Herdyes goswami for NEWS EXPRESS INDIA
उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल का सबसे बड़ा शहर हल्द्वानी है, जो समुद्री तल से 424 मीटर ऊंचाई पर है. हल्द्वानी की स्थापना सन 1834 में हुई थी, उस समय हल्द्वानी पहाड़ का बाजार नाम से जाना जाता था. तब यहां हल्दू के पेड़ अधिक संख्या में पाए जाते थे जिस कारण इस शहर का नाम हल्द्वानी पड़ा. उत्तराखंड में हल्द्वानी तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला शहर है. यह कुमाऊं क्षेत्र का सबसे बड़ा शहर कहलाता है. हल्द्वानी शहर को कुमाऊं के प्रवेश द्वार के रूप में भी जाना जाता है.
हल्द्वानी शहर की ज्यादा जानकारी के लिए हमने अकादमिक परामर्शदाता यूओयू के राजेन्द्र क्वीरा से हल्द्वानी के इतिहास के बारे में बात की. उन्होंने बताया कि मुगल इतिहासकारों का कहना है कि 14वीं शताब्दी में, एक स्थानीय शासक चंद वंश के ज्ञान चंद ने दिल्ली सल्तनत का दौरा कियाऔर सुल्तान से अनुदान के रूप में गंगा तक भाभार-तराई के क्षेत्रों को प्राप्त किया. बाद में, मुगलों ने पहाड़ियों पर कब्जा करने की कोशिश की लेकिन क्षेत्र की कठिन पहाड़ी भूमि के कारण वे सफलता प्राप्त नहीं कर सके.
19वीं और 20वीं सदी में ऐसे बना व बढ़ा शहर
सन 1816 में यहां जब राजा रूपचंद का शासन हुआ करता था, तब से ही ठंडे स्थानों से लोग यहां सर्दियों का समय व्यतीत करने के लिये आया करते थे. सन् 1815 में जब यहां गोरखों का शासन था तब अंग्रेज कमिश्नर गार्डनर के नेतृत्व में अंग्रेजों ने गोरखों को यहां से भगाया. गार्डनर के बाद जब जॉर्ज विलियम ट्रेल यहां के कमिश्नर बन कर आये तब उन्होंने इस हल्द्वानी शहर को बसाने का काम शुरू किया. ट्रेल ने सबसे पहले अपने लिये यहां बंग्ला बनाया, जिसे आज भी “खाम का बंग्ला” कहा जाता है. सन् 1882 में रैमजे ने पहली बार नैनीताल से काठगोदाम तक एक सड़क का निर्माण करवाया था.
तहसील का कार्यालय 1899 में यहां खोला गया, जब वह नैनीताल जिले के चार हिस्सों में से एक भाभर के तहसील मुख्यालय बन गया. इसमें 4 कस्बों और 511 गांव शामिल थे. 1,297 वर्ग मीटर में फैली 93,445 की कुल जनसंख्या थी. सन 1907 में हल्द्वानी को शहर क्षेत्र का दर्जा मिला था. हल्द्वानी-काठगोदाम नगर परिषद की स्थापना 21 सितंबर 1942 को हुई थी. वर्तमान में “हल्द्वानी” हरिद्वार के बाद उत्तराखंड का दूसरा सबसे बड़ा नगर परिषद है.