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उत्तराखंड के चुनाव में भाजपा को अपने बगियों के साथ कार्यकर्ताओं की उदासीनता का भी सामना करना पड़ रहा है। अपने कार्यकर्ताओं को पूरी ऊर्जा के साथ सक्रिय करने के लिए उसके चुनाव प्रबंधकों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। संगठन के प्रमुख नेताओं के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता भी इस काम में मदद कर रहे हैं।
उत्तराखंड में इस बार के विधानसभा चुनाव में पार्टी को अपने पुराने संगठनात्मक नेताओं की कमी खल रही है। संगठन में बेहद सक्रिय रहने वाले पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी राज्यपाल होने के कारण सक्रिय राजनीति से दूर हैं। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक अब जरूर सक्रिय हुए हैं और उन्होंने कई सीटों पर बागी उम्मीदवारों को बैठाने में सफलता भी हासिल की है, लेकिन पूरे प्रदेश के कार्यकर्ताओं में जिस तरह की उदासीनता देखी जा रही है उसे लेकर पार्टी चिंतित है। अब जबकि मतदान को बहुत कम समय बचा है ऐसे में बूथ प्रबंधन से लेकर चुनाव प्रचार को घर-घर तक पहुंचाने और मतदाताओं को निकालने के लिए उसे स्वतः स्फूर्त कार्यकर्ताओं की बहुत ज्यादा जरूरत है।
उत्तराखंड में नाम वापसी के बाद लगभग दर्जन सीटों पर भाजपा के बागी उम्मीदवार उतरे हुए हैं। हालांकि पार्टी को उम्मीद है कि मतदान के पहले इनमें से अधिकांश बैठ जाएंगे और उनका नाम से तकनीकी तौर पर ही मतपत्र में रहेगा और वह पार्टी के साथ काम करेंगे, लेकिन पार्टी की ज्यादा चिंता कार्यकर्ताओं की उदासीनता को लेकर है। दरअसल कार्यकर्ता पार्टी के कार्यक्रमों में तो दिखते हैं, लेकिन जनता के बीच उनकी सक्रियता में काफी कमी रहती है।
इस समय जबकि पार्टी को कांग्रेस के साथ लगभग सीधे मुकाबले में कड़ी चुनौती मिल रही है, तब एक-एक मतदाता उसके लिए बहुत जरूरी है। सूत्रों के अनुसार संघ के प्रमुख नेताओं ने विभिन्न स्थानों पर बैठकों का आयोजन कर कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया है, लेकिन अभी भी इस काम को और तेज करने के करने की काफी जरूरत महसूस की जा रही है। कई जगह रूठे और उदासीन कार्यकर्ताओं को मनाया गया है, वहीं कुछ जगह बड़े नेताओं के आगे आने से कार्यकर्ता पीछे से जुटे भी हैं।