मदर्स डे पर कहानी:गुलेश का सपना है कि वह अपनी ही तरह की लाचार महिलाओं को ड्राइविंग करना सिखाए, ताकि वह आत्मनिर्भर बनें।वह अपनी मां पर गर्व महसूस करता है।

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कड़कड़ मॉडल में रहने वालीं कैब ड्राइवर गुलेश चौहान पर फिट बैठती हैं। बेटे का लालन पालन करने को उन्होंने सब्जी बेची, पकौड़े तले व घरों में काम किया। अब हर दिन सुबह 6:30 बजे से शाम 6:30 बजे तक कैब चलाती हैं। जयपुर में जन्मीं गुलेश (42) चौहान एक राजपूत परिवार में पली बढ़ीं। नौवीं कक्षा तक ही पढ़ाई की। 17 साल की उम्र में हरियाणा में उनकी शादी हो गई। गुलेश की जिंदगी ठीकठाक चल रही थी कि 2003 में उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। उनके पति की हादसे में मौत हो गई। उस वक्त उनका दो साल का बेटा था।उसकी और परिवार की ज़िम्मेदारी अचानक उनके कंधों पर आ गई। बस यहीं से शुरू हुआ एक मां का संघर्षों से भरा सफर।

गुलेश का कहना है कि ‘मैंने कभी घर से बाहर कदम नहीं रखा था। हमेशा घूंघट में रहती थी। परिवार ने दूसरी शादी के लिए कहा, लेकिन मैंने मना कर दिया। मैं सिर्फ अपने बच्चे की सही तरीके से देखभाल करना चाहती थी।’ अपने बेटे को पालने के लिए मैंने लोगों के घरों में खाना बनाना, सब्जियां बेचना, सड़क किनारे स्टॉल पर पकौड़े बनाना तक शुरू कर दिया, लेकिन इससे सही से घर नहीं चल पा रहा था। बच्चा बड़ा हो रहा था, तो उसकी पढ़ाई भी करानी थी।

मां के शब्दों ने बढ़ाई हिम्मत

गुलेश ने बताया कि मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मेरी मां नर्स थीं और कैंसर से पीड़ित थीं। पिता की मौत तो मेरी शादी के 6 महीने पहले ही हो गई थी। मां ने मुझसे कहा कि अगर तुझे अपने बेटे को पालना है तो यह भूल जा कि तू एक औरत है। कौन क्या कहेगा। इसकी परवाह किए बगैर अपने काम करो। अगर तुम सही हो तो एक दिन दुनिया तुम्हें मानेगी। उस वक्त बेटे ने भी हिम्मत दी। 7 साल की उम्र में उसने कहा कि ‘मम्मी आप जाओ कैब चलाओ।’

2007 में गुलेश को पता चला कि दिल्ली सरकार एक योजना के तहत डीटीसी की बसों में महिला ड्राइवरों को रख रही है। एक रिश्तेदार के पास ऑल्टो कार थी, जिससे उन्होंने कार चलानी सीखी। इसके बाद भारी वाहन चलाने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए जब वे आरटीओ ऑफिस गईं तो उनका मजाक उड़ाया गया। वह कहती हैं, ‘जब उन्हें पता चला कि मैं भारी वाहन चलाने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने गई तो मेरा मज़ाक बनाना शुरू कर दिया। उन्होंने मेरे इरादे पर सवाल उठाया और मुझे कई अन्य लोगों के सामने शर्मिंदा किया,लेकिन वे मुझे हतोत्साहित नहीं कर सके।’ नया काम शुरू करने ही वालीं थीं कि साल 2007 में स्कूटी चलाने के दौरान उनका एक्सिडेंट हो गया। इसके बाद पांच साल बेड पर ही बिताने पड़े। पड़ोसी खाना आदि देकर मदद कर जाते थे।

गुलेश ने बताया कि बेटे का चेहरा देखती थी, तो जल्दी खड़े होने की हिम्मत बढ़ती थी। ठीक होकर उन्होंने कैब चलानी शुरू की। इससे उनके घर की स्थिति सुधरी। लेकिन फिर कोविड आ गया। उस दौरान काम ठप हो गया। सरकार की ओर से जो खाना आता, उसे ही खाकर गुज़ारा होता। दिन फिर बहुरे। आज वह 7 साल से हर दिन सुबह 6:30 बजे से शाम 6:30 बजे तक कैब चलाती हैं। लोग भी उन्हें काफी पसंद करते हैं। एनसीआर में कैब चलाती हैं। कभी डर नहीं लगता। ऐप बेस्ड कंपनी ने उन्हें इंडिया की टॉप रेटेड फीमेल ड्राइवर की पदवी दी है। बेटा भी अब बीकॉम फाइनल ईयर में पढ़ रहा है। वह अपनी मां पर गर्व महसूस करता है।

गुलेश का सपना है कि वह अपनी ही तरह की लाचार महिलाओं को ड्राइविंग करना सिखाए, ताकि वह आत्मनिर्भर बनें। उन्होंने इसके लिए सीएम योगी से भी कई बार मदद की गुहार लगाई है।

 

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