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दिल्ली नहीं आई रास
अपने पिता की सलाह पर राधा रतूड़ी ने यूपीएससी की तैयारी की। उन्हें इंडियन इंफॉर्मेशन सर्विस में सफलता मिली। 1985-86 में नियुक्ति के लिए राधा रतूड़ी दिल्ली गईं, लेकिन उनको दिल्ली रास नहीं आई। उन्होंने एक बार फिर यूपीएससी की परीक्षा देने का फैसला किया। यहां अगले ही प्रयास में राधा रतूड़ी को इंडियन पुलिस सर्विस में जगह बनाने में कामयाबी मिली। 1987 में राधा रतूड़ी आईपीएस में चयनित होने के बाद हैदराबाद में ट्रेनिंग के लिए गई थीं, जहां उनकी मुलाकात 1987 बैच के ही आईपीएस अनिल रतूड़ी से हुई। यहां से दोस्ती का सफर शुरू हुआ तो बात शादी तक पहुंच गई।
कैडर कई बार बना दूरी की वजह
उत्तराखंड कैंडर में चल रही सेवा
आईएएस में चयन के बाद राधा रतूड़ी ने देश के चार राज्यों में अपनी सेवाएं दिया। मध्य प्रदेश में काम करने के बाद कैडर चेंज हुआ और उन्हें उत्तर प्रदेश के बरेली में पोस्टिंग मिली। इसके बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश में विभिन्न जिम्मेदारियों को देखा। इस दौरान आईपीएस अनिल रतूड़ी के नेशनल पुलिस अकादमी हैदराबाद में जाने पर राधा रतूड़ी ने स्टडी लीव ले ली। इसके बाद वह प्रतिनियुक्ति पर आंध्र प्रदेश में पोस्टिंग लेकर 2 साल जॉइंट सेक्रेटरी के रूप में सेवारत रहीं। वर्ष 1999 में वह वापस उत्तर प्रदेश आ गई। 9 नवंबर 2000 को जब उत्तराखंड राज्य अलग राज्य के रूप में स्थापित हुआ तो राधा रतूड़ी ने उत्तराखंड कैडर ले लिया। इसके बाद से अब तक उत्तराखंड में सेवाएं दे रहीं हैं।
लोगों की वित्तीय मदद
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में राधा रतूड़ी ने कई जिलों में जिलाधिकारी का कार्यभार संभाला। उत्तराखंड में लगभग 10 साल तक चीफ इलेक्ट्रोल ऑफिसर का काम संभाला। टिहरी विस्थापन के दौरान उन्होंने विस्थापितों की भी बहुत मदद की। जबकि उत्तर प्रदेश में सेवारत रहते हुए उन्होंने दिव्यांगजनों के लिए भी अपने स्तर पर बेहतर प्रयास किया। लड़कियों की शिक्षा और उनके लिए उनकी बेहतरी के कार्य करने के लिए राधा रतूड़ी व्यक्तिगत रूप से भी वित्तीय मदद करती हैं।
लोकगीत के प्रति खास लगाव
चर्चा है कि राधा रतूड़ी घर के कामकाज खुद भी करती हैं। अपने बच्चों को भी अपने काम दूसरों पर छोड़ने की बजाए खुद करना सिखाया है। महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के प्रति भी वे बेहद संजीदा रहीं। राधा रतूड़ी अपने फैसलों के लिए जितनी दृढ़ रहती हैं, उतनी ही भावुक हुए बच्चों और लड़कियों के प्रति भी रहती हैं। आईएएस राधा रतूड़ी अपनी संस्कृति से भी खासा लगाव रखती हैं। पढ़ने-लिखने की शौकीन होने के साथ ही लोकगीतों के प्रति भी उनका लगाव कई मंचों पर झलकता है। इनके पति डॉ. अनिल रतूड़ी उत्तराखंड डीजीपी पद से रिटायर हो चुके हैं। दोनों की छवि ईमानदार अधिकारियों के रूप में