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दिल्ली देहरादून एक्सप्रेसवे के एलिवेटेड हिस्से पर अब ऐसी विशेष लाइटें लगाई जाएंगी. जो इंसानों को उजाला देंगी और उल्लुओं के लिए अंधेरा बनाए रखेंगी यह पहल वन्यजीवों की सुरक्षा और सड़क दुर्घटनाओं की रोकथाम के उद्देश्य से की गई है. केंद्र सरकार की अनुमति के बाद भारतीय वन्यजीव संस्थान WII ने 800 विशेष लेंस आधारित वार्म लाइटें तैयार करवाई हैं, जो पहली बार किसी राष्ट्रीय परियोजना में इस्तेमाल की जा रही हैं.
दरअसल, गणेशपुर उत्तर प्रदेश से आशारोड़ी चेक पोस्ट उत्तराखंड तक बनने वाले 20 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेसवे में 12 किलोमीटर का एलिवेटेड रोड राजाजी नेशनल पार्क क्षेत्र से होकर गुजरता है. इस मार्ग को इस तरह डिजाइन किया गया है कि इसके नीचे से वन्यजीव सुरक्षित रूप से आवागमन कर सकें. हालांकि, रात्रि में दृश्यता की कमी के कारण यहां दुर्घटनाओं की आशंका बनी रहती थी. एनएचएआई ने हाल ही में एलिवेटेड रोड का सेफ्टी ऑडिट कराया, जिसमें रात्रिकालीन रोशनी की जरूरत बताई गई.
हालांकि, एनजीटी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पहले पारंपरिक लाइटें लगाने की अनुमति देने से इंकार कर दिया था, क्योंकि इससे जंगल में अनावश्यक रोशनी फैलेगी और रात्रिचर वन्यजीवों के लिए खतरा उत्पन्न होगा. विशेषकर उल्लुओं के लिए यह स्थिति घातक हो सकती थी. लाइटों के आसपास कीड़े-मकोड़े एकत्र होंगे और उन्हें पकड़ने के प्रयास में उल्लू वाहन की चपेट में आ सकते हैं.
पीले रंग का मध्यम प्रकाश देंगी लाइटें
इस चुनौती का समाधान खोजते हुए भारतीय वन्यजीव संस्थान ने विशेष प्रकार की वार्म लाइटें विकसित करवाईं, जो पीले रंग का मध्यम प्रकाश देंगी. ये लाइटें इंसानों के लिए पर्याप्त उजाला देंगी, जबकि उल्लुओं को यह प्रकाश प्राकृतिक अंधेरे की तरह प्रतीत होगा. यह तकनीक न सिर्फ भारत में पहली बार इस्तेमाल हो रही है, बल्कि वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक बड़ा नवाचार भी मानी जा रही है.
उल्लुओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ही यह खास पहल
राजाजी टाइगर रिजर्व क्षेत्र में उल्लुओं की कई प्रजातियाँ पाई जाती हैं,
जिनमें इंडियन स्कॉप्स उल्लू, ओरिएंटल स्कॉप्स उल्लू, ब्राउन फिश उल्लू, स्पॉटेड उल्लू और जंगली उल्लू प्रमुख हैं. इनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ही यह खास पहल की गई है.
लिवेटेड रोड के पूरे हिस्से में लगाई जाएंगी नई लाइटें
नई लाइटें एलिवेटेड रोड के पूरे हिस्से में लगाई जाएंगी और इनके संचालन में भी विशेष सावधानियां बरती जाएंगी. यह परियोजना एक उदाहरण है कि किस तरह विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन स्थापित किया जा सकता है. वन्यजीवों की आवाजाही और मानव यात्रा दोनों को सुरक्षित बनाते हुए यह तकनीकी नवाचार देश के अन्य हिस्सों के लिए भी प्रेरणा बन सकता है.