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किसी इंसान की किस्मत कब उसका साथ देती है, यह कोई नहीं जानता. महाराष्ट्र के उस्मानाबाद के राजशेखर पाटील के साथ ही कुछ ऐसा ही हुआ. राजशेखर पाटील के पिता मुरलीधर पाटील एक संपन्न किसान परिवार से थे. उनका 70 लोगों का परिवार था और उनके पास 300 एकड़ जमीन थी. राजशेखर पाटील के पिता मुरलीधर पाटील ने उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद से गणित से एमएससी किया था. लेकिन उन्होंने अपने सामूहिक परिवार के साथ ही रहना पसंद किया और कोई नौकरी नहीं की. जबकि उस समय ऐसे योग्य व्यक्ति को अच्छी नौकरी मिल सकती थी. राजशेखर के पिता 13 भाई और 3 बहन थे. अपने 70 लोगों के परिवार के साथ उनके पिता मुरलीधर पाटील एकत्र कुटुंब पद्धति चलाते थे. मुरलीधर पाटील ने 20 कुएं बनवाए और 50 ट्यूबवेल भी लगवाए थे.
राजशेखर पाटील के गांव का नाम निपानी है, जिसका मतलब है कि वहां पानी नहीं है. मराठवाड़ा सूखाग्रस्त इलाका है और वहां बारिश वैसे भी बहुत कम होती है. राजशेखर ने बीएससी-एजी की पढ़ाई की और काफी समय तक प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की. फिर भी उन्हें कोई सरकारी नौकरी हासिल करने में सफलता नहीं मिली. वे किसी प्राइवेट नौकरी में जगह नहीं बना पाए. खेती में उनका मन नहीं लगता था और निराशा के भाव में वे अन्ना हजारे के साथ जुड़ गए. राजशेखर पाटील ने अन्ना हजारे के साथ जल संरक्षण, मृदा संरक्षण और नशा मुक्ति जैसे अभियानों में काम किया. अन्ना हजारे शुरू में उनको 2000 रुपये महीना देते थे और 6 साल काम करने के बाद उनकी तनख्वाह 6000 रुपया महीना थी.
परिवार पर हुआ 15 लाख रुपये का कर्ज, पिता हुए बीमार
कभी सामूहिक परिवार को सहेज कर रखने वाले मुरलीधर पाटील के परिवार में भी आखिरकार बंटवारा हो गया. इसके बाद अचानक ही राजशेखर के पिता को लकवा का अटैक हुआ. उनकी मां ने फोन पर कहा कि ‘बेटा घर आओ. घर पर 15 लाख रुपया कर्ज है. कैसे चुकाया जाएगा? तुम अन्ना हजारे के साथ जुड़ गए हो इसलिए तुम्हारी शादी भी नहीं हो रही है. आओ जमीन को देखो. खेती-बाड़ी करो.’ इसके बाद राजशेखर पाटील घर वापस चले आए और गन्ना, पपीता और सब्जियों की खेती करने लगे. करीब 5 साल तक उन्होंने इसके इस खेती को किया.
खेतों में बाड़ लगाने को नहीं थे पैसे तो लगाए बांस
इसी बीच उनकी मुलाकात जल पुरुष राजेंद्र सिंह से हुई और उन्होंने 13 गांवों में 35 किलोमीटर लंबे नाले की खुदाई का काम करने वाली टीम का उनको मुखिया बना दिया. राजशेखर ने लोगों से पैसा इकट्ठा करके 35 किलोमीटर लंबे नाले की साफ-सफाई की और उसे गहरा बनवाया. खेती से उनको कुछ खास आमदनी हो नहीं रही थी. अचानक उन्हें पता लगा कि एक सरकारी नर्सरी में बांस के पौधे मुफ्त दिए जा रहे हैं.
अपनी फसल की सुरक्षा के लिए वे खेत के चारों ओर बाड़ लगाना चाहते थे लेकिन उसके लिए पैसा नहीं था. राजशेखर ने सोचा कि खेत के चारों ओर बांस लगा देते हैं. जिससे कि एक बाड़ तैयार हो जाएगी.
बाड़ के लिए लगाए गए बांस ने बना दिया दो साल में करोड़पति
राजशेखर पाटील ने 40 हजार बांस के पौधे लाकर खेत की सीमा पर लगा दिए. 2 साल में ही उससे 10 लाख बांस तैयार हो गए. उनको राजशेखर ने 20, 50 और 100 रुपये तक में बेचा. इस तरह 2 साल में ही उनका टर्नओवर एक करोड़ रुपये तक पहुंच गया. इसके बाद उन्होंने और ज्यादा बांस लाकर अपने पूरे खेत में लगा दिए. आज उनके पास हर साल 1 करोड़ बांस तैयार होता है. उनका टर्नओवर करीब 6-7 करोड़ रुपये है. बांस ने राजशेखर पाटील की किस्मत बदल दी है.
इसके बाद राजशेखर पाटील ने पूरे भारत से जितनी भी बेहतरीन बांस की किस्में मिलीं, उनको लाकर अपने खेतों में लगाया. उन्होंने कुछ जमीन भी खरीदी. उनकी जमीन अब बढ़कर करीब 54 एकड़ हो चुकी है. राजशेखर पाटील ने बांस की एक नर्सरी भी लगाई है. जहां हर साल 20 लाख बांस के पौधे तैयार होते हैं. जिनको किस्म के हिसाब से किसानों को 20, 50 और 100 रुपये में बेचा जाता है.
राजशेखर की किस्मत बदलने वाला बांस बन सकता है ग्रीन गोल्ड
राजशेखर पाटील के यहां रोज 100 लोग आते हैं, जिनको वे मुफ्त बांस की खेती के गुर सिखाते हैं. उनको अब बांस की खेती का एक्सपर्ट मान लिया गया है. इसी तरह राजशेखर पाटील के बांस के खेतों पर हर रोज 100 लोगों को रोजगार मिलता है. राजशेखर पाटील का कहना है कि किसान महंगी लागत वाली खेती करके मौसम की मार, कीटों के प्रकोप और बाजार के उतार-चढ़ाव से लगातार घाटा उठा रहे हैं.
खासकर महाराष्ट्र के किसानों में कर्ज के कारण आत्महत्या की प्रवृत्ति देखी जा रही है. ऐसे किसानों के लिए बांस की खेती हर तरह से फायदेमंद साबित हो सकती है. राजशेखर पाटील अब किसानों के बीच बांस की खेती को ज्यादा से ज्यादा फैलाने के लिए जुटे हुए हैं. राजशेखर पाटील के मुताबिक भारत में किसानों को ज्यादा से ज्यादा बांस लगाना चाहिए क्योंकि भारत हर साल 20 से 30 हजार करोड़ रुपये का बांस विदेशों से खरीदता है.
. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को बांस के महत्व का पता है. इसलिए बांस को घास की श्रेणी में डाल दिया गया है. इसको लगाने, काटने, बेचने और ट्रांसपोर्ट करने पर कोई रोक अब नहीं है. साथ ही इससे होने वाली आमदनी पर भी कोई टैक्स नहीं है. राजशेखऱ पाटील का मानना है कि बांस किसानों के लिए ग्रीन गोल्ड साबित हो सकता है.