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सांबा के निकट बसंतर नदी किनारे राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित चीची माता मंदिर है। चीची मां का वर्णन पौराणिक कथाओं में मां चर्चिका के रूप में भी मिलता है। बसंतर नदी जिसमें कृष्ण के पौत्र सम्ब ने तप कर कुष्ठ रोग से निजात पाई थी। उसी के नाम पर इस स्थान का नामा सांबा पड़ा। जहां चीची माता का यह मंदिर स्थित है। बसंतर नदी मां के परिसर के निकट से इस प्रकार गुजरती है जैसे चीची मां का चरण स्पर्श कर रही हो। सांबा के निकट इस पवित्र स्थल चीची माता में हर रविवार और मंगलवार को श्रद्धालुओं का तांता लगता है।
नंदिनी पहाडिय़ों में स्थित चीची मां को लोग मां पार्वती अर्थात सती का शक्ति पीठ मानते हैं। चीची मां की कथा के बारे कहा जाता है कि जब दक्षराज ने अपने दामाद महादेव को यज्ञ में नहीं बुलाया तब यज्ञ की जानकारी पाकर मां सती अकेली ही दक्षराज की सभा में पहुंच गई। वहां पहुंचकर भी जब उन्होंने पति के लिए सम्मान नहीं पाया और अपने पति शिव के प्रति पिता के दुर्वचन सुने तो उन्होंने क्रोधित होकर उसी यज्ञकुण्ड में छलांग लगा दी।
इस तरह देवी पार्वती पिता के यज्ञकुण्ड में ही सती हो गईं। मां सती की मृत्यु से क्रोधित शिव उनके निर्जीव शरीर को उठाए ब्रह्मांड में घूमने लगे। तब प्राणियों को उनके क्रोध की ज्वाला से बचाने हेतु देवताओं ने विष्णु से आग्रह किया कि किसी प्रकार सती के शव से शिव का पिंड छुड़ाया जाए। कहा जाता है कि विष्णु ने अपने चक्र के वार से मां सती का निर्जीव शरीर खण्ड-खण्ड कर दिया। उनके शरीर के टुकड़े जहां जहां गिरे, वह शक्ति पीठ कहलाए। कहते हैं कि इस स्थान पर मां की चीची अंगुली अर्थात सबसे छोटी अंगुली गिरी थी। इसी के चलते यह स्थान चीची माता के नाम से प्रसिद्ध हुआ।