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मेरठ के पास महाभारतकालीन हस्तिनापुर अपने गर्भ में साढ़े पांच हजार वर्ष से अधिक पुरानी सभ्यता‚-संस्कृति को समेटे है। हस्तिनापुर का पांडव टीला तमाम काल का साक्षी रहा है। इसके प्रमाण हाल में यहां हुए उत्खनन में भी मिले हैं। धूसर चित्रित मृदभांड, तांबे के सिक्के, टेराकोटा रिंगवेल, मनके, अलंकृत स्तंभ, जौ, गेहूं आदि अनेक ऐसे प्रमाण हैं, जो इस टीले के माध्यम से मध्यकाल की संस्कृति के दर्शन कराते हैं। विभिन्न काल में हस्तिनापुर न केवल व्यापार का प्रमुख केंद्र रहा, बल्कि इसका सांस्कृतिक व धार्मिक महत्व भी इतिहास में वर्णित है। आइये, आज आपको हस्तिनापुर से जुड़े ऐसे ही तमाम पहलुओं से रूबरू कराते हैं। पेश है एक रिपोर्ट…
कई काल की संस्कृति का संगम
हाल में पांडव टीला पर हुए उत्खनन में दस मीटर गहराई तक नए काल के धूसर चित्रित मृदभांड से लेकर मध्यकाल की संस्कृति के भी प्रमाण मिले हैं। यहां निर्माण के भी छह स्तर प्राप्त हुए हैं। इनमें मिट्टी की गोलाकार आकृति व पक्के निर्माण शामिल हैं। अधीक्षण पुरातत्वविद, के अनुसार मिटटी के मकान तीन-साढ़े तीन हजार वर्ष पुराने प्रतीत होते है। खुदाई में अभी तक धूसर मृदभांड, चित्रित धूसर मृदभांड‚ उत्तरी कृष्ण मार्जित मृदभांड (एनबीपीडब्ल्यू)‚ तांबे के सिक्के, टेराकोटा रिंगवेल‚ जौ, गेहूं, मनके, अलंकृत स्तंभ, पत्थर तथा भारी मात्रा मे हडि्डयों के अवशेष यहां मिल चुके हैं।
अमृत कूप में स्नान की मान्यता
पांडव टीले के मध्य में अमृत कूप भी है। मान्यता है कि इस कूप में स्नान करने से त्वचा रोग ठीक हो जाते हैं। बताते हैं कि आजादी से पूर्व पेशवा रघुनाथ राव ने भी यहां रहकर इस कूप में स्नान किया था।
अपनी संस्कृति व इतिहास को जानना है तो पांडव टीला पहुंचिए
जिन स्थानों पर एएसआइ ने उत्खनन किया है‚ उन्हें आमजन के लिए खोला गया है। इसके लिए विभाग उत्खनन में निकली प्राचीन दीवारों की लिपाई भी कराई थी। पांडव टीले पर स्थित राजा रघुनाथ महल व प्राचीन दीवारें भी आकर्षण का केंद्र है। जिनके मन में हस्तिनापुर के इतिहास को जानने की अभिलाषा है, उन्हें एक बार पांडव टीले पर जरूर आना चाहिए।
ऐसे पहुंचें हस्तिनापुर
जनपद मुख्यालय से लगभग 40 किमी दूर स्थित हस्तिनापुर के पौराणिक क्षेत्र में ही पांडव टीला है। आप अपने निजी वाहन से मेरठ से वाया मवाना हस्तिनापुर पहुंच सकते हैं। मेरठ शहर से रोडवेज बस से भी हस्तिनापुर पहुंचा जा सकता है। यह बस पांडव टीले के मुख्य द्वार पर ही उतारती है। जैसे ही पांडव टीले के मुख्य द्वार से ऊपर की ओर चलेंगे, पहाड़ों की चढ़ाई जैसा अनुभव होगा। पांडव टीला देखने के लिए कोई शुल्क नहीं देना होगा।
यहां से थोड़ा आगे चलकर वर्ष 1950–52 में हुई खुदाई वाला स्थान दिखने लगेगा। इसके समीप ही वर्तमान में हुए उत्खनन के ब्लाक बने हैं।
डीबी गड़नायक, अधीक्षण पुरातत्वविद् के मुताबिक
जल्द ही पांडव टीले को आइकोनिक साइट के रूप में विकसित किया जाएगा। इस पर काम चल रहा है। उत्खनन वाले स्थल को भी ग्रिल आदि लगाकर कवर किया जाएगा, ताकि यहां आने वाले पर्यटकों को उत्खनन और यहां के इतिहास की जानकारी मिल सके। पर्यटकों को जानकारी देने के उद्देश्य से पूरे पांडव टीले पर संकेतक लगाए जाएंगे।