जोशीमठ हर साल 6.62 सेंटीमीटर यानी करीब 2.60 इंच धंस रहा है।

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा जारी उपग्रह तस्वीरों में जोशीमठ नगर के केवल 12 दिनों में 5.4 सेंटीमीटर तक धंसने की बात सामने आने से चिंता बढ़ गई है. इसरो के राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र द्वारा किए गए प्रारंभिक अध्ययन में कहा गया है कि अप्रैल से नवंबर 2022 के बीच जोशीमठ में भूधंसाव की दर धीमी रही जब वह 8.9 सेंटीमीटर नीचे धंसा. हालांकि, 27 दिसंबर 2022 से आठ जनवरी 2023 के बीच जोशीमठ में भूधंसाव की दर बढ़ गयी और केवल 12 दिनों में यह 5.4 सेंटीमीटर धंस गया.

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (आईआईआरएस) ने करीब दो साल की सेटेलाइट तस्वीरों का अध्ययन करने के बाद  रिपोर्ट सरकार को दी है। कि जोशीमठ हर साल 6.62 सेंटीमीटर यानी करीब 2.60 इंच धंस रहा है। आईआईआरएस देहरादून के वैज्ञानिकों ने जुलाई 2020 से मार्च 2022 के बीच जोशीमठ और आसपास के करीब छह किलोमीटर क्षेत्र की सेटेलाइट तस्वीरों का अध्ययन किया।

अध्ययन में जोशीमठ व आसपास के क्षेत्र में आ रहे भूगर्भीय बदलाव को देखा गया। हाल ही में आईआईआरएस ने इसकी रिपोर्ट जारी की है। इसमें दावा किया गया कि जोशीमठ हर साल 6.62 सेमी. की दर से नीचे की ओर धंस रहा है। इसकी सेटेलाइट तस्वीर भी जारी की गई है।

जोशीमठ ही नहीं, पूरी घाटी में हो रहा भू-धंसाव 
आईआईआरएस ने जो वीडियो जारी किया है, उसमें यह भी दर्शाया गया कि भू-धंसाव केवल जोशीमठ शहर में ही नहीं हो रहा है। पूरी घाटी इसकी चपेट में है। आने वाले समय में इसके खतरनाक नतीजे देखने को मिल सकते हैं।

रॉक और स्लोप एक ही दिशा में
सरकार ने जोशीमठ के अध्ययन की जिम्मेदारी तमाम वैज्ञानिक संस्थाओं को सौंपी है। सचिव आपदा प्रबंधन डॉ. रंजीत सिन्हा ने बताया कि अब तक की जांच पड़ताल में यह तथ्य सामने आया है कि जोशीमठ के भीतर की चट्टानें और ढलान दोनों एक ही दिशा में बढ़ रहे हैं। आमतौर पर चट्टानें समतल होती हैं, लेकिन यहां लगातार धंस रही है।

डॉ. रंजीत सिन्हा, सचिव, आपदा प्रबंधन के मुताबिक

हमारी रिस्क असेसमेंट कमेटी में आईआईआरएस के वैज्ञानिक भी शामिल हैं। उन्होंने अध्ययन की रिपोर्ट सौंपी है। यह सैटेलाइट आधारित है, लेकिन भीतर क्या हो रहा है, जब तक जियो फिजिकल और जियो टेक्निकल स्टडी नहीं होगी, तब तक कारण स्पष्ट नहीं हो पाएंगे।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा शुक्रवार को जारी उपग्रह तस्वीरों में जोशीमठ में पिछले 12 दिनों में भूधंसाव की गति​ बढ़ने की बात सामने आने से चिंता बढ़ गई है जबकि ‘असुरक्षित’ घोषित दो होटलों को ढहाए जाने और प्रभावितों लोगों के सुरक्षित स्थानों पर जाने का सिलसिला जारी रहा. राज्य मंत्रिमंडल ने प्रभावित लोगों को राहत पहुंचाने के लिए कई निर्णय लिए जिनमें उनके मकानों के किराए की धनराशि बढ़ाकर पांच हजार रुपये प्रतिमाह करना, उनके बिजली-पानी के बिल छह माह की अवधि के लिए माफ करना तथा बैंको से उनके ऋणों की वसूली एक साल तक स्थगित रखना शामिल है.

प्रदेश के मुख्य सचिव सुखबीर सिंह संधु ने कहा कि जोशीमठ में राज्य सरकार के संसाधनों से अल्पकालिक एवं मध्यकालिक कार्य जारी रहेंगे जिन पर होने वाले व्यय का समायोजन केंद्र से राहत पैकेज मिलने पर किए जाने को भी मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी.संधु ने कहा कि अभी तक की रिपोर्ट के अनुसार, जोशीमठ के नीचे कठोर चट्टान नहीं है, इसलिए वहां भूधंसाव हो रहा है उन्होंने कहा कि यही कारण है कि जिन शहरों के नीचे कठोर चट्टानें हैं, वहां जमीन धंसने की समस्या नहीं होती हैं. संधु ने कहा कि 1976 में भी जोशीमठ में थोड़ी जमीन धंसने की बात सामने आयी थी . उन्होंने कहा कि जोशीमठ में पानी निकलने को लेकर विभिन्न संस्थान जांच में लगे हैं. संधु ने कहा कि विशेषज्ञ जोशीमठ में सभी पहलुओं का अध्ययन कर रहे हैं और उनकी रिपोर्ट आने के बाद यह मामला राज्य मंत्रिमंडल के सामने रखा जाएगा और उसके आधार पर ही कोई निर्णय किया जाएगा.

वहीं शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि इसरो ने अपनी रिपोर्ट पर कोई आधिकारिक बयान नहीं जारी किया था. मैंने इसरो चीफ से जोशीमठ पर जारी की गई रिपोर्ट पर जब आधिकारिक बयान मांगा तो आज सारी रिपोर्ट हटा ली गईं.

ISRO के हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC) ने यह रिपोर्ट जारी की है. सैटेलाइट तस्वीरों के अनुसार पूरा जोशीमठ शहर धंस जाएगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कुछ दिनों से जोशीमठ में जमीन धंसने और दरारों की जानकारी मिल रही है.

इसरो का कहना है कि अप्रैल से नवंबर 2022 तक जमीन धंसने का मामला धीमा था. इन सात महीनों में जोशीमठ -8.9 सेंटीमीटर धंसा है. लेकिन 27 दिसंबर 2022 से लेकर 8 जनवरी 2023 तक के 12 दिनों में जमीन धंसने की तीव्रता -5.4 सेंटीमीटर हो गई. यानी यह काफी तेज गति से बढ़ रहा है.

जोशीमठ का मध्य हिस्सा यानी सेंट्रल इलाका सबसे ज्यादा धंसाव से प्रभावित है. इस धंसाव का ऊपरी हिस्सा जोशीमठ-औली रोड पर मौजूद है. वैज्ञानिक भाषा में इसे धंसाव का क्राउन कहा जाता है. यानी औली रोड भी धंसने वाला है. बाकी जोशीमठ का निचला हिस्सा यानी बेस जो कि अलकनंदा नदी के ठीक ऊपर है, वह भी धंसेगा. हालांकि यह इसरो की प्राइमरी रिपोर्ट है. फिलहाल InSAR रिपोर्ट की स्टडी अभी जारी है. लैंडस्लाइड काइनेमेटिक्स की स्टडी की जा रही है.

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