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सिरमौर जिला मुख्यालय नाहन से करीब 22 किलोमीटर दूरी पर त्रिलोकपुर में महामाया बालासुंदरी का भव्य मंदिर है। त्रिलोकपुर का नाम 3 शक्ति मंदिरों से निकला है, जिनमें मां ललिता देवी, बाला सुंदरी और त्रिपुर भैरवी शामिल हैं। माता बालासुंदरी न केवल सिरमौर जिला बल्कि साथ लगते हरियाणा, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड आदि विभिन्न क्षेत्रों की भी अधिष्ठात्री देवी है। यूं तो प्रतिदिन त्रिलोकपुर में माता के दर्शनों के लिए भक्तों का तांता लगता है, लेकिन वर्ष में नवरात्रों के दौरान यहां होने वाले नवरात्र मेलों में लाखों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं। मंगलवार से यहां चैत्र नवरात्र मेले भी शुरू हो रहे हैं, जिसको लेकर त्रिलोकपुर मंदिर न्यास द्वारा श्रद्धालुओं की सुविधा व सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।
दरअसल लोक गाथा के अनुसार महामाया बालासुंदरी उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर के देवबंद स्थान से नमक की बोरी में त्रिलोकपुर आई थीं। लाला रामदास त्रिलोकपुर स्थान में नमक का व्यापार करते थे और उन्हीं की नमक की बोरी में माता 1573 ई. में त्रिलोकपुर पधारी थीं। कहा जाता है कि लाला रामदास ने देवबंद से जो नमक लाया था, उसे अपनी दुकान में बेचने के बाद भी बोरी से नमक कम नहीं हुआ। इस पर लाला राम दास अचंभित हुए। लाला राम दास त्रिलोकपुर में नित्य प्रति उस पीपल को जल अर्पित करके पूजा करते थे।
लाला रामदास को स्वप्न में दिए थे दर्शन
बताते हैं कि एक रात्रि महामाया बालासुंदरी लाला रामदास के सपने में आईं और उन्हें दर्शन देते हुए कहा कि ‘मैं तुम्हारी भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हूं। मैं इस पीपल के नीचे पिंडी रूप में स्थापित हो गई हूं। तुम इस स्थल पर मेरा मंदिर बनवाओ। लाला जी को मंदिर निर्माण की चिंता सताने लगी। उन्होंने इतने बड़े भवन के निर्माण के लिए धनाभाव और सुविधाओं की कमी को महसूस करते हुए माता की आराधना की।
राजा प्रदीप प्रकाश ने बनवाया था त्रिलोकपुर में मंदिर
इसी बीच माता बालासुंदरी ने अपने भक्त की पुकार सुनते हुए राजा प्रदीप प्रकाश को स्वप्न में दर्शन देकर भवन निर्माण का आदेश दिया। राजा प्रदीप प्रकाश ने जयपुर से कारीगरों को बुलाकर तुरंत ही मंदिर निर्माण का कार्य आरंभ करवा दिया। यह भवन निर्माण सन् 1630 में पूरा हो गया।