अरावली की वादियों में बसा जीण माता का भव्य विशाल मंदिर: जहां मुगल शासक औरंगजेब को जीण माता के सामने नतमस्तक होकर भागना पड़ा था.

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इतिहासकारों के अनुसार बाहर से आने वाले मुस्लिम आक्रांता उन्होंने हमेशा हिंदुओं के मंदिरों को तोड़ा. उन्हें तहस-नहस किया. मुगल काल में उसी प्रकार के शासक औरंगजेब ने भी हिंदुओं के मंदिरों को तुड़वाया भले ही वह बड़ा अच्छा शासक रहा हो. उसने जबरदस्ती डरा कर, मौत का डर दिखाकर, लालच देकर हिंदुओं को जबरदस्ती इस्लाम कबूल करवाया. इस्लाम धर्म अपनाने के लिए हिंदुओं को मजबूर किया. सिखों पर बहुत अत्याचार किए. आज भी बहुत बड़ी संख्या में वह मुसलमान है जो कभी उनके पूर्वज हिंदू थे.

ऐसा माना जाता है कि राजस्थान में जीण माता का एक मंदिर ऐसा भी है, जिसके सामने न केवल हिंदू राजा बल्कि दिल्ली की सल्तनत के मुगल बादशाह भी नतमस्तक हो गए थे. यूं तो माता का यह मंदिर भाई बहन के अटूट बंधन का प्रतीक है.

लोगों के मुताबिक वहीं इस मंदिर को तोड़ने की कोशिश करने वाले मुगल बादशाह औरंगजेब को नाको चने चबाने पड़े थे बल्कि मुगल शासक औरंगजेब को मुंह की खानी पड़ी थी. औरंगजेब  सीकर के जीण माता मंदिर को तोड़ने के मंसूबों को सफल नहीं कर पाया था और यहां की महिमा के आगे नतमस्तक होकर उसने यहां हर साल अखंड ज्योत दीपक के लिए सवामण घी और तेल दिल्ली दरबार से भेजना शुरू किया था.

औरंगजेब को भी होना पड़ा था नतमस्तक
सीकर से करीबन 35 किलोमीटर दूरी पर अरावली की वादियों में बसा जीण माता का भव्य विशाल मंदिर है और यहां ही मुगल शासक औरंगजेब को जीण माता की महिमा के सामने नतमस्तक होकर भागना पड़ा था. दरअसल यहां के पुजारियों ने बताया कि जब औरंगजेब पर हिंदुस्तान के मंदिरों को तोड़ने का जुनून सवार हुआ तो मंदिरों को तोड़ने लगा. मंदिर तोड़ता हुआ सीकर के जीण माता पहुंचा, यहां पर जैसे से ही मंदिर को तोड़ने लगा तो यहां लगे भंवरों (मधु मक्खियों) ने औरंगजेब और सेना पर हमला कर दिया.

बताया जाता है कि औरंगजेब भी गंभीर रूप से बीमार हो गया. सेना भी मधुमक्खियों के हमले में घायल हो गई. जैसे-तैसे यहां से जान बचा कर भागना पड़ा, तब औरंगजेब मंदिर पर हमले की अपने करतूत पर अफसोस जताते हुए माफी मांगने जीण मंदिर पहुंचा. यहां मुगल शासक औरंगजेब ने जीण माता के दरबार मे शीश झुका कर मांफी मांगी और माता को अखंड दीपक के लिए हर महीने सवा मण घी तेल भेंट करने का वचन दिया.

इसके बाद से औरंगजेब की तबीयत भी ठीक होने लगी थी. तभी से मुगल बादशाह की इस मंदिर में आस्था भी बन गई और उसके बाद सरकार बनी उसमें 25 पैसे घी तेल के आते थे और अब ₹20. कुछ पैसे तेल के लिए आ रहे हैं लेकिन दिल्ली जाकर लाना इनके लिए महंगा पड़ता है. हालांकि मन्दिर पुजारी रजत कुमार बताते है कि पीढियों पहले लाये जाते होंगे, लेकिन उन्हें याद नहीं है. लेकिन पैसे आते हैं, जो देवस्थान के सरकारी खाते में जमा रहते हैं. मन्दिर कमेटी ये पैसे लेने नहीं जाती है. उन्होंने बताया कि
जो भक्त मंदिर में दर्शनों के लिए आ रहे हैं, उनके चढ़ावे और लाये तेल से जीण मां की अखंड ज्योत मंदिर में जल रही है.

मंदिर पुजारी रजत कुमार ने बताया कि यह मंदिर जयपुर से करीब 115 किमी दूर सीकर जिले में अरावली की पहाड़ियों पर स्थित है. जीण का जन्म चूरू जिले घांघू गांव के एक चौहान वंश के राजा के घर में हुआ था. उनका एक बड़ा भाई भी था हर्ष. जीण और हर्ष, दोनों भाई बहनों में अटूट प्यार था. जीण को शक्ति व हर्ष को भगवान शिव का रूप माना गया है. इन दोनों भाई बहन के बीच ऐसा अटूट बंधन था, जो हर्ष की शादी के बाद भी कमजोर नहीं हुआ.

कहा जाता है कि एक बार जीण अपनी भाभी के साथ पानी भरने सरोवर पर गई हुई थी. दोनों में इसी बात को लेकर पहले तो बहस हुई और फिर शर्त लग गई कि हर्ष सबसे ज्यादा किसे मानते हैं. हल ये निकला कि जिसके सिर पर रखा मटका हर्ष पहले उतारेगा, माना जाएगा कि उसे ही हर्ष सबसे प्यारा मानते हैं. हर्ष ने सबसे पहले अपनी पत्नी के सिर पर रखा मटका उतारा, जीण शर्त हार गई. ऐसे में वो नाराज हो गई और अरावली के काजल शिखर पर नाराज हो कर जा बैठी और तपस्या करने लगी. हर्ष मनाने गया लेकिन जीण नहीं लौटी और भगवती की तपस्यी में लीन रही. बहन को मनाने के लिए हर्ष भी भैरों की तपस्या में लीन हो गया. मान्यता है कि अब दोनों की तपस्या स्थली जीणमाता धाम और हर्षनाथ भैरव के रूप में जानी जाती है.

हर साल मेले में उमड़ता है भक्तों का शैलाब
हर साल नवरात्रि में आयोजित होने वाले मेले में लाखों की संख्या में भक्तों का शैलाब उमड़ता है. लोग जात जडूले धोक लगाकर मनोतियां मांगते हैं. सूरत की रहने वाली दीपिका शर्मा ने बताया कि जीणमाता उनकी कुलदेवी है. वह हर साल अपने परिवार के साथ जात जडूले उतारने के लिए यहां आते हैं. माता के दर्शन मात्र से ही उनकी हर मनोकामना पूरी हो जाती है.

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