वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के विज्ञानियों ने जोशीमठ में जमीन खिसकने को लेकर चौंकाने वाली जानकारी दी.

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चमोली के जोशीमठ में भूधंसाव के स्पष्ट कारणों का पता लगाने के लिए विशेषज्ञों की टीम निरंतर सर्वे कर रही है।इस बीच वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के विज्ञानियों ने जोशीमठ में जमीन खिसकने को लेकर चौंकाने वाली जानकारी दी है।

यहां की जमीन हिमालय के उत्तर से दक्षिण की तरफ सरकने की दर से दोगुनी रफ्तार से खिसक रही है। इससे आने वाले समय में इस पूरे क्षेत्र का नक्शा ही बदल सकता है।

सरकार के विशेषज्ञ सर्वेक्षण दल में शामिल वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान की वरिष्ठ विज्ञानी डा. स्वप्नमिता के अनुसार, जोशीमठ क्षेत्र का सर्वे सेटेलाइट के माध्यम से कराया गया। इसमें इस विशिष्ट भूक्षेत्र के खिसकने की दर का आकलन किया गया।

यहां का भूभाग सालाना 85 मिलीमीटर की दर से खिसक रहा है। वहीं, उत्पत्ति के समय से ही हिमालय के खिसकने की दर सालाना 40 मिलीमीटर के करीब है। इस दर में वर्तमान में कितना बदलाव आया है, इसका पता लगाने के लिए दोबारा से सर्वे कराया जाएगा। जिससे जोशीमठ क्षेत्र में भूधंसाव को लेकर पल-पल की जानकारी मिलती रहे।

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान की विज्ञानी डा. स्वप्नमिता के मुताबिक, जोशीमठ में रवि ग्राम, मारवाड़ी, सुनील समेत अन्य क्षेत्रों में लंबे समय से दरार उभर रही हैं।

जेपी कालोनी क्षेत्र में पिछले कुछ दिनों में ही नई दरारें उभरी हैं। यह दरारें चिंता बढ़ाने वाली हैं। क्योंकि, इसी क्षेत्र में एक नई जलधारा भी फूटी है। यह मान सकते हैं कि जलधारा और नई दरारों का आपस में संबंध है। हालांकि, इस दिशा में जांच अभी जारी है। जेपी कालोनी की धारा और टनल के पानी का हो रहा परीक्षण

सर्वे के दौरान विज्ञानियों ने जेपी कालोनी में फूटी नई जलधारा और टनल के पानी के सैंपल लिए। ताकि यह यह पता लगाया जा सके कि भूधंसाव के पीछे किस वाटर बाडी का अधिक हाथ हो सकता है। इसके लिए पानी के आइसोटोप सिग्नेचर मैच कराए जाएंगे।

वाडिया संस्थान की वरिष्ठ विज्ञानी डा. स्वप्नमिता के मुताबिक, जोशीमठ क्षेत्र में कई जलधाराएं हैं और इस क्षेत्र में भारी निर्माण भी हुआ है।

ऐसे में आशंका है कि निर्माण के चलते किसी जलधारा ने भूगर्भ में रूट बदल दिया हो। यह भी संभव है कि रूट बदलने के कारण भूगर्भ में पानी जमा होता रहा, जिसका जलाशय अब फटकर धारा के रूप में बाहर निकल रहा है।

उत्तराखंड सरकार ने हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (एनआरएससी) और देहरादून स्थित भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (आईआईआरएस) से सेटेलाइट तस्वीरों के माध्यम से जोशीमठ क्षेत्र का अध्ययन करने और फोटो के साथ विस्तृत रिपोर्ट सौंपने का अनुरोध किया है। इस बीच, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण को पुनर्वास के लिए जोशीमठ में कोटि फार्म, पादप संस्थान और बागवानी विभाग की जमीन तथा पीपलकोटि के सेमालडाला क्षेत्र की उपयुक्तता का परीक्षण करने को भी कहा गया है।

मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से राहत अभियान तेजी से पूरा करने के लिए नियमों में ढील देने को भी कहा है। उन्होंने कहा कि राहत एवं बचाव कार्य तेज करने के लिए जोशीमठ में आपदा प्रबंधन से जुड़े कार्यों को ही मंजूरी देने के वास्ते एक उच्च-स्तरीय समिति बनायी जाए। धामी ने चमोली जिले के जिलाधिकारी को 11 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि भी मंजूर की है।

इस बात के भी निर्देश दिये गये हैं कि जमीन धंसने से प्रभावित क्षेत्रों में राहत एवं बचाव कार्य के साथ विकास कार्यों की निगरानी के लिए प्रदेश एवं स्थानीय स्तर पर उच्च-स्तरीय समन्वय समिति बनायी जाए। बचाव एवं राहत अभियानों में तालमेल के लिए अतिरिक्त मुख्य सचिव राधा रतूरी प्रदेश-स्तरीय समन्वय समिति की अगुवाई करेंगी, जबकि आयुक्त (गढ़वाल) सुशील कुमार स्थानीय स्तर पर पैनल का नेतृत्व करेंगे।

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