मामूली कुली जो बना देश का सबसे कुख्यात तस्कर: अपराध की दुनिया में शामिल तो रहा लेकिन ना तो किसी की जान ली और ना ही कभी गोली चलाई। कैसे बना पढ़ें पूरी स्टोरी .

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किस्मत या तकदीर किस इंसान को कब कुख्यात बना दे.  या कब ख्याति दिला दे यानी विख्यात कर दे. एक ऐसे व्यक्ति की ऐसी कहानी जो मुंबई का डॉन बन गया था डॉन बनने से पहले वह भी एक साधारण इंसान था उसको उस वक्त खुद भी नहीं पता था कि वह इतना बड़ा डॉन बन जाएगा एक 18 वर्षीय युवा लड़का मामूली सा कुली का काम करता था इस प्रकार है पूरी कहानी.

एक समय था जब मुंबई में कई सारे डॉन थे और सभी जुर्म की दुनिया में सने हुए थे। लेकिन उसी मुंबई में एक हाजी मस्तान नाम का तस्कर किंग था, जो मुंबई का सबसे पहला अंडरवर्ल्ड डॉन कहलाया। साल 1926 में तमिलनाडु में जन्मा मस्तान अपने पिता हैदर मिर्जा के साथ साल 1934 में मुंबई आया था। परिवार की माली हालत अच्छी न होने के चलते हैदर मिर्जा ने मुंबई आकर कई काम किये लेकिन हालात वैसे के वैसे ही थे। मस्तान भी पिता के साथ लगा रहता लेकिन उसके सपने बड़े थे।

18 की उम्र और कुली का काम: साल था 1944 और मस्तान की उम्र अब 18 की हो चली थी। उसने बम्बई डॉक में कुली का काम किया, इसी बीच मस्तान की मुलाकात गालिब शेख नाम के शख्स से हुई। गालिब ने बताया कि उसे एक खास सामान (सोने के बिस्किट और महंगी घड़ियां) को उठाना होगा। ऐसे में मस्तान राजी हो गया और सामान निकाल लाया, कई बार सामान निकालने के बाद शेख और मस्तान की दोस्ती हो गई।

अपराध के आसमान पर नया पक्षी: कुली का काम करने में मस्तान का मन लग चुका था। उन दिनों विदेश से आने वाले लोग महंगी घड़ियां, सोना-चांदी व अन्य कीमती सामान लेकर आते थे, लेकिन सामान पर लगने वाला ज्यादा टैक्स मुसीबत होता था। ऐसे में उनकी मदद मस्तान मिर्जा करता था और उसे अच्छे खासे पैसे भी मिल जाते थे। नया बच्चा और कुली होने के चलते मस्तान पर कोई शक नहीं करता था और इस तरह उसने तस्करी के धंधे को ही अपना मुख्य उद्देश्य बना लिया।

50 का दशक और नया दोस्त: साल 1950 के बाद मस्तान की दुनिया बदल चुकी थी। फिर साल आया 1956 और गुजरात का कुख्यात तस्कर सुकुर नारायण अब मस्तान का दोस्त बन चुका था। दोनों ने मिलकर तस्करी के धंधे में खूब पैसा कमाया और अब कुली मस्तान मिर्जा का नाम माफिया मस्तान भाई हो चुका था।

पाई-पाई को मोहताज मस्तान हो चुका था अमीर: 70 के दशक में मस्तान के साथ वरदराजन का नाम भी मुंबई के बड़े तस्करों में लिया जाता था, लेकिन जब वरदराजन ‘वर्धा’ चेन्नई लौट गया तो मस्तान मिर्जा ही एकमात्र तस्करी के धंधे था। अब मस्तान शानदार डिजाइनर सूट पहने अपनी मर्सिडीज में सवार दिखने लगा था। 1974 में वह पहली बार गिरफ्तार तो हुआ पर हवालात के बजाय उसे एक बंगले में नजरबंद किया गया था। जिसके पीछे का कारण उसके रसूख को भी बताया गया था।

आपातकाल, 18 महीने की जेल और ह्रदय परिवर्तन: देश में आपातकाल की घोषणा के बाद हाजी मस्तान को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। जेल के भीतर मस्तान की मुलाक़ात जयप्रकाश नारायण यानी जेपी से हुई और 18 महीने बाद जब वह जेल से बाहर आया तो अपराध की दुनिया को छोड़ने का इरादा कर लिया।

साल 1980 में अपराध की दुनिया को अलविदा कहने के बाद हाजी मस्तान ने 1984 में एक राजनीतिक पार्टी भी बनाई, जिसका नाम दलित-मुस्लिम सुरक्षा महासंघ रखा गया। पार्टी ने चुनाव भी लड़ा लेकिन कामयाबी नहीं मिली। जिंदगी के आखिरी वक्त में मुंबई का सबसे पहला अंडरवर्ल्ड डॉन और कुख्यात तस्कर अपने परिवार के साथ रहा और साल 1994 में हाजी मस्तान मिर्जा की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई।

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