रेलवे ने खिलाड़ियों, युद्ध शहीदों की विधवा, बुजुर्गों और पत्रकारों की रियायत हटा दी, कोई बात नहीं, सांसदों को छूट जारी क्यों है?

VSCHAUHAN for NEWS EXPRESS INDIA

भारतीय रेल आपकी अपनी है। इसकी संपत्ति आपकी संपत्ति है। यह नारा अब बदल गया है। रेलवे ने बुजुर्गों को टिकट में दी जाने वाली रियायत अब हमेशा के लिए खत्म कर दी है।

कोविड दौर के पहले तक 58 साल से ऊपर की महिला को रेल टिकट में 50% और 60 साल से ऊपर के पुरुष को 40% की छूट थी। कोविड के दौरान यह सुविधा बंद कर दी गई और अब हमेशा के लिए बंद। इसी प्रकार पत्रकारों को मिलने वाली छूट भी  कोविड  के दौरान बंद कर दी गई थी पत्रकारों के लिए वह सुविधा अभी दोबारा शुरू नहीं हुई है.

इसी प्रकार कोविड-19  के दौरान युद्ध शहीदों की विधवा, किसान, कलाकार और खिलाड़ी डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ पुरस्कार प्राप्तकर्ता इन सभी को यात्रा के लिए रेलवे से मिलने वाली सुविधा रोक दी गई थी.

रेल मंत्रालय के मुताबिक, कोरोना से पहले रेलवे 53 कोटियों में ट्रेन टिकट पर छूट देता था. लेकिन रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि अभी केवल दिव्यांगजनों की 4 कोटियां और मरीजों-छात्रों की 11 कोटियों को ही रियायत मिल रही है.

लेकिन ये छूट खत्म क्यों की गई?

– रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने  16 मार्च को लोकसभा में बताया था कि रियायतें देने से रेलवे पर भार पड़ता है, इसलिए वरिष्ठ नागरिकों समेत बाकी यात्रियों को दी जाने वाली रियायत का दायरा बढ़ाना सही नहीं है. उन्होंने बताया कि कोरोना के कारण रेलवे के रेवेन्यू में काफी कमी आई है.

दिसंबर 2021 में रेल मंत्री वैष्णव ने जानकारी दी थी कि यात्री टिकटों की बिक्री से रेलवे को 2019-20 में 50,669 करोड़ रुपये का रेवेन्यू मिला था, जो 2020-21 में घटकर 15,248 करोड़ रुपये हो गया. 2021-22 में सितंबर तक रेलवे को 15,434 करोड़ रुपये का रेवेन्यू मिला था.

वहीं, इसी साल  फरवरी में उन्होंने संसद में जानकारी दी थी कि रेल टिकटों पर रियायत देने की वजह से रेलवे को 2018-19 में 1,995 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था. ये घाटा 2019-20 में बढ़कर 2,059 करोड़ रुपये हो गया. रियायतें बंद करने की वजह से रेलवे को 2020-21 में महज 38 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था.

लेकिन सांसदों को रेलवे की सुविधाएं अब तक जारी हैं। क्यों? ये सुविधाएं बंद क्यों नहीं की जा रहीं? इनका तो रेल मंत्री ने कोई हिसाब-किताब भी नहीं बताया!

हिसाब यहां देख लीजिए। मौजूदा सांसद को अपनी पत्नी या पति के साथ फर्स्ट एसी में मुफ्त यात्रा की सुविधा प्राप्त है। पूर्व सांसद को ऐसी ही सुविधा अपनी पत्नी या पति के साथ सेकंड एसी में और अकेले को फर्स्ट एसी में प्राप्त है।

मजाल की बात यह है कि यह सुविधा कोविड के दौर में भी बंद नहीं हुई। ये बात और है कि रेलवे को यह पैसा केंद्र सरकार चुकाती है। तो केंद्र सरकार के पास यह पैसा किसका है? हम-आप जैसे करदाताओं का ही तो है।

दैनिक भास्कर की खबर के मुताबिक RTI के जरिए मिली जानकारी बताती है कि पिछले पांच साल में सांसदों और पूर्व सांसदों की रेल यात्राओं पर सरकार ने 62 करोड़ रु. खर्च किए हैं।

1917-18 से 2021-22 तक मौजूदा सांसदों की रेल यात्रा के लिए 35.21 करोड़ और पूर्व सांसदों की रेल यात्रा के लिए 26.82 करोड़ रु. का बिल लोकसभा सचिवालय को रेलवे ने भेजा है।

सांसदों, पूर्व सांसदों ने कोरोना महामारी के साल 2020-21 में भी रेलवे के फ्री पास के जरिए 2.47 करोड़ की यात्रा की।

सरकार से अरज सिर्फ इतनी सी है कि आम आदमी को रेलवे में कोई छूट न देना हो मत दीजिए, लेकिन इन भरे पेट वाले सांसदों की छूट तो तत्काल बंद करनी ही चाहिए।

भारी भरकम वेतन-भत्तों और पेंशन के बावजूद सांसदों, पूर्व सांसदों को इस तरह की छूट से क्या रेलवे या सरकार को कोई नुकसान नहीं होता?

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