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हमारे देश में भले ही देह-व्यापार को लेकर कानून हों लेकिन देश के कई हिस्सों में ये आज भी देह व्यापार लाखों लड़कियों का भाग्य है। वैसे तो देह व्यापार राजशाही जमाने में भी चलता था और आज भी दिल्ली, मेरठ, बदायूं आदि रेड लाइट इलाकों में देह व्यापार चल रहा है. देश के कुछ हिस्सों में कहीं कहीं देह व्यापार बंद भी हो चुका है लेकिन पूरी तरह बंद नहीं हुआ. क्योंकि गरीबी और मजबूरी के कारण बहुत सी महिलाएं देह व्यापार जैसे कार्य को करने के लिए मजबूर हो जाती हैं. और देश के दूसरे या अधिकतर इलाकों में देह व्यापार पर्दे के पीछे चलता है. और इसका रूप बदल जाता है.
बहुत सी जगह वेशलय बंद हो चुके हैं. लेकिन सवाल यह है. वेश्यालय आए कहां से? इस बारे में कई तरह के विचार हैं, जिनमें से ज्यादातर लोगों का यही कहना है कि पहले के समय में इन जगहों पर केवल नाच-गाना ही हुआ करता था। जिसे कला की दृष्टि से देखा जाता था पर समय बीता और कला की जगह देह व्यापार जैसा इस अभिशाप ने ली. लेकिन देह व्यापार आज के महंगाई के जमाने में गरीब और मजबूर महिलाओं की आवश्यकता भी बन गया है. इसलिए इस व्यापार का रूप बदल जाता है.
देश के कई हिस्सों में आज भी कई लड़कियां इस अभिशाप को भुगतने के लिए मजबूर हैं। उन्हीं इलाकों में से एक है कोलकाता का सोनागाछी एरिया. सोनागाछी का मतलब होता है सोने का पेड़. आज भी देश के कई हिस्सों में रेड लाइट एरिया है. जहां खुलेआम देह व्यापार होता है.
सोनागाछी स्लम भारत ही नहीं, एशिया का सबसे बड़ा रेड-लाइट एरिया है। यहां कई गैंग हैं जो इस देह-व्यापार के धंधे को संचालित करते हैं।सोनागाछी शब्द आपके कानों में कई बार गूंजा होगा. कभी रसीली और चटपटी गप के रूप में…तो कभी दर्दभरी लड़ियों जैसी दुखांत कहानियों की तरह. यहां की 10 बाई 10 की खोलियों से कराह और कहकहों के स्वर एक साथ निकलते हैं. इन ध्वनियों के अपने-अपने मायने हैं. किसी के लिए ये खालिस मनोरंजन है, जहां रकम के बदले एक सौदा है…तो अगले ही पल ये जिल्लत और जिंदगी की कहानी है, जहां घोर अंधियारा है. न कोई सितारा है…न आफताब.
जानकारी के दोहराव का खतरा उठाते हुए भी हम आपको बताना चाहते हैं कि सोनागाछी कोलकाता का एक इलाका है. 300 साल से भी पुराने हुगली नदी के तट पर बसे कोलकाता शहर की कई चीजें खास हैं मसलन रसगुल्ला ही कह लें, हिल्सा मछली, गीत संगीत, फिल्म, क्रांति, हस्तियां बहुतेरी बातें हैं. लेकिन कोलकाता से जुड़ी एक और भी चीज फेमस है. जिसका नाम भद्रलोक दबी जुबान से लेता है. कोने में, यार दोस्तों की महफिल में, ये नाम है सोनागाछी.
दबी जुबान से इसलिए क्योंकि सोनागाछी रेडलाइट एरिया है. लाल रंग में बहुत उष्मा होती है, हमारे सामान्य जीवन में यह खतरे का संकेत होता है, हमें रुकने और सुस्ताने का इशारा करता है. लेकिन इसके आकर्षण का संवरण उतना ही मुश्किल है. सोनागाछी में एशिया का सबसे बड़ा देह व्यापार का केंद्र है. एक कच्चे अनुमान के अनुसार लगभग 10000 से ज्यादा सेक्स वर्कर यहां काम करती हैं. हर उम्र…हर क्षेत्र और धर्म की लड़कियां यहां उस धंधे से जुड़ी हैं, जिसकी चर्चा करते हुए हमारा समाज मुंह बिचकाता है, अच्छा नहीं कहता है. लेकिन फिर भी इस इलाके की मौजूदगी को लेकर सरकारों और शासन में एक तरह की स्वीकारोक्ति है. इन्हें यहां से कोई हटा नहीं सकता.
इसलिए ये बस्ती सालों से मौजूद है. उत्तरी कोलकाता के शोभाबाजार के नजदीक स्थित चितरंजन एवेन्यू में मौजूद इलाके को लोग कई सौ सालों से सोनागाछी के नाम से जानते आए हैं.
सोनागाछी यानी सोने का पेड़
जैसा कि नाम ही बताता है. सोनागाछी यानी सोने का पेड़. आखिर इस इलाके का नाम सोनागाछी कैसे पड़ा? तो क्या इस इलाके में सोने के पेड़ जैसा कुछ है? हम तो यही जानते हैं कि सोना निर्जीव वस्तु है. कीमती धातु है और इसका कोई पेड़ नहीं होता तो फिर शोभाबाजार के पास सोने का गाछ कहां से आया? दरअसल किवंदतियां हैं कि एशिया के सबसे बड़े रेडलाइट का नाम एक मुस्लिम वली (संत) के नाम पर पड़ा है.
सोनागाछी का सोने से क्या अर्थ है?
चलिए आपको फ्लैशबैक में ले चलते हैं. 300 साल पहले का समय. तब कलकत्ता नया-नया बसा था. हुगली नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित ये क्षेत्र व्यापार का फलता-फूलता केंद्र था. इतिहासकार पीटी नायर की किताब ‘A history of Calcutta’s streets’ के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस सोनागाछी की कहानी बताते हुए लिखता है कि इस इलाके में सनाउल्लाह नाम का एक खूंखार डकैत अपनी मां के साथ रहा करता था.
कुछ दिन बाद उस डकैत की मौत हो गई. एक दिन सनाउल्लाह की रोती हुई मां ने अपनी झोपड़ी से एक आवाज सुनी. झोपड़ी से आवाज आ रही थी, “मां तुम मत रो…मैं एक गाजी बन गया हूं. इस तरह निकला सनाउल्लाह से सोना गाजी का लेजेंड.
लेजेंड यानी कि किंवदंती, माने…इतिहास की बेतरतीब घटनाओं के आधार पर लोकजीवन में प्रचलित कथा कहानियां. जल्द ही कथा आस-पास फैलने लगी. इस झोपड़ी में लोग पहुंचने लगे और इबादत करने लगे. यहां आकर कथित रूप से लोग बीमारियों से चंगे होने लगे. कहते हैं लोगों को यहां रुहानी एहसास होता था. इस तरह से कालांतर में किंवदंतियों में डकैत सनाउल्लाह को कथित रूप से संतत्व प्राप्त हुआ.
इतिहासकार नायर कहते हैं कि सनाउल्लाह की मां ने अपने बेटे की याद में यहां एक सुंदर मस्जिद बनवा दी. इसे सोना गाजी के मस्जिद के नाम से जाना जाने लगा. कुछ दिन के बाद सनाउल्लाह की मां की मौत हो गई. इसके बाद इस मस्जिद की देखभाल करने वाला कोई नहीं रहा और धीर-धीरे लंबे कालखंड के बाद ये मस्जिद पूरी तरह से गायब हो गई. इस मस्जिद की वजह से पड़ोस के इलाके का नाम मस्जिद बाड़ी पड़ा. जबकि सनाउल्लाह गाजी बदलकर सोना गाजी हुआ और फिर बदलते-बदलते सोनागाछी हो गया.
सोनागाछी में कैसे पनपा देह व्यापार
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार सोनागाछी ओल्ड पिलग्रिम रोड पर है जिसे अब रबींद्र सारणी के नाम से जाना जाता है. ये इलाका बड़े बाजारों का केंद्र रहा है. अंग्रेजों के यहां आने से पहले भी यहां व्यावसायिक गतिविधियां होती थीं, व्यापारी पानी के जहाज से आते थे. इनमें पुर्तगाल और अर्मेनिया के तिजारती प्रमुख थे. यहां मजदूर काम करते थे और लोगों की भीड़ जमा होती थी.
पत्रकार मलिक कहते हैं कोई भी जगह बड़ी संख्या में व्यापारी/सैलानी आते हैं, जहां रुपया पैसा, माल असबाब पैदा होता है, जो व्यवसाय का बड़ा केंद्र है वहां रेड लाइट एरिया का पनपना बहुत सहज है.
कभी सोनागाछी के देह व्यापार को नामी बंगाली परिवार चलाते थे. आज इन जर्जर कोठों को किराए पर दिया जाता है. यहां सनाउल्लाह की दरगाह आज भी है. ये कई बार टूटी और कई बार इसकी मरम्मत की गई. दुर्भाग्यवश इस दरगाह पर सनाउल्लाह की मौत की तारीख नहीं लिखी हुई है.
इस स्लम में 18 साल से कम उम्र की करीब 10 हजार लड़कियां सेक्स व्यापार में शामिल हैं। फोटोग्राफर सौविद दत्ता यहां गए और उन्होंने वहां की कुछ बेहद चुनिंदा दृश्यों को अपने कैमरे में कैद किया .
यूं तो वेश्यालयों और वेश्याओं पर कई तरह की फिल्में बन चुकी हैं लेकिन आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि कोलकाता के इस रेडलाइट एरिया को विषय बनाकर एक फिल्म भी बनी है। Born Into Brothels नाम की इस फिल्म को ऑस्कर सम्मान भी मिल चुका है।
इसे बदनसीबी कहना गलत होगा, क्योंकि ये उससे कहीं आगे है। जिस उम्र में मां अपने बच्चों को दुनिया की रीति-रिवाज, लाज-शरम सिखाती हैं. वहीं सोनागाछी एरिया में यहां कि बच्चियां खुद को बेचना सीखती हैं.
17 साल की उम्र में ये लड़कियां मर्दों के साथ सोना सीख जाती हैं। उन्हें खुश करना सीख जाती हैं, जिसके बदले उन्हें रुपए मिलते हैं। इन रूपयों के बदले यहां की औरतें तश्तरी का खाना बनकर मर्दों की टेबल पर बिछ जाती हैं।
इस स्लम में किसी बाहरी व्यक्ति का आना मना है। यहां तक की पत्रकारों और फोटोग्राफरों को भी ये लोग भीतर नहीं आने देते।
वहां के लोगों के अनुसार, ये सब गरीबी, भ्रष्टाचार और अनैतिकता का परिणाम है। यहां की ज्यादातर बच्चियां स्कूल छोड़कर आई हैं. मजबूरी जीवन यापन करने की पारिवारिक आवश्यकता के चलते देह बेचने को मजबूर हो जाती हैं
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने शनिवार को बंगाल सरकार के मुख्य सचिव से एशिया के सबसे बड़े रेडलाइट एरिया सोनागाछी में देह व्यापार रोकने के लिए तैयार की गई नीतियों पर रिपोर्ट मांगी है।
एनएचआरसी ने महिला एवं बाल विकास विभाग, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रमुख सचिव और राज्य सरकार के मुख्य सचिव को भारतीय विज्ञान संस्थान के साथ मिलकर सोनागाछी के पीड़ितों की सामाजिक, कानूनी स्थिति का सर्वेक्षण करने का भी निर्देश दिया है और स्वास्थ्य की दृष्टि से क्षेत्र में देह व्यापार के निषेध के साथ उनका पुनर्वास करने को कहा है।
वहीं बंगाल सरकार के महिला व बाल विकास एवं सामाजिक कल्याण विभाग के सचिव ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि बंगाल सरकार ने महिला एवं बाल विकास विभाग के माध्यम से मानव तस्करी के मुद्दे से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं।
त्रिपाठी ने इसके जवाब में कहा कि अगर राज्य सरकार ने गंभीर कदम उठाए होते तो सोनागाछी सबसे बड़े रेडलाइट एरिया के रूप में बदनाम नहीं होता। “