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यूपी विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव को बड़ा झटका देते हुए उनके छोटे भाई की पत्नी अपर्णा यादव बीजेपी में शामिल हो गई हैं. अपर्णा यादव ने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की मौजूदगी में बीजेपी ज्वाइन की. इस दौरान उन्होंने समाजवादी पार्टी पर जमकर हमला भी बोला. अपर्णा सिंह ने गुंडागर्दी का जिक्र करते हुए सपा पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि, “सपा के शासन में गुंडागर्दी को इतना तवज्जो दिया जाता है कि बहन-बेटियां सुरक्षित नहीं थी. शाम होते ही घरों के दरवाजे बंद हो जाते थे. मेरे लिए राष्ट्र सबसे जरूरी है, इसीलिए मैं हमेशा से प्रधानमंत्री जी से प्रभावित रही हूं.” इस दौरान केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि, “प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश जी असफल रहें हैं, साथ ही वह परिवार में भी असफल रहे हैं.
मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव अब भाजपा में शामिल हो चुकी हैं। विधानसभा चुनाव से पहले यादव परिवार की बहू का भाजपा में शामिल होना अखिलेश यादव के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। अपर्णा के भाजपा में जाने का सियासी लिहाज से भले ही सपा पर कोई बड़ा असर ना हो, लेकिन परिवार में इस टूट ने छवि की लड़ाई में अखिलेश को पीछे धकेल दिया है। हालांकि, अखिलेश ने अपर्णा के भाजपा में शामिल होने पर उन्हें बधाई दी।
समाजवादी पार्टी पर सबसे ज्यादा आरोप परिवारवाद को लेकर लगते रहे हैं. सपा पर परिवारवाद का आरोप ही 2017 में बीजेपी का सबसे बड़ा मुद्दा था. 2017 में चाचा-भतीजे की लड़ाई में शिवपाल यादव, अखिलेश यादव से अलग हो गए थे. परिवार की इस लड़ाई का फायदा बीजेपी को पहुंचा था. 2019 के लोक सभा चुनाव में भी बीजेपी ने परिवारवाद को बड़ा मुद्दा बनाया था.
इस बार अखिलेश ने अपर्णा और हरिओम यादव जैसे परिवार के नेताओं को टिकट देने से साफ़ मना कर दिया. जिसके बाद अपर्णा यादव और हरिओम यादव बीजेपी के साथ चले गए. अपर्णा यादव लखनऊ कैंट से टिकट मांग रही थीं, जबकि मुलायम सिंह के दूर के रिश्तेदार हरिओम यादव सिरसागंज सीट से टिकट मांग रहे थे. अपर्णा यादव को छोड़कर मुलायम सिंह यादव का पूरा परिवार समाजवादी पार्टी के साथ एकजुट है. अखिलेश यादव ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा कि नेताजी ने अपर्णा को बहुत समझाया लेकिन वो नहीं मानीं.
अपर्णा के भाजपा में शामिल होने के बाद एक बार फिर परिवार की लड़ाई घर की दहलीज पार कर बाहर आ गई है। अखिलेश सरकार के कार्यकाल के अंतिम दिनों जिस तरह परिवार में कलह मची और परिवार बिखरा उसका असर चुनावी नतीजों में दिखाई दिया था। एक बार फिर 2022 विधानसभा चुनाव से पहले मुलायम परिवार में टूट के बाद उस समझौते की चर्चा हो रही है, जो परिवार को एक रखने के लिए करीब 16-17 साल पहले हुआ था।
मुलायम परिवार को एक साथ जोड़ने वाला समझौता
मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी साधना यादव की परिवार में एंट्री के साथ ही परिवार में बगावत शुरू हो गई थी। वरिष्ठ पत्रकार मुकेश अलख बताते हैं कि तब अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम से बगावत कर दी थी। अखिलेश बेहद नाराज रहने लगे थे और मुलायम की हर बात अनसुनी कर रहे थे।
पिता और पुत्र के बीच बढ़ती दूरियों को कम करने और परिवार को एक साथ लाने की जिम्मेदारी अमर सिंह ने उठाई थी। अमर सिंह ने न सिर्फ साधना यादव को परिवार में एंट्री दिलाई, बल्कि अखिलेश यादव को भी मनाया। इस दौरान परिवार को साथ रखने के लिए एक समझौता भी हुआ।
मुलायम परिवार में हुए समझौते की शर्त
उस समझौते के मुताबिक पिता की राजनीतिक विरासत के इकलौते वारिस अखिलेश यादव होंगे, जबकि साधना के बेटे प्रतीक यादव कभी भी राजनीति में नहीं आएंगे। इतना ही नहीं उस वक्त जो प्रॉपर्टी थी, उसे भी दोनों भाइयों में बराबर-बराबर बांटा गया। परिवार के बेहद करीब रहे लोगों का दावा है कि पार्टी में उस वक्त यह भी तय हुआ था कि साधना यादव के परिवार का खर्चा समाजवादी पार्टी उठाएगी।
टूट गया परिवार के बीच का समझौता?
प्रतीक यादव लगातार कहते हैं कि वो कभी राजनीति में नही आएंगे। हालांकि, जब भी सवाल अपर्णा के सियासी भविष्य को लेकर होता, वह कहते कि इसका फैसला नेता जी, यानी मुलायम सिंह यादव और खुद अपर्णा कर सकती हैं। कहा जाता है कि एक पत्रकार की बेटी अपर्णा की राजनीतिक महत्वाकांक्षा हमेशा से रही है। वह परिवार की दूसरी बहू डिंपल यादव की तरह पार्टी में आधिकार चाहती थीं।
अपर्णा की इसी जिद की वजह से मुलायम सिंह यादव ने 2017 में अपर्णा को पार्टी का टिकट दिलवाया था, लेकिन अपर्णा चुनाव हार गईं। हालांकि, उन्होंने आरोप लगाया कि अखिलेश यादव नहीं चाहते थे कि वो चुनाव जीतें।
अखिलेश का टिकट से इनकार बना परिवार में टूट की वजह?
खबर है कि अखिलेश यादव ने इस बार परिवार के किसी भी सदस्य को टिकट ना देने का फैसला किया है। राजनीति में करियर बनाने के लिए बेताब अपर्णा के लिए यह फैसला बेहद परेशान करने वाला था। माना जा रहा है कि इसके बाद ही अपर्णा भाजपा के संपर्क में आईं और अब पार्टी में शामिल हो गई हैं। खबर यह भी है कि 2014 के बाद से ही अपर्णा यादव प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करने लगी थीं।
2017 में योगी सरकार बनने के बाद भी अपर्णा ने कई बार CM योगी से मुलाकात की। इतना ही नहीं, उन्होंने कई बार ऐसे बयान भी दिए जिनसे अखिलेश यादव की फजीहत हुई। राम मंदिर निर्माण के लिए चंदा जुटाने वालों को अखिलेश ने चंदाजीवी कहा था, जबकि अपर्णा ने राम मंदिर के लिए 11 लाख रुपए का दान दिया था। परिवार के करीबियों का मानना है कि इस बार अखिलेश ने फैसला कर लिया था कि ना तो अपर्णा को टिकट देंगे और ना ही कहीं जाने से रोकेंगे।
अपर्णा यादव के बाद शिवपाल यादव का क्या होगा?
अपर्णा के साथ हमेशा खड़े दिखने वाले शिवपाल सिंह यादव का अगला कदम क्या होगा? अब इसको लेकर भी चर्चा होने लगी है। कहा जा रहा है कि 2016 में चाचा-भतीजे के बीच हुए विवाद के दौरान अपर्णा, चाचा शिवपाल के साथ खड़ी रहीं। अपर्णा हमेशा कहती थीं कि वो वही करेंगी जो नेता जी और चाचा शिवपाल कहेंगे। खबर यह है कि अपर्णा अपनी महत्वाकांक्षा के चलते परिवार में अलग-थलग पड़ गई थीं। इस फैसले पर मुलायम और शिवपाल दोनों ने कुछ भी नहीं कहा। खबर है कि शिवपाल फिलहाल समाजवादी पार्टी के साथ है.
अपर्णा को छोड़ पूरा मुलायम परिवार अखिलेश के साथ
हालांकि अपर्णा-हरिओम को छोड़ दें तो शिवपाल यादव के साथ आने के बाद अब मुलायम सिंह यादव का पूरा परिवार इस समय अखिलेश यादव के साथ है. दरअसल अखिलेश यादव सपा की छवि बदलने की कोशिश कर रहे हैं. सपा के ऊपर परिवारवाद और जातिवाद के ठप्पे को नयी सपा के माध्यम से हटाने की कोशिश कर रहे हैं. यही कारण है कि सपा परिवार से ज़्यादा टिकट नहीं दे रहे हैं और ग़ैर यादव ओबीसी और ब्राह्मण वोट बैंक पर फ़ोकस कर रहे हैं.