VS CHAUHAN for NEWS EXPRESS INDIA
अगर घर में बच्चा कई घंटों तक बिना किसी कारण के मोबाइल लेकर बैठा है तो यह चिंता का कारण है। परिवार को इस ओर जरूर ध्यान देना होगा। यदि उसके स्वभाव में चिड़चिड़ापन, गुस्सा, निराशा, तनाव, उग्रता या एकांकीपन के लक्षण तो दिखाई दे रहे हैं। अगर हां, तो उसे मनोचिकित्सक को दिखाने की जरूरत है। आंकड़ों की माने तो हमारे देश में कुल जनसंख्या का 41% 20 वर्ष से कम आयु के बच्चे ऑनलाइन गेम खेलते हैं देश में शहरों की तो बात छोड़ो गांवों में भी मोबाइल गेम की लत के शिकार बच्चों की संख्या दिनों-दिन बढ़ रही है।मोबाइल लत के कारण प्री स्कूल के बच्चों का शारीरिक-मानसिक विकास थम रहा है। खाना की शुरुआत कोरोना काल के दौरान ऑनलाइन पढ़ाई के लिए मोबाइल लैपटॉप के जरिए होने लगी थी. और यहीं से बच्चों में ऑनलाइन खेलने की लत पढ़नी भी शुरू हो गई.
अभी कुछ दिन पहले की घटना है कि राजस्थान के लाडनूं में एक 16 साल के बच्चा रिश्ते में अपने 12 साल के भतीजे के साथ मोबाइल पर गेम खेलता था। ऑनलाइन गेम में उस पर उधारी चढ़ी तो उसने अपने भतीजे को मार डाला और उसके परिवार से 5 लाख की फिरौती तक मांग ली थी।
इस सनसनीखेज घटना के बाद भास्कर ने गुरुवार को मोबाइल गेम के आदी बच्चों की जानकारी जुटाई तो सामने आया कि कई बच्चे तो मोबाइल के कारण अपराध तक कर चुके हंै।
अस्पतालाें में कई ऐसे अभिभावक पहुंच रहेे हंै जो इस बात से परेशान हैं कि उनके बच्चे मोबाइल के बहुत एडिक्ट हो गए। ऐसे में सबसे अधिक असर उनकी पढ़ाई पर पड़ता है। मनोचिकित्सक बताते हैं कि खुद पर नियंत्रण जरूरी है। आउटडोर गेम्स खेलें। किताबें पढ़ें और योग करें।
खींवसर थाना क्षेत्र में बुधवार को 15 साल के नाबालिग को फ्री फायर गेम खेलने से मना किया तो उसने अपने पिता को कमरे में बंद कर दिया और अपने घर के बाहर खड़ी पिता की मोटरसाइकिल को तोड़ दिया। पिता को धमकी भी दी कि अगर उसे गेम खेलने से रोका तो वह फांसी लगा लेगा। कमरे में बंद पिता ने इसकी सूचना खींवसर थाने में दी। थानाधिकारी गोपालकृष्ण चौधरी ने मौके पर जाकर नाबालिग को समझाया और ऐसा नहीं करने की हिदायत देकर छोड़ दिया। पिता ने बताया- लंबे समय से बच्चा उसका मोबाइल लेकर ऑनलाइन फ्री फायर गेम खेल रहा है, जब बार-बार मना किया तो इस गेम को खेलने के लिए आवेश में आकर इसने मुझे कमरे में बंद कर दिया। पिता ने बताया कि पिछले काफी समय से यह चिड़चिड़ा रहने लगा है और गुस्सैल प्रवृत्ति का हो गया है।
राजस्थान के बाड़मेर जिले के किसी गांव में एक 14 साल के बालक के पास 13 मोबाइल थे। चिकित्सक बताते हैं कि बालक सुबह उठते ही मोबाइल का उपयोग शुरू कर देता था। परिवार का वह एक ही बेटा है। लेकिन मां को वह बार-बार धमकियां देता रहता था और लगातार दबाव बनाने लग जाता था। वह बार-बार मोबाइल काम में लेने की जिद करने लग जाता है। जब भी परिवार की ओर से उसे मना किया जाता तो वह हंगामा करने लग जाता।
बालक की धमकियां के कारण परिवार भी चुप रहता। लेकिन बालक का व्यवहार लगातार बदलने लगा तो परिवार ने उसे चिकित्सक के पास दिखाया। चिकित्सक के अनुसार बालक को बहुत समझा कर मोबाइल की लत छुड़ाई और उसे समझाने पर अब भी लगातार काम किया जा रहा है।
पाली जिले में एक मोबाइल एडिक्ट जोधपुर के मथुरादास माथुर अस्पताल में उपचार करवाने पहुंचा तो पता चला कि बालक जाने-अनजाने में देह व्यापार करने वालों की चपेट में आ गया। महज 14 साल का वह बालक 24 में से 15 घंटे तक मोबाइल चलाता था। जिसके बाद वह गलत लिंक पर जाकर पॉर्न साइटों तक पहुंच गया और उसे यह देखने की लत लग गई। इसके बाद वह कई माह तक तो मोबाइल तक ही सीमित रहा लेकिन इसके बाद वह देह व्यापार तक पहुंच गया और परिवार को जब इसकी भनक लगी तो परिवार के लोग परेशान हो गए। परिवार के लोग बड़ी मुश्किल से उसे बचा पाए और अब बालक का चिकित्सकों की सहायता से उपचार चल रहा है। चिकित्सक बताते हैं कि अब उसकी स्थिति में कुछ सुधार शुरू हुआ है।
नागौर में एक बालक मोबाइल न चलाने देने पर हंगामा करने लगा। 9वीं क्लास का यह बच्चा परीक्षा की तैयारी में जुटा था। वह रोजाना कुल 17 घंटे तक मोबाइल चलाता था। परिवार मना करता तो वह छत पर जाकर चिल्लाता था। परेशान होकर उसके दादा मोबाइल दे देते थे। चिकित्सक मानते हंै कि ऐसी स्थिति तब होती है जब दिमाग की संतुष्टि नहीं होती है।
सिरोही जिले से एक बच्चा अपने परिवार को आत्महत्या की धमकी देने लग गया था। मामला अधिक उलझा तो बालक ने अपने हाथों की नसें तक काट ली। इस उम्र मेंं भी वह किसी युवती से बात करने लगा था और घंटों फोन के चिपका रहता। पिता ने उसे बात करने का मना किया था। इस पर वह भड़क गया और अपने हाथों की नसें तक काट डाली।
आपको बताई गई घटनाएं एक उदाहरण हैं ना जाने कितनी घटनाएं देश के अलग-अलग हिस्सों में होती है और देश के अलग-अलग हिस्सों में बड़ी संख्या में बच्चे ऑनलाइन मोबाइल गेम के गेम एडिक्ट हो रहे हैं.
बच्चों में मोबाइल एडिक्शन होता है। वे वर्चुअल वर्ल्ड में चले जाते हंै जिसमें जीत को जीवन की जीत समझ लिया जाता है। गेम्स हावी हो जाते हैं दिमाग पर। दिमाग प्रेशर में चला जाता है। परिवार के के रिश्तों में भी दरार आ जाती है। जिसमें भावानात्मक टकराव आ जाता है। परिजनों को चाहिए कि वे कॉलेज तक के बच्चों पर ध्यान दें।
बच्चों में यह देखने की जरूरत है कि वे ऑनलाइन कर क्या रहे हैं? एक घंटे से ज्यादा बिना किसी कारण के मोबाइल चला रहे हैं तो अवश्य ही चेक करें। परिजन यह ध्यान रखें कि बच्चे चिड़चिड़े या गुस्सैल तो नहीं हो रहे। अगर शिक्षा में पिछड़ रहा है तो और गंभीर है। हालात चिंताजनक हैं.