उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यह भी साबित करने की कोशिश कि उनके भीतर प्रदेश और पार्टी के लिए कुछ करने का माद्दा है।

VS CHAUHAN KI REPORT

उत्तराखंड प्रदेश की बीजेपी सरकार में पहले त्रिवेंद्र और फिर तीरथ की विदाई के बाद भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती नए चेहरे की रही। चूंकि अगला चुनाव भी सिर पर है और दो सीएम बदलने के बाद पार्टी की फजीहत भी हो रही थी। इस बीच पार्टी ने युवा चेहरे को तवज्जो दी और 30 दिन के भीतर पुष्कर सिंह धामी ने यह भी साबित करने की कोशिश कि उनके भीतर प्रदेश और पार्टी के लिए कुछ करने का माद्दा है।

भाजपा का युवा चेहरे के दम पर अगले विधानसभा चुनाव में उतरने का फैसला 30 दिन में काफी सही राह पर नजर आ रहा है। जब पुष्कर सिंह धामी की ताजपोशी हुई तो यह माना जा रहा था कि वह केवल चुनाव से पहले का वक्त पूरा करेंगे लेकिन 30 दिन में उन्होंने जो किया है, वह वाकई अलग है। उन्होंने एक युवा मुख्यमंत्री के तौर पर खुद को साबित करने के साथ ही युवाओं के बीच अपनी पकड़ बनाई है। उन्होंने साबित कर दिया है कि वह भीड़ का हिस्सा नहीं हैं। पार्टी ने भी अब युवा चेहरा, 60 प्लस का नारा देकर आगामी विस चुनाव के लिए एक उम्मीद खड़ी कर दी है।

पार्टी इन दिनों चुनावी मोड में है। इस बीच जनता की समस्याओं को लेकर सीएम धामी पूरे सतर्क हैं। सरकार को जनता के करीब लाने के लिए सभी जिला व तहसील मुख्यालयों में अधिकारियों को रोजाना दो घंटे जनता के लिए देने के आदेश उनकी सोच को सामने लाता है। युवाओं से जुड़े मुद्दे हों या भर्तियां, सीएम धामी सभी पहलुओं पर आगे बढ़ते नजर आ रहे हैं। सत्ता की कमान हाथों में आने के वक्त 45 साल के युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व को लेकर सबसे बड़ा सवाल यही था कि क्या वे नौकरशाही की लगाम कस पाएंगे? एक महीने के कार्यकाल में जिस अंदाज में धामी ने अफसरशाही को ताश की पत्तों की तरह फेंटा है, उसने साफ कर दिया है कि कुछ हद तक वह अफसरशाही पर लगाम कसते दिखाई दे रहे हैं।

जब बागडोर पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के हाथों में आई थी। तब उनसे भी अफसरशाही को कसने की उम्मीद की जा रही थी। शुरुआती दिनों में तीरथ ने इरादे भी जताए। लेकिन कुछ दिनों बाद उनका यह इरादा बुलबुले की तरह गायब हो गया। 100 दिन में तीरथ एक जिलाधिकारी नहीं बदल पाए। बागडोर युवा मुख्यमंत्री के हाथों में आई तो सबकी जुबान पर एक ही प्रश्न था कि क्या धामी खांटी नौकरशाही के मोहपाश से बाहर निकल पाएंगे? जानकारों का मानना है कि सत्ता की कुर्सी पर बेशक राजनेता बैठते हों, लेकिन पर्दे के पीछे से सत्ता के फैसलों को खुर्राट नौकरशाह ही प्रभावित करते हैं। यह तो धामी का कार्यकाल ही बताएगा कि वे नौकरशाही के मोहपाश से किस हद तक बाहर रह पाएंगे।

 

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