अमरुल्लाह सालेह ने ट्वीट कर कहा कि मैं कभी भी और किसी भी परिस्थिति में तालिबान के आतंकवादियों के सामने नहीं झुकूंगा।

VS CHAUHAN KI REPORT

अफगानिस्तान में काबुल जीत चुका तालिबान सरकार बनाने की तैयारी में जुटा है। वहीं, दूसरी तरफ अफगान लोगों को मझधार में छोड़कर भाग खड़े हुए उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया है। उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन पर भी निशाना साधते हुए कहा कि उनसे बहस करना अब बेकार है। सालेह ने नॉर्दन अलायंस की तरह अफगान नागरिकों से तालिबान के विरोध में खड़े होने की भी अपील की है।

सालेह ने खुद को राष्ट्रपति घोषित किया
अमरुल्लाह सालेह ने ट्वीट कर कहा कि अफगानिस्तान के संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति की अनुपस्थिति, पलायन, इस्तीफा या मृत्यु में उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाता है। मैं वर्तमान में अपने देश के अंदर हूं और वैध देखभाल करने वाला राष्ट्रपति हूं। मैं सभी नेताओं से उनके समर्थन और आम सहमति के लिए संपर्क कर रहा हूं।

उन्होंने दूसरे ट्वीट में अमेरिका पर निशाना साधते हुए कहा कि अब अफगानिस्तान पर जो बाइडेन से बहस करना बेकार है। उसे जाने दो। हमें अफगानों को यह साबित करना होगा कि अफगानिस्तान वियतनाम नहीं है और तालिबान भी दूर से वियतनामी कम्यूनिस्ट की तरह नहीं हैं। यूएस-नाटो के विपरीत हमने हौसला नहीं खोया है और आगे अपार संभावनाएं देख रहे हैं। चेतावनियां समाप्त हो गई हैं। प्रतिरोध में शामिल हों।

सालेह बोले- तालिबान के सामने नहीं झुकूंगा
रविवार को उन्होंने ट्वीट कर कहा कि मैं कभी भी और किसी भी परिस्थिति में तालिबान के आतंकवादियों के सामने नहीं झुकूंगा। मैं अपने नायक अहमद शाह मसूद, कमांडर, लीजेंड और गाइड की आत्मा और विरासत के साथ कभी विश्वासघात नहीं करूंगा। मैं उन लाखों लोगों को निराश नहीं करूंगा जिन्होंने मेरी बात सुनी। मैं तालिबान के साथ कभी भी एक छत के नीचे नहीं रहूंगा। कभी नहीं।

पंजशीर घाटी में छिपे हैं सालेह
तालिबान के डर से अमरुल्लाह सालेह अफगानिस्तान के पंजशीर घाटी में छिपे हुए हैं। इसे नॉर्दन अलायंस के पूर्व कमांडर अहमद शाह मसूद का गढ़ बताया जाता है। यह इलाका इतना खतरनाक है कि आजतक तालिबान भी इसपर कब्जा नहीं कर सका है। पंजशीर एकमात्र ऐसा प्रांत है जो अब भी तालिबान के कब्जे से बाहर है। उत्तर-मध्य अफगानिस्तान की इस घाटी पर 1970 के दशक में सोवियत संघ या 1990 के दशक में तालिबान ने कभी कब्जा नहीं किया था।

अफगानों के हीरो थे अहमद शाह मसूद
1990 के दशक में अहमद शाह मसूद ने तालिबान के साथ अपने संघर्ष के दौरान बड़ी प्रतिष्ठा हासिल की थी। भारत भी उनकी मदद करता रहा है। कहा जाता है कि एक बार जब अहमद शाह मसूद तालिबान के हमले में बुरी तरह घायल हो गए थे तब भारत ने ही उनको एयरलिफ्ट कर ताजिकिस्तान के फर्कहोर एयरबेस पर इलाज किया था। यह भारत का पहला विदेशी सैन्य बेस भी है। इसे खासकर नार्दन अलायंस की मदद के लिए ही भारत ने स्थापित किया था।

 

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