शारदानंद ही सुभाषचंद्र बोस थे। वाजपेयी सरकार के वक्त नेताजी की मौत की जांच के लिए एक आयोग का गठन हुआ था। जस्टिस एमके मुखर्जी ने भी अपनी रिपोर्ट में देहरादून के स्वामी शारदानंद का जिक्र किया है। उन्होंने कहा कि स्वामी शारदानंद और नेताजी सुभाष चंद्र बोस में गहरा नाता रहा है।

स्वामी शारदानंद ने अपने जीवन के आखिरी साल देहरादून के राजपुर स्थित एक आश्रम में बिताए थे। स्वामी शारदानंद भी ये मानते थे कि नेताजी की मौत विमान हादसे में नहीं हुई। स्वामी शारदानंद लंबे वक्त तक उत्तराखंड के अलग-अलग स्थानों में रहे। 14 अप्रैल 1977 को उन्होंने देहरादून में शरीर त्यागा। स्वामी शारदानंद के पार्थिव शरीर को कड़ी सुरक्षा में देहरादून से ऋषिकेश लाया गया था। जहां मायाकुंड में उनका अंतिम संस्कार पुलिस सम्मान के साथ किया गया। स्वामी जी की मौत के वक्त शिष्यों के बीच उनकी पहचान को लेकर विवाद भी हुआ था।

आजाद हिंद फौज के लोग स्वामी शारदानंद को नेताजी ही मानते थे, हालांकि स्वामी शारदानंद कहते रहे कि वह सुभाषचंद्र बोस नहीं हैं। स्वामी शारदानंद पहले कूच बिहार में रहते थे। बाद में हिमालय के ऊखीमठ चले आए और यहां योग साधना की। साल 1973 में वो देहरादून के राजपुर स्थित आश्रम में आ बसे। वो बहुत कम लोगों से मिलते थे, दान भी बहुत सीमित लोगों से लिया करते थे।

कहते हैं कि जवाहरलाल नेहरू और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनके दर्शनों की इच्छा जताई थी, पर स्वामी जी ने विनम्रतापूर्वक उनका आग्रह ठुकरा दिया। आज भी कई लोग यही मानते हैं कि देहरादून में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आखिरी दिन बिताए थे।

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