जोशीमठ के बाद अब उत्तरकाशी में भी जमीन धंसने और घरों में दरारों का मामला. गांव में रहने वाले 100 परिवारों पर पलायन का खतरा.

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जोशीमठ के बाद अब उत्तरकाशी में भी जमीन धंसने और घरों में दरारों का मामला सामने आया है. यहां यमुना में कटान के चलते कई घरों में दरारें आ गईं हैं. जिससे गांव में रहने वाले 100 परिवारों पर पलायन का खतरा मंडरा रहा है. खौफ में जी रहे स्थानीय लोगों ने डीएम से विस्थापन की मांग की है.

उत्तरकाशी जनपद का मस्ताड़ी गांव 31 सालों से भूमि धंसाव की चपेट में हैं. यहां लोगों के घरों में दरारें आई हैं. रास्ते व खेत लगातार धंसते जा रहे हैं. ग्रामीण लंबे समय से विस्थापन की मांग कर रहे हैं लेकिन अभी तक विस्थापन नहीं हो पाया है. प्रशासन का कहना है कि विस्थापन के लिए भूमि चयनित कर ली गई है. भूगर्भीय सर्वे के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी.

साल दर साल पहाड़ के गांव भूस्खलन की जद में आ रहे हैं, लेकिन प्रभावित ग्रामीणों को सुरक्षित ठिकानों पर बसाने की कवायद सिर्फ फाइलों में ही चल रही है। हर वर्ष खतरे की जद में आने वाले गांवों की संख्या तो लगातार बढ़ रही है, परंतु इन गांवों को सुरक्षित बसाने की कार्रवाई गिनती में हो रही है।

आपदा के लिहाज से बेहद संवेदनशील उत्तरकाशी जनपद में भटवाड़ी, मस्ताड़ी, अस्तल, उडरी, धनेटी, सौड़, कमद, ठांडी, सिरी, धारकोट, क्यार्क, बार्सू, कुज्जन, पिलंग, जौड़ाव, हुर्री, ढासड़ा, दंदालका, अगोड़ा, भंकोली, सेकू, वीरपुर, बड़ेथी, कांसी, बाडिया, कफनौल एवं कोरना कुल 27 गांव अत्यधिक संवेदनशील चिहि्नत किए गए हैं।

गौरतलब है कि 2003 में वरुणावत पर्वत से भूस्खलन हुआ था जनपद उत्तरकाशी में भूस्खलन और भू धंसाव का इतिहास त्रासदीपूर्ण रहा है। भू-धंसाव से यहां भूगोल बदला है। 2003 में वरुणावत पर्वत से भूस्खलन हुआ, जिसने उत्तरकाशी का भूगोल ही बदल डाला। 2010 में भटवाड़ी गांव और तहसील मुख्यालय पर भू-धंसाव हुआ। करीब 50 परिवारों के मकान जमीदोज हुए। वर्ष 1997 में डुंडा तहसील का बागी गांव भी भूस्खलन के कारण जमीदोज हुआ। उस समय 129 परिवार बेघर हुए। फिर कई आंदोलनों के बाद वर्ष 2005 में वरुणावत पैकेज के तहत इन परिवारों को प्रति परिवार 3.60 लाख रुपये की विस्थापन राशि दी गई। वर्ष 2008 से बार्सू गांव में भी भूस्खलन हो रहा है। वर्ष 2012-2013 की आपदा के बाद भूस्खलन प्रभावित गांवों की संख्या बढ़ती रही। उत्तरकाशी में फिलहाल 56 गांवों के 773 परिवारों को विस्थापन की जरूरत है। इनमें अति संवेदनशील गांवों की संख्या 27 है। इन गांवों की खतरे की स्थिति का आकलन के लिए कई बार सर्वे हो चुके हैं

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