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हरीश रावत उत्तराखंड की राजनीति में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। हरीश रावत का राजनीतिक जीवन काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है। संगठन से लेकर सत्ता के शीर्ष मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने वाले हरीश रावत पांच सालों में चार प्रमुख चुनाव हारने के बाद आज हाशिए पर हैं। वह सक्रिय राजनीति की अपनी आखिरी पारी हरिद्वार से खेलना चाहते हैं।
2024 लोकसभा चुनाव के लिए हरदा सियासी मैदान सजाने लगे हैं। हरिद्वार पंचायत चुनाव नतीजों के बाद हरीश रावत ने फिर नेतृत्व क्षमता दिखाई और हार से हताश कांग्रेसियों में फिर विश्वास बढ़ाया है। 74 वर्षीय हरीश रावत पांच बार सांसद और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
तत्कालीन मनमोहन सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। उत्तराखंड की राजनीति में हरीश रावत का अपना वजूद है। कांग्रेस ही नहीं भाजपा और दूसरे दलों के शीर्ष नेता भी हरीश रावत जैसे खांटी नेता को नजरअंदाज नहीं कर पाते हैं। राजनीति के मंच की भीड़ से लेकर गांव-देहात की गलियों में लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचना हरीश रावत बखूबी जानते हैं। इन सबके बावजूद हरीश रावत चुनाव मैदान में मात खा आए हैं।
हरीश रावत अब उम्रदराज हो चुके हैं। सक्रिय राजनीति में हरिद्वार से 2024 लोकसभा की आखिरी पारी खेलना चाहते हैं। अलग-अलग मंचों से इस इच्छा को जाहिर भी कर चुके हैं। हरीश रावत 2013 का लोकसभा चुनाव हरिद्वार से जीतकर ही केंद्र की सत्ता तक पहुंच चुके हैं। 2024 में हरीश रावत को राजनीतिक समीकरण भी अपने पक्ष में दिख रहे हैं। वजह उनकी बेटी अनुपमा और कांग्रेस के पांच विधायक हैं। अनुपमा हरिद्वार ग्रामीण सीट से विधायक हैं, जहां से हरीश रावत 2017 में हार गए थे।
हरिद्वार नगर सीट को छोड़कर बाकी सीटों पर अल्पसंख्यक और ओबीसी मतदाताओं पर हरीश रावत की मजबूत पकड़ है। 2022 के पंचायत चुनाव में कांग्रेस हरिद्वार बुरी तरह साफ हो गई। इससे भाजपा के मौजूदा सांसद रमेश पोखरियाल सबसे अधिक गदगद हैं। इस जीत को निशंक 2024 का रिहर्सल और बोनस मान रहे हैं। लेकिन हरीश रावत ने निशंक के अलावा डॉ. हरक सिंह रावत को सोचने को मजबूर कर दिया है। भाजपा से कांग्रेसी में घर वापसी करने वाले हरक सिंह रावत भी हरिद्वार से लोकसभा लड़ना चाहते हैं। पंचायत चुनाव की हार से हरीश रावत ने अपनी सियासी पिच तैयार करने की शुरुआत कर दी है। कार्यकर्ताओं को भी एकजुट कर उनका विश्वास बढ़ाया है।