VSCHAUHAN for NEWS EXPRESS INDIA
आध्यात्मिक और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण उत्तराखंड का प्राचीन शहर जोशीमठ जमीन धंसने की खबरों को लेकर पिछले कई दिनों से चर्चा में है। जिला आपदा प्रबंधन विभाग का कहना है कि यहां 500 से ज्यादा घरों में दरारें आ गई हैं। कई परिवार भय के कारण यहां से पलायन कर चुके हैं। शहर की कई सड़कें भी टूटने और उखड़ने लगी हैं। जमीन के नीचे से पानी का रिसाव हो रहा है, जिसके बाद यहां सभी निर्माण कार्य रोकने का आदेश दे दिया गया है। यहां तक कि सबसे लंबा रोपवे भी बंद कर दिया गया है। आखिर इस शहर के अस्तित्व पर ही संकट का खतरा क्यों मंडराने लगा है?
बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब, औली जैसी जगहों पर जाने का रास्ता इस महत्वपूर्ण शहर से ही जाता है, बल्कि इसे बद्रीनाथ का द्वार भी कहा जाता है। जोशीमठ से आने वाली तस्वीरें काफी डराने वाली हैं। आखिर क्या वजह बताई जा रही है? जमीन धंसने की इन घटनाओं की, यह स्थिति कैसे बनी?
जोशीमठ धंस रहा है, ये जियोलॉजिकल ट्रूथ है। ये फैक्ट है, जिसके बारे में ऐसा नहीं है कि लोग पहले से नहीं जानते थे। लोग इस बारे में जानते थे। जब भी हम जोशीमठ और इन इलाकों की रिपोर्टिंग करते थे तो अक्सर इस बारे में बातें भी होती थीं। उसकी वजह सिम्पली ये है कि जोशीमठ मोरेन पर बसा हुआ शहर है। कई सौ साल पहले जब यहां ग्लेशियर रहा होगा, उसके ऊपर जो रेत, मिट्टी और पत्थर होते हैं उस मलबे को हम मोरेन कहते हैं। ग्लेशियर पिघल कर पीछे हट गया और वो मलबे का जो पहाड़ है उसमें आने वाले दिनों में सभ्यता बसी। जैसा आप कह रहे थे कि औली विंटर स्पोर्ट्स का एक बहुत बड़ा गढ़ है। यहां पर टूरिस्ट आते हैं,वैली ऑफ फ्लावर्स देखने जाते हैं।
इसके अलावा हेमकुंड साहिब जो सिखों का पवित्र तीर्थ है और बद्रीनाथ के लिए यहां लोग आते हैं। ये नैचुरली एक एंट्री पॉइंट है, टूरिजम और ऐडवेंचर स्पोर्ट्स के लिए भी। उस लिहाज से यहां पर प्रेशर बढ़ता गया। फिर सरकार यहां पर बड़े-बड़े प्रोजेक्ट लेकर आई, जिसमें कम से कम दो बड़े प्रोजेक्ट यहां पर हैं। एक जेपी का प्रोजेक्ट है, एक एनटीपीसी का प्रोजेक्ट है। इसका जरूर मिलाजुलाकर इफेक्ट हुआ है।
यहां के भूगर्भशास्त्री कहते हैं। 1976 की जो रिपोर्ट है मिश्रा कमेटी की। पिछले साल दो कमेटियों ने अपनी ब्रीफ रिपोर्ट दी थी।एक रिपोर्ट जाने-माने जियोलॉजिस्ट डॉक्टर नवीन जुयाल की कमेटी की थी। दूसरी कमेटी खुद सरकार के डिजास्टर मैनेजमेंट के जानकारों की थी। दोनों रिपोर्ट को देखने से साफ पता चलता है कि उन्होंने यहां पर कंस्ट्रक्शन के खिलाफ अपनी राय दी है।
उत्तराखंड के जोशीमठ शहर में भूस्खलन के बाद बचाव अभियान जोरों पर है। जिला आपदा प्रबंधन विभाग ने बताया कि 561 इमारतों में दरारें देखने के बाद 38 परिवारों को दूसरे स्थानों पर भेज दिया गया है। प्रभावित लोगों को रैन बसेरों में भी भेजा जा रहा है।
आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने कहा कि किसी अज्ञात स्थान से पानी रिस रहा है जिससे डूबने का खतरा पैदा हो गया है। उन्होंने कहा कि भवन निर्माण में कड़े नियमों का पालन किये जाने की जरूरत है। गढ़वाल के मंडलायुक्त सुशील कुमार ने बताया कि स्थिति पर लगातार नजर रखी जा रही है। भूस्खलन की चपेट में आए होटलों में पर्यटकों के ठहरने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।