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सोमवार को समाजवादी पार्टी के संस्थापक और भारतीय राजनीति के दिग्गज 82 वर्ष की उम्र में मुलायम सिंह यादव का निधन हो गया। सुबह 8:15 पर अंतिम सांस ली. यह सूचना मुलायम सिंह यादव के पुत्र अखिलेश यादव ने बड़े दुखी हो कर दी. गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। लोग उनके शीघ्र स्वस्थ होने की दुआ कर रहे थे. लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था. अखिलेश यादव और मुलायम सिंह के बहू अपर्णा यादव को लखनऊ में मुलायम की तबीयत बिगड़ने की सूचना मिली थी, जिसके बाद वह 2 अक्टूबर को ही स्पेशल विमान से दिल्ली के रास्ते गुरुग्राम पहुंचे। अखिलेश से पहले शिवपाल यादव और रामगोपाल यादव दिल्ली में ही मौजूद थे। अखिलेश के साथ उनकी पत्नी डिंपल और बच्चे भी गुरुग्राम पहुंचे। शनिवार को ही अखिलेश दिल्ली से लखनऊ आए थे, खास बात है कि यह वही शहर है, जहां तीन महीने पहले उनकी दूसरी पत्नी साधना यादव ने अंतिम सांस ली थी। अब वरिष्ठ राजनेता की गिरती तबियत के तार पत्नी के निधन से भी जोड़े जा सकते हैं। क्योंकि अभी कुछ महीने पुरानी ही बात है, पत्नी की मृत्यु के बाद नेताजी बीमार रहने लगे थे. एक समय था जब मुलायम उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में दम भरते नजर आ रहे थे। आज भी सभी पार्टी के लोग उनका सम्मान करते थे चाहे व्यक्ति अपने राजनीतिक दल से हो या दूसरे राजनीतिक दल से हो. नेताजी अपने जवानी के दिनों में पहलवानी करते थे. बाद में राजनीति में कदम रखा और 29 वर्ष की उम्र में विधायक चुने गए थे. समाजवादी पार्टी के नाम से अपना राजनीतिक दल बनाया और उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री भी रहे.
22 नवंबर 1939 को इटावा जिले के सैफई में जन्मे मुलायम ने करीब 6 दशक तक सक्रिय राजनीति में हिस्सा लिया। वो कई बार यूपी विधानसभा और विधान परिषद के सदस्य रहे। इसके अलावा उन्होंने संसद के सदस्य के रूप में ग्यारहवीं, बारहवीं, तेरहवीं और पंद्रहवीं लोकसभा में हिस्सा भी लिया। मुलायम सिंह यादव 1967, 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993 और 1996 में कुल 8 बार विधानसभा के सदस्य बने। इसके अलावा वह 1982 से 1985 तक यूपी विधानसभा के सदस्य भी रहे।
बेटा राजनीति से था दूर, मां निभा रही थी बड़ी भूमिका
सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव, मुलायम की पहली पत्नी मालती यादव के बेटे हैं। उनके निधन के बाद वरिष्ठ नेता ने 2003 में यूपी के ओरैया जिले की साधना यादव से शादी की। साधना के बेटे प्रतीक राजनीति से दूर हैं और रियल एस्टेट डेवलपर के रूप में काम करते हैं। वहीं, प्रतीक की पत्नी अपर्णा अब सपा छोड़कर भाजपा में आ चुकी हैं। कहा जाता है कि साधना राजनीति में सक्रिय नजर नहीं आती थीं, लेकिन पर्दे के पीछे उनकी भूमिका अहम थी।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में सपा के आंतरिक सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि साल 2016 में यादव परिवार में तनाव चल रहा था, तो साधना बड़ी भूमिका में सामने आईं। दरअसल, उस दौरान अखिलेश ने अपने चाचा शिवपाल यादव को राज्य की कैबिनेट से बाहर कर दिया था। इस बात से मुलायम खासे नाराज हुए थे। तब अखिलेश प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। यही से यादव परिवार में खींचतान शुरू हो गई थी। परिवार में जारी झगड़े का डर साधना को लगा। उन्हें चिंता थी कि इसका असर यूपी विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा। उन्होंने कहा था, ‘मैं लंबे समय से पर्दे के पीछे रहकर मुलायम को कुछ सुझाव दिए हैं, धर्मेंद्र और अखिलेश को सांसदों के रूप में जिताया। ये सब काम किए हैं पर छुप-छुप कर किए हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, साधना ने कहा था कि अखिलेश को ‘गुमराह’ किया गया था। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि इस पूरे प्रकरण में उनके पति का अपमान नहीं होना चाहिए था। वह अपने पति को सीएम बनते देखना चाहती थीं, लेकिन मुलायम ने अपने बेटे को चुना. मुलायम सिंह यादव यूपी के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके थे और वे उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय नेताओं में से एक नेता थे.अपने सर्वस्पर्शी रिश्तों के कारण मुलायम सिंह को नेताजी की उपाधि भी दी जाती थी। मुलायम को उन नेताओं में जाना जाता था, जो यूपी और देश की राजनीति की नब्ज समझते थे और सभी दलों के लिए सम्मानित भी थे।