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उत्तराखंड के ग्रामीण विकास एवं पलायन निवारण आयोग ने 2018-2022 की अपनी अंतरिम रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी है। रिपोर्ट में स्थायी प्रवासन में गिरावट का दावा किया गया है। रिपोर्ट में प्रस्तुत डेटा पिछले पांच वर्षों में लोगों के बाहर जाने में विस्तृत वृद्धि को दर्शाता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018 से 2022 तक, कुल 3.3 लाख लोग राज्य के विभिन्न हिस्सों, खासकर पहाड़ियों से पलायन कर गए। इनमें से से 92 प्रखंडों के 6,436 गांवों के 3 लाख लोगों ने अस्थायी प्रवासन का विकल्प चुना। यानी उन्होंने स्थायी रूप से गांवों में अपना घर नहीं छोड़ा। वहीं इस अवधि में 72 प्रखंडों के 2,067 गांवों के 28,631 लोग स्थायी रुप से बाहर चले गए। रिपोर्ट के मुताबिक 2011 तक, उत्तराखंड में 1,034 निर्जन गांव थे और 2011 से 2018 तक इनकी संख्या में 734 की वृद्धि हुई।
हालिया डेटा के मुताबिक यह संख्या 24 और बढ़ गई है, जिससे घोस्ट विलेज की कुल संख्या 1,792 हो गई है। आंकड़ों से पता चलता है कि टिहरी में 9 गांव, चंपावत में 5, पौड़ी और पिथौरागढ़ में तीन-तीन और अल्मोड़ा और चमोली में दो-दो गांव हैं, जिनमें ‘कोई आबादी नहीं’ है।
2008 से 2018 तक औसत प्रवास-स्थायी और अस्थायी दोनों-138 प्रतिदिन था। जनवरी 2018 से सितंबर 2022 की अवधि में यह 193 हो गया। ताजा आंकड़ों के मुताबिक अल्मोड़ा में सबसे अधिक स्थायी रुप से प्रवास 5,926 देखने को मिला। उसके बाद टिहरी में 5,653 और पौड़ी में 5,474।
सबसे कम स्थायी प्रवास देहरादून (312) और उधम सिंह नगर (82) जिलों में मिला। जबकि अल्मोड़ा में 54,519 लोगों ने अस्थायी प्रवास का विकल्प चुना। इसके बाद टिहरी में 41,359 और पौड़ी में 29,093 लोगों ने अस्थायी प्रवास किया।
चंपावत (13,711) और देहरादून (9,309) में सबसे कम अस्थायी पलायन दर्ज किया गया। इन नंबरों के बारे में आयोग के उपाध्यक्ष एसएस नेगी के मुताबिक-ग्रामीण इलाकों में, स्थानीय लोगों ने अपना काम शुरू कर दिया है और स्वरोजगार, विशेष रूप से बागवानी का विकल्प चुना है। उन्होंने कहा अच्छी बात यह है कि राज्य में स्थायी पलायन में कमी आई है, जबकि अस्थायी पलायन का आंकड़ा लगभग समान बना हुआ है।
प्रतिदिन पलायन करने वालों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा 2008 से 2018 के 70.3% की तुलना में 2018 और 2022 के बीच 76.9% लोगों ने राज्य के भीतर प्रवास किया। उन्होंने कहा विभिन्न नीतिगत हस्तक्षेपों और अतिरिक्त संसाधनों के आवंटन के बावजूद, प्रवास के मामलों में वृद्धि जारी है जो कि एक चिंता का विषय है।