उत्तराखंड के हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पास अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले 4,000 से अधिक परिवारों को घर खाली करने का नोटिस

Herdyes ballabh goswami for NEWS EXPRESS INDIA

उत्तराखंड में हल्द्वानी शहर की वनभूलपुरा बस्ती चर्चा में है। हाई कोर्ट ने इसे रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण माना है। कड़ाके की सर्दियों के बीच 50 से 60 हज़ार की आबादी को हटाने के लिए सात हज़ार पुलिसकर्मियों का इंतज़ाम किया जा चुका है।

उत्तराखंड के हल्द्वानी रेलवे स्टेशन  के पास अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले 4,000 से अधिक परिवारों को घर खाली करने का नोटिस दिया जाएगा। उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा जारी एक आदेश के बाद ये फैसला किया गया है।

नोटिस के बाद घर खाली करने के लिए सात दिन का समय दिया जाएगा। नैनीताल जिले के अधिकारियों के अनुसार क्षेत्र से कुल 4,365 अतिक्रमण हटाए जाएंगे। कुछ लोग वहां दशकों से रह रहे हैं और अदालत के आदेश का विरोध कर रहे हैं।

रेलवे अधिकारियों (Railway officials) ने कहा कि उन्होंने रेलवे की 2.2 किलोमीटर लंबी पट्टी पर बने मकानों और अन्य ढांचों को गिराने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इज्जत नगर के रेलवे पीआरओ राजेंद्र सिंह ने कहा, “लगभग 10 दिन पहले हल्द्वानी (Haldwani) में रेलवे की भूमि पर सभी अतिक्रमणों को हटाने के लिए उच्च न्यायालय का फैसला आया।

4,365 अतिक्रमण हैं और हम स्थानीय समाचार पत्रों के माध्यम से कल (रविवार) नोटिस देंगे। रहने वालों को शिफ्ट करने के लिए सात दिन का समय दिया जाएगा। उसके बाद हम कार्रवाई करेंगे।

सुनवाई के दौरान राज्य सरकार  ने कहा कि रेलवे की उक्त संपत्ति पर उसका कुछ कहना नहीं है। रेलवे ने यह भी कहा कि कोई भी अतिक्रमणकर्ता उक्त भूमि पर दावा करने के लिए कोई कानूनी दस्तावेज पेश नहीं कर सकता है। कोर्ट ने करीब एक दशक से चल रहे एक मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद रेलवे के पक्ष में फैसला सुनाया।

कोर्ट के आदेश के बाद रेलवे व राजस्व अधिकारियों की संयुक्त टीम ने गुरुवार को अतिक्रमण क्षेत्र का ड्रोन सर्वे किया। स्थानीय निवासियों के विरोध के बीच उन्होंने अतिक्रमित क्षेत्रों का सीमांकन शुरू कर दिया।

इस सप्ताह की शुरुआत में हजारों निवासियों ने अपना विरोध दर्ज कराने के लिए कैंडललाइट मार्च निकाला था। उन्होंने कहा कि विध्वंस अभियान उन्हें बेघर कर देगा। कुछ परिवार 40-50 वर्षों से अनधिकृत कॉलोनियों में रह रहे हैं और कई निवासी उन्हीं घरों में पैदा हुए हैं जो अब अगले 10 दिनों में ध्वस्त होने की उम्मीद है। स्थानीय सूत्रों के मुताबिक अतिक्रमण में करीब 20 मस्जिद और 9 मंदिर शामिल हैं।

प्रभावितों का यह भी आरोप है कि रेलवे ने सुनवाई के नाम पर महज खानापूर्ति की। उनका पक्ष कायदे से नहीं सुना गया।

स्थानीय निवासी रहमत खान का आरोप है कि रेलवे ग़लत बोल रहा है। पीपी ऐक्ट में इकतरफा सुनवाई की गई। उन्होंने इसके ख़िलाफ़ रिवीजन लगाया है। बरेली रेलवे कोर्ट में सुनवाई के लिए दो फरवरी की तारीख लगी है। उन्होंने ज़िला कोर्ट में भी मामला दायर किया है, जहां पांच फरवरी को सुनवाई होनी है। रहमत का कहना है कि ज़िला अदालत में एक हज़ार 178 प्रभावितों ने काग़ज़ लगाए हैं। उनका सवाल है कि जो घर बाप-दादा ने बनवाया, उसे लेकर कहां अर्जी लगाएं?

जिस ज़मीन को लेकर पूरा बखेड़ा हो रहा है, जिसे रेलवे अपनी बता रहा है और जिसे अतिक्रमण से मुक्त कराने के लिए सरकार ने पूरी तैयारी कर ली है, उसका मामला न तो रेलवे ने उठाया था और न ही राज्य सरकार ने। पूरा मसला खड़ा हुआ था गौला नदी का पुल गिरने से। नैनीताल हाई कोर्ट में समाजसेवी रविशंकर जोशी ने साल 2013 में एक जनहित याचिका दायर की। उन्होंने आरोप लगाया कि पुल के आसपास जो बस्तियां हैं, उनमें रहने वाले लोग नदी में खनन करते हैं। पुल के पिलर्स के आसपास भी खनन किया गया, जिससे पुल गिर गया।

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