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उत्तराखंड में इस बार जंगलों में आग और भीषण गर्मी के कारण ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार में भी इजाफा देखने को मिला है. पानी के स्रोत लगातार सूखते जा रहे हैं. जंगल दहक रहे हैं. धरती तप रही है. मौसम की पलटमार से जीव-जंतु से लेकर इनसान तक सब हैरान और परेशान हैं. इसी का नतीजा है कि कहीं पहाड़ दरक रहे हैं तो कहीं बाढ़ ने तबाही मचाई हुई है.
उत्तराखंड का बदलता मौसम पहाड़ों को मिजाज को गर्म कर रहा है. उसी का नतीजा है कि जगह-जगह से पहाड़ दरक रहे हैं. ग्लेशियर सूख रहे हैं. आलम ये है कि मैदानों को हरा-भरा रखने वाली पहाड़ी नदियों अब धीरे-धीरे सिकुड़ रही हैं.
गोमुख ग्लेशियर साल दर साल घटता जा रहा है. इस साल जिस तरह जंगलों में आग और गर्मी के कारण तापमान में बढ़ोत्तरी देखी गई उससे यह ग्लेशियर भी तेजी से पिघला है. नतीजा रहा कि जून में भागीरथी नदी का जलस्तर बढ़ गया है. गंगा के बढ़ते जलस्तर को देखते हुए पर्यावरण प्रेमी खासे परेशान हैं.
पर्यावरण प्रेमी लोकेंद्र बिष्ट का कहना है कि 100 साल से जो जल स्रोत कभी नहीं सूखे थे वे भी इस बार की प्रचंड गर्मी के कारण सूख गए. हिमालय क्षेत्रों में तापमान में बढ़ोतरी का एक कारण जंगलों में आग भी रहा है. उन्होंने कहा कि जिस तरह से जंगल जले उससे भविष्य को लेकर चिंता होनी जरूरी है.
पर्यावरण प्रेमी कल्पना कहती हैं कि इस बार पूरे उत्तराखंड में पानी का संकट गहराया हुआ है. हिमालय क्षेत्र में आ रहा बदलाव चिंता का कारण है. ऐसे में जरूरत है गहरा चिंतन की जिससे पर्यावरण, ग्लेशियर को बचाया जा सके.