क्या आप जानते हैं सपेरे की बीन की धुन पर सांप क्यों नाचते हैं? वास्तव में सच्चाई क्या है ?पढ़ें पूरी खबर.

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दुनिया भर में सांपों की हजारों प्रजातियां पाई जाती हैं। कई प्रजाति के सांप जहरीले भी होते हैं और कुछ ऐसे होते हैं जिनमें जहर नहीं होता है। सांप दुनिया के लगभग हर देश में पाए जाते हैं। सांप स्वभाव से बेहद शर्मीले जीव होते हैं, लेकिन फिर भी इन्हें देखकर ज्यादातर लोग डर जाते हैं। सांपों की दुनिया रहस्यों से भरी हुई है। सांप अपनी मणियों के लिए भी जाने जाते हैं। ऐसा सांप लाखों में कोई एक होता है जिसके पास मणि होती है।

सांप को लेकर भारत में अपनी विशेष धार्मिक मान्यताएं भी हैं। सनातन धर्म में सांप का विशेष महत्व है। सांप हिंदुओं के देवता भगवान शंकर के गले का आभूषण है। सांप को लेकर कई कहानियां कही जाती हैं। आज हम सांप से जुड़े हुए एक ऐसे ही तथ्य के बारे में जानेंगे। ऐसा कहा जाता है कि सांप बीन की धुन को सुनकर नाचने लगते हैं। अब इस बात में कितनी सच्चाई है आइए जानते हैं.

ऐसा कहा जाता है कि सांप को बीन की धुन काफी पसंद होती है, लेकिन सांप पूरी तरीके से बहरा होता है। जी हां, सांप किसी भी आवाज को सुन नहीं सकता है। आपने सांप को देखते हुए गौर किया होगा कि सांप के शरीर पर कान नहीं होते हैं। दरअसल सांप कभी बीन की धुन पर नाचता ही नहीं है, बल्कि जब सपेरा बीन बजाते समय बीन को हिलाता है। सांप उसे देखकर अपने शरीर को हिलाता है जो एक सामान्य घटना है।

आपने कभी गौर किया होगा कि सपेरे की बीन के ऊपर ढेर सारे कांच के टुकड़े लगाए जाते हैं। इसके पीछे की वजह ये है कि जब उन कांच के टुकड़ों पर धूप या कोई रोशनी पड़ती है तो उससे निकलने वाली चमक से सांप हरकत में आ जाता है।

अब ऐसे में जब सपेरा अपनी बीन बजाते हुए हिलाता है तो सांप का ध्यान उस रोशनी पर जाता है। सांप उस रोशनी को फॉलो करता है और रोशनी की चमक जिधर जाती है, सांप भी उसी ओर हिलने लगता है। ऐसे में हमें लगता है कि सांप बीन की धुन पर नाच रहा है जबकि ऐसा नहीं होता है।

दरअसल सांप कानों के स्थान पर किसी भी गतिविधि को भांपने के लिए अपनी त्वचा का इस्तेमाल करते हैं। सांप अपने आस-पास होने वाली किसी भी गतिविधियों को अपनी त्वचा पर पड़ने वाली तरंगों के माध्यम से पहचान लेते हैं। ऐसे में जब सांपों को किसी खतरे का आभास होता है तो वो अपने फन को फैला लेते हैं। जब कोई सांपों को छेड़ता है तो उन्हें इसका आभास अपनी त्वचा से हो जाता है।

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