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भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में शोधकर्ताओं ने बलुआ पत्थर से बने विशाल रहस्यमयी जार का पता लगाया है। इनके आकार और बनावट दोनों अलग-अलग हैं। असम में मिले जार लाओस और इंडोनेशिया में पाए गए लगभग एक हजार साल पुराने बेलनाकार जार जैसे हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि प्राचीन समय में शव को दफनाने के लिए इनका इस्तेमाल किया गया होगा। मेघालय के उत्तर पश्चिम हिल यूनिवर्सिटी के तिलोक ठाकुरिया और असम के गौहाटी यूनिवर्सिटी के उत्तम बथारी के नेतृत्व में एक टीम ने इसे खोजा है।
हालांकि जार कितने पुराने हैं पुरातत्विदों ने इसकी कोई तारीख तय नहीं की है। उनका कहना है कि इस इलाके में मिलने वाले जार करीब 401 ईसा पूर्व के हैं। असम में पहली बार साल 2020 में ये जार मिले थे। भारत और ऑस्ट्रेलिया के तीन विश्वविद्यालयों ने इस पर शोध किया है। इस स्टडी को ‘जर्नल ऑफ एशियन आर्कियोलॉजी’ में प्रकाशित किया गया है।
शोध के मुताबिक, कुछ जार लंबे और बेलनाकार हैं, जबकि अन्य आंशिक रूप जमीन में दबे हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि इनमें कुछ जार तीन मीटर ऊंचे और दो मीटर चौड़े हैं। द ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी (एएनयू) में पीएचडी के छात्र निकोलस स्कोपल ने कहा, विशाल जार अभी एक रहस्य है।
उन्होंने कहा कि इन विशालकाय जार को किसने बनवाया और वह कहां रहते थे? अभी यह पता नहीं चल पाया है। इसके साथ ही संभावना जताई है कि इनका इस्तेमाल मुर्दाघर में शवों को प्रथाओं के अनुसार दफनाने के लिए किया जाता होगा।
700 से अधिक मिले हैं जार
नागा लोगों में कहानियां मशहूर हैं कि इन जार में मोती और अन्य भौतिक सामान होते थे। शोधकर्ता ने बताया कि ये जार अब खाली हैं, लेकिन कभी ये भरे रहे हों और ढक्कन से बंद किए गए हों ऐसी संभावना है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इससे पहले मेघायल में भी ऐसी साइट मिली थी। उन्होंने बताया है कि असम में ऐसी साइटों पर 700 से अधिक जार मिले हैं। उन्होंने कहा कि अभी छोटे इलाके में खोजा गया है। अगर अच्छे से खोजा जाएगा, तो बड़े पैमाने पर जार मिलेंगे।
निकोलस स्कोपल ने कहा कि खेती के लिए जंगलों का सफाया होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि जितना समय इन जार को खोजने में लगेगा उनके खत्म होने की संभावना भी उतनी है। लाओस में भी 2016 में ऐसे ही जार खोजे गए थे। भारत और लाओस में मिले जार में समानता दिखती है। बस उनकी बनावट अलग है।