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हाल ही में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उत्तराखंड भी केंद्र में रहा, क्योंकि जिन पांच राज्यों में अगले कुछ महीनों में चुनाव हैं, उनमें उत्तराखंड भी शामिल है। इसमें पार्टी ने स्लोगन दिया, युवा उत्तराखंड, युवा मुख्यमंत्री। उत्तराखंड ने हाल में में अपनी 21वीं वर्षगांठ मनाई और धामी अब तक के सबसे युवा मुख्यमंत्री हैं। यह तो ठीक, लेकिन चर्चा है कि पार्टी के इस स्लोगन के कारण कई सिटिंग विधायकों की सांस अटक गई है। कारण यह कि भाजपा के कई विधायक और कुछ मंत्री युवावस्था को दशकों पीछे छोड़ चुके हैं। इस बार ऐसे कई विधायकों का टिकट कट सकता है। अब राज्य युवा, मुख्यमंत्री युवा, तो विधायकों की टीम भी युवा ही होगी।
21 साल में बसपा के 19 प्रदेश अध्यक्ष
उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद हुए पहले तीन विधानसभा चुनावों में भाजपा व कांग्रेस के बाद बसपा तीसरी बड़ी राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी। 2002 के पहले चुनाव में बसपा के सात, 2007 के दूसरे चुनाव में आठ और 2012 के तीसरे चुनाव में बसपा के तीन विधायक बने, मगर वर्ष 2017 के चौथे चुनाव के बाद बसपा बिल्कुल हाशिये पर चली गई। इसके बावजूद संगठन में बदलाव के मामले में बसपा अन्य को बराबरी की टक्कर दे रही है। स्थिति यह है कि 21 साल के उत्तराखंड में बसपा के 19 नेता हाथी के महावत, यानी प्रदेश अध्यक्ष बन चुके हैं।
चुनाव जीतना जरूरी, मुख्यमंत्री तो बन ही जाएंगे
विधानसभा चुनाव में मोदी से सीधे मुकाबले से बच रहे कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के मुखिया हरीश रावत ने नया दांव खेला है। उन्हें मालूम है कि उत्तराखंड में कांग्रेस केवल उन्हीं के चेहरे के भरोसे है, जबकि भाजपा के पास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जादू और युवा मुख्यमंत्री धामी की धमक है। लिहाजा, अब रावत ने शिगूफा छोड़ दिया है कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे। हरदा का कहना है कि वह चुनाव लड़ाएंगे, तो अधिक कामयाब रहेंगे। दरअसल, अगर हरदा स्वयं मैदान में न रहें तो मुकाबला कांग्रेस बनाम भाजपा होगा। ऐसे में कांग्रेस के लिए कुछ संभावना तो बनती है। इतना तो तय है कि टिकट बटवारे में हरदा की ही सबसे अहम भूमिका रहेगी। ज्यादा से ज्यादा अपने लोग टिकट पा जाएंगे तो बगैर चुनाव लड़े भी मुख्यमंत्री बन सकते हैं,