VS CHAUHAN KI REPORT
काला पानी की सजा बीते जमाने की एक ऐसी सजा थी, जिसके नाम से कैदी कांपने लगते थे। दरअसल, यह एक जेल थी, जिसे सेल्यूलर जेल के नाम से जाना जाता था। आज भी लोग इसे इसी नाम से जानते हैं। आपको बता दें कि यह जेल अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है।जेल को 1969 में एक राष्ट्रीय स्मारक में तब्दील कर दिया गया. यह जेल अब भारतीयों के लिए ‘स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान का प्रतीक’ है और पर्यटक यहां जाते हैं.
इस जेल का अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद रखने के लिए इसका निर्माण कराया गया था, जो कि यह जेल भारत की भूमि से हजारों किलोमीटर दूर स्थित थी।
जेल में न जाने कितने लोगों को फांसी की सजा दी गई और स्वतंत्रता सेनानी को कैद रखा गया. काला पानी का भाव सांस्कृतिक शब्द काल से बना माना जाता है जिसका अर्थ होता है समय या मृत्यु। यानी काला पानी शब्द का अर्थ मृत्यु के स्थान से है, जहां से कोई वापस नहीं आता।क़ैदियों से नारियल का तेल निकालने जैसे काम करवाए जाते थे और उन्हें बाथरूम जाने के लिए भी इजाज़त लेनी होती थी.
हालांकि, अंग्रजों ने इसे सेल्यूलर नाम दिया था, जिसके पीछे एक हैरान करने वाली वजह है। सेल्यूलर जेल अंग्रेजों द्वारा भारत के स्वतंत्रता सेनानियों पर किए गए अत्याचारों की मूक गवाह है.जेल में अब भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पड़ावों को समर्पित कई गलियारे देखे जा सकते हैं.
इस जेल की नींव 1897 ईस्वी में रखी गई थी और 1906 में यह बनकर तैयार हो गई थी। इस जेल में कुल 698 कोठरियां बनी थीं और प्रत्येक कोठरी 15×8 फीट की थी। इन कोठरियों में तीन मीटर की ऊंचाई पर रोशनदान बनाए गए थे ताकि कोई भी कैदी दूसरे कैदी से बात न कर सके।
जेल गहरे समुद्र से घिरी हुई है, जिसके चारों ओर कई किलोमीटर तक सिर्फ और सिर्फ समुद्र का पानी ही दिखता है। इसे पार कर पाना किसी के लिए भी आसान नहीं था।
इस जेल की सबसे बड़ी खूबी ये थी कि इसकी चहारदीवारी एकदम छोटा बनाया गया था, जिसे कोई भी आसानी से पार कर सकता था, लेकिन इसके बाद जेल से बाहर निकलकर भाग जाना लगभग नामुमकिन था, क्योंकि ऐसा कोशिश करने पर कैदी समुद्र के पानी में ही डूबकर मर जाते।
जेल का नाम सेल्यूलर पड़ने के पीछे एक वजह है। दरअसल, यहां हर कैदी के लिए एक अलग सेल होती थी और हर कैदी को अलग-अलग ही रखा जाता था, ताकि वो एक दूसरे से बात न कर सकें। ऐसे में कैदी बिल्कुल अकेले पड़ जाते थे और वो अकेलापन उनके लिए सबसे भयानक होता था।
प्रतीकात्मक चित्र
कहते हैं कि इस जेल में न जाने कितने ही भारतीयों को फांसी की सजा दी गई थी। इसके अलावा कई तो दूसरी वजहों से भी मर गए थे, लेकिन इसका रिकॉर्ड कहीं मौजूद नहीं है। इसी वजह से इस जेल को भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय कहा जाता है।ज़ंजीरों का इस्तेमाल बहुत आम बात थी.
प्रतीकात्मक चित्र
देश की आजादी के समय स्वतंत्र संग्राम मेंकई ऐसे आजादी के दीवाने थे जिन्होंने काला पानी की सजा काटी. जिन के किस्से देश के कोने कोने में सुनने को मिल जाएंगे. इनम से एक श्यामाचरण भर्तुआर ने 22 वर्ष जेल में बिता दिए तो प्रियव्रत नारायण सिंह ने दरोगा को बंदी बनाकर थाने पर तिरंगा फहरा दिया। बिहार का पहला नमक कानून यहीं तोड़ा गया।
उन्होंने अपने जीवन के 22 वर्ष जेल में बिता दिया। जिसमें 3 साल 1933 से लेकर 1936 तक काला पानी की सजा काटी। बंगाल के गवर्नर की हत्या के लिए चर्चित गया षड्यंत्र कांड में सजायाफ्ता हुए। काला पानी की सजा काटते हुए इन्होंने ‘अंडमान के बंदियों के स्वर’ नामक पुस्तक लिख डाली।
गोपालगंज। जिले को अपनी कर्मभूमि बनाकर सामाजिक कार्यों में अग्रणीय भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय गौरीशंकर पांडेय ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान काला पानी की सजा काटी थी। अंग्रेजों ने इन्हें काला पानी की सजा देते हुए अंडमान निकोबार जेल में डाल दिया था।
सेल्युलर जेल के इसी कमरे में वीर सावरकर को क़ैद रखा गया था. डॉ. दीवान सिंह, योगेंद्र शुक्ल, भाई परमानंद, सोहन सिंह, वामन राव जोशी और नंद गोपाल जैसे लोग भी इसी जेल में क़ैद रहे थे.
आठ साल कालापानी जेल की सजा काटने वाले शहीद भीमा नायक की प्रतिमा अब स्मारक में कैद है। 10 साल तक अंग्रेजों को भयभीत रखने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद भीमा नायक की स्मृति में 2017 में धाबाबावड़ी में प्रेरणा केंद्र स्थापित किया। लेकिन विद्यार्थियों के भ्रमण कार्यक्रम या सरकारी आयोजन होने पर ही प्रेरणा केंद्र का ताला खुलता है। वर्ना यहां ताला ही लगा रहता है।